लोगों की मांग- सेल सीएसआर के तहत सड़क का करे निर्माण
Shailesh Singh
kiriburu : भारत का सबसे बड़ा लौह अयस्क का भंडार तथा सारंडा का सबसे पुराना चिड़िया खदान स्टील ऑथोरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) के अधीन है. उस खदान के टाउनशिप तक जाने के लिए किरीबुरु-मनोहरपुर मुख्य सड़क मार्ग के अंकुआ चौक से चिड़िया तक करीब 5 किलोमीटर लंबी सड़क पिछले 117 वर्षों बाद भी नहीं बनाई गई है. इससे अनेक सवाल खड़े होते हैं. इस खदान की प्रथम लीज धारक कंपनी बंगाल आयरन एंड स्टील कंपनी, दूसरी इस्को तथा अब तीसरी सेल कंपनी है. सड़क नहीं बनने के लिए जिम्मेदार झारखंड सरकार या सेल प्रबंधन में से कौन है पता नहीं. लेकिन चिड़िया वासियों का मानना है कि सेल स्वयं सीएसआर से सभी क्षेत्रों में बेहतर कार्य करने का दावा करता है तो चिड़िया को मुख्य मार्ग से जोड़ने वाली लगभग पांच किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण 117 वर्षों बाद भी क्यों नहीं हो पाया है. चिड़िया की आबादी लगभग सात हजार से अधिक है. सेल के अधिकारी व कर्मचारी के अलावे ठेका व सप्लाई मजदूर तथा ग्रामीण रहते हैं. चिड़िया में सेल का जेनरल ऑफिस, गेस्ट हाउस, सेल अस्पताल, पुलिस आउट पोस्ट, डीएवी स्कूल आदि के अलावे चार गांव हैं.
पांच किलोमीटर लंबी पीसीसी सड़क भी अब तक नहीं बनी
अंकुआ चौक से चिड़िया टाउनशिप तक साढ़े तीन करोड़ की लागत से लगभग 5 किलोमीटर लंबी पीसीसी सड़क का निर्माण करना था. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत निर्माण कन्सट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड को जुलाई-2012 में काम सौंपा गया था. इसे जनवरी-2014 तक काम पूरा करना था. लेकिन यह कार्य प्रारम्भ होने के साथ ही भ्रष्टाचार का भेंट चढ़ गया. यह सड़क आज तक नहीं बन सकी है. उक्त सड़क गड्ढे में तब्दील हो चुकी है. चिड़िया, मनोहरपुर विधानसभा क्षेत्र अन्तर्गत आता है. यहां लंबे समय से जोबा माझी मंत्री व विधायक तथा गीता कोड़ा व मधु कोड़ा सांसद व मुख्यमंत्री तक रहे थे. लेकिन उन्होंने भी कभी इस सड़क के निर्माण का प्रयास नहीं किया.
बोस व आर सौबेल ने लौह अयस्क भंडार की खोज की थी
चिड़िया खदान का लीज सबसे पहले वर्ष 1901 में बंगाल आयरन एंड स्टील कम्पनी को मिला, जिसका प्रोस्पेक्टिंग का काम कर रही मेसर्स मार्टिन बंग एंड कम्पनी के दो अधिकारी पीएन बोस और आर सौबेल ने सर्वप्रथम चिड़िया में लौह अयस्क की भंडार की खोज की थी. सारंडा के चिड़िया खदान से मनोहरपुर तक लौह अयस्क की ढुलाई में आने वाली दिक्कतों के मद्देनजर रेल लाइन बिछाने का कार्य इसी सड़क के किनारे होते हुये वर्ष 1908 में प्रारम्भ हुआ जो 1910 में बनकर तैयार हुआ था. चिड़िया खदान से लौह अयस्क का उत्पादन वर्ष 1907 में प्रारम्भ हुआ. माल ढुलाई कार्य में लगी इसी लाइट रेलवे में सवार होकर चिड़िया खदान के कर्मचारी व ग्रामीण जरूरी कार्य हेतु मनोहरपुर तक आना-जाना करते थे. आवागमन का कोई दूसरा साधन नहीं था. वर्ष 1999 में चिड़िया से उक्त रेलवे लाइन व लाइट रेलवे से अयस्क ढुलाई को बंद कर दिया गया. लाइट रेलवे का इंजन आज भी चिड़िया में ऐतिहासिक धरोहर के रूप में रखी हुई है.
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