Faisal Anurag
बंगाल में नरेंद्र मोदी अमित शाह ब्रांड की पराजय से विपक्ष के अनेक दल बेहद उत्साहित हैं. राज्यसभा सदस्य और शिवसेना नेता संजय राएत ने जल्द ही गैर भाजपायी दलों के गठबंधन के लिए विपक्षी दलों में जल्द ही बातचीत होगी. राउत ने दावा किया है, इस संदर्भ में उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार से बातचीत किया है. राउत ने यह भी कहा है कि किसी भी विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस की एक महत्वपूर्ण भूमिका होगी.
बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने पहले से ज्यादा सीट जीत कर उन विपक्षी दलों को भी हौसला दिया है, जो पिछले कुछ सालों से इस बात को लेकर निराश थे कि मोदी शाह ब्रांड अपराजेय है. लेकिन जिस तरह बंगाल में यह ब्रांड नाकामयाब हुआ है. उससे विपक्ष काफी उत्साहित है. असम में जीत के बावजूद भाजपा के मनोविज्ञान पर बंगाल की प्रेतछाया मंडरा रही है. इसका एक बड़ा करण यह है कि बंगाल में भाजपा ने जिस तरह का दावं लगाया था, उसके परिणाम बेहतर साबित नहीं हुए हैं. ममता बनर्जी ने तो यह कह कर भाजपा को परेशान ही कर दिया है कि यदि चुनाव आयोग ने निष्पक्षता दिखायी होती तो भाजपा 30 से ज्यादा सीटे नहीं जीत सकती.
हालांकि चुनाव परिणामों के बाद इस तरह के आरोप प्रत्यारोप नए नहीं हैं. लेकिन एक बात पहली बार दिख रही है कि बंगाल विपक्ष की राजनीति में एक धुरी की तरह बहस का विषय है.
विपक्ष के गठबंधन की राह बेहद कठिन भी है, क्योंकि अनेक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियां हैं, जो इस सवाल पर भ्रम में हैं. आंध्रप्रदेश में जगन मोहन रेड्डी की सरकार है. उनकी पार्टी वाइएसआर कांग्रेस घोषित तौर पर भाजपा के गठबंधन में नहीं हैं. लेकिन हर संकट के समय उनकी पार्टी प्रधानमंत्री और भाजपा के बचाव में उतर आती है. ताजा मामला झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का वह ट्वीट है, जिसमें उन्होंने कहा था कि टेलिफोनिक बातचीत में प्रधानमंत्री ने मन की बातें ही की,काम की नहीं है. भाजपा के मुख्यमंत्रियों ने तो हेमंत सोरेन के खिलाफ बयान दिए ही जगन मोहन रेड्डी ने भी हेमंत सोरेन की आगाह करने वाली भाषा में आलोचना किया.
इसी तरह उत्तर प्रदेश, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होना है, उसमें समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी अंतरविरोध और मतभेद जाहिर है. 2019 के चुनावों में दोनों ने गठबंधन किया था. लेकिन चुनाव नतीजों के बाद मायावती ने एकतरफा गठबंधन तोड़ दिया. भारत की राजनीति में उत्तर प्रदेश बेहद अहम है. सपा और बसपा का साधना आसान कार्यभार नहीं है. इसी तरह आंध्रप्रदेश में तेलगू देशम और वाइएसआर कांग्रेस का मतभेद है. दोनों भाजपा के साथ सहज तो महसूस करते हैं, लेकिन विपक्षी गठबंधन के लिए दोनों का साथ टेढ़ी खीर है. तेलंगाना के सी चंद्रशेखर राव की भूमिका भी साफ नहीं रही है. वे भी जगन मोहन रेड्डी की तरह संकट में भाजपा का बचाव करते रहे हैं और ओड़िशा के नवीन पटनायक की दिल्ली में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखती है. राज्यसभा हो या लोकसभा उनके सदस्य भाजपा के पक्ष में वाटिंग के समय सदन का बायकॉट करते हैं.
कोविड की तबाही के बाद नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में गिरावट आयी है. उनके खिलाफ तो गुजरात के सबसे बड़े अखबारों में एक गुजरात समाचार में पहली बार हमलावार अंदाज में लिखा गया है. अपने लीड बैनर में 90 सालों से प्रकाशित हो रहे गुजरात समाचार ने प्रथम पेज के बैनर में लिखा है “देशवासियों जब तुम कोरोना महामारी से मर रहे हो तब तुम्हारा प्रधानसेवक तानाशाह बना हुआ है,बड़ा प्रधान 22 हजार करोड़ के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में व्यस्त है” और इस बेनर का अंत इस तरह किया गया है “रोम के जलते वक्त नीरो बांसुरी बाजा रहा था, बड़ा प्रधान भी वैसा ही कर रहा है. जब कोरोना से लोग मर रहे हैं, तो वो अपना आलीशान घर बनवा रहा है”. एक गुजराती अखबार में प्रधानमंत्री मोदी की इतनी तल्ख आलोचना उस मूड की ओर इशारा है, जो देशभर में महसूस किया जा रहा है. आमजन का यही मूड विपक्षी दलों के लिए बंगाल की जीत के उत्साह को ताकत दे सकता. लेकिन विपक्ष के अधिकांश दलों का सांगठनिक ढांचा बेहद कमजोर है और उनके अंतरविरोध और अहंकार भी प्रभावी हैं.
पांच राज्यों के चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस सबसे बुरे दौर में है. बावजूद संजय राउत को यह महसूस हो रहा है कि कांग्रेस की बड़ी भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है. विपक्ष की उम्मीदें बेमानी नहीं हैं, लेकिन इसके लिए कांग्रेस को सबसे पहले पूर्णकालिक नेतृत्व के संकट को हल करना होगा. लेकिन जो संकेत मिल रहे हैं, उससे कहा जा सकता है कि विपक्षी दलों की उम्मीदों पर खरा उतने की चुनौती कांग्रेस लेती नजर नहीं आ रही है.