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अगर अदालतें ही ऐसे आदेश देंगी तो नेताओं व राजनीति से पीड़ित नागरिक कहां गुहार लगाएंगे

krishn kant लेख लिखने पर किसी पत्रकार के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट कैसे जारी हो सकता है? अगर अदालतें ही ऐसे आदेश देंगी तो नेताओं और राजनीति से पीड़ित नागरिक कहां गुहार लगाएंगे. गुजरात की एक अदालत ने वरिष्ठ पत्रकार प्रंजॉय गुहा ठाकुरता के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है. ये वारंट अडानी">https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80_%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B9">अडानी

ग्रुप की ओर से दायर मानहानि के मुकदमे के तहत किया गया है. प्रंजॉय गुहा ठाकुरता प्रतिष्ठित पत्रिका इकोनॉमिक">https://www.epw.in/">इकोनॉमिक

एंड पॉलिटिकल वीकली के संपादक थे. इस दौरान वर्ष 2017 में ठाकुरता ने स्टोरी लिखी थी कि सरकार अडानी ग्रुप को अनुचित फायदे पहुंचा रही है. खबर का सार ये था कि अडानी ग्रुप को मोदी सरकार ने 500 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाया. मोदी">https://www.bbc.com/hindi/in-depth-40068899">मोदी

सरकार के एक फैसले से गुपचुप तरीके से स्पेशल इकोनॉमिक जोन से जुड़े नियम बदल दिए गए और अगर इस बदलाव से अडानी ग्रुप को 500 करोड़ रुपए का फायदा पहुंचा. इसी खबर को लेकर ग्रुप ने ठाकुरता और सह लेखकों और पत्रिका पर मुकदमा कर दिया था. ठाकुरता का यही लेख बाद में द वायर ने छापा था, जिसके लिए अडानी ग्रुप ने वायर">http://thewirehindi.com/">वायर

पर भी मुकदमा ठोंका था. इस मुकदमे के बाद पत्रिका पर अडानी ग्रुप का इतना दबाव पड़ा कि ठाकुरता को अपना पद छोड़ना पड़ा. बाद में पत्रिका और इसके मालिकों पर से केस वापस हो गया. अब ये केस सिर्फ पत्रकार ठाकुरता के खिलाफ है. गौतम">https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%A4%E0%A4%AE_%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%80">गौतम

अडानी पिछले छह सालों से मोदी के प्रधान सेवक बनने के बाद खासे चर्चा में रहते हैं. वजह है प्रधान सेवक से उनकी नजदीकी और उनका बढ़ता बिजनेस. इन्हीं के विमानों पर सवार होकर मोदी ने 2014 में अपना प्रचार किया था. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पहले ही साल में अडानी की संपत्ति में अकूत बढ़ोत्तरी होनी शुरू हो गई. आज जब देश की अर्थव्यवस्था माइनस में है, अडानी और अंबानी संपत्ति में बेतहाशा वृद्धि की खबरों के तो आप भी गवाह हैं. अडानी सिर्फ बिजनेसमैन नहीं हैं. वे न्यू इंडिया के नए भगवान हैं, जिनकी आलोचना नहीं की जा सकती. उनके गैरकानूनी कामों के खिलाफ जो भी लेख लिखता है, वे उसे मुकदमें में फंसा देते हैं. नेता भी भगवान बने घूम रहे हैं, तो कॉरपोरेट क्यों पीछे रहे? सरकार उसकी जेब में है तो जाहिर है कि वह ज्यादा कांफिडेंस में है. हाल ही में एक वरिष्ठ पत्रकार ने निजी तौर पर मुझे बताया था कि वे एक अंग्रेजी अखबार के खबर लिख रहे थे. खबर में अडानी ग्रुप पर सवाल थे. इन सवालों का जवाब मांगने के लिए ग्रुप के अधिकारियों से संपर्क किया गया, तो जवाब देने की जगह पत्रकार को धमकियां दी गईं और आखिरकार वह खबर नहीं छपी. लॉकडाउन के दौरान गुजरात के एक पत्रकार ने खबर लिख दी कि मुख्यमंत्री से आलाकमान नाराज हैं. सीएम बदला जा सकता है. इस खबर के लिए पत्रकार पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज हो गया. ऐसे कारनामों पर यूपी टॉप पर है. लेकिन पीछे कोई नहीं है. कॉरपोरेट से लेकर सरकारों तक, सबको ये लगता है कि वे अपनी ताकत से पत्रकारों का मुंह बंद कर देंगे और वे इसका ‘सफल प्रयास’ भी कर रहे हैं. क्योंकि व्यवस्था उनकी जेब में है. अगर आपका मौजूदा “नया लोकतंत्र” है जहां लेख लिखने पर उसका खंडन नहीं होता. सवालों का जवाब नहीं दिया जाता. सीधा मुकदमा और गिरफ्तारी होती है. हैरानी की बात है कि अदालत गिरफ्तारी वारंट जारी कर देती है. लेकिन वॉट्सएप चैट में मंत्री बनाने, मंत्री बदलवाने और पीएमओ से लाभ लेकर बिजनेस चमकाने का खुलासा होने पर भी कोई कार्रवाई नहीं होती. भारत की जनता शायद इन्हीं अच्छे दिनों का सपना देख रही थी जहां लेख लिखने पर गिरफ्तारी हो जाए? डिस्क्लेमर :  ये लेखक के निजी विचार हैं. इसे भी पढ़े:बोकारो">https://lagatar.in/voter-awareness-chariot-started-in-bokaro-30-thousand-new-voters-added/19913/">बोकारो

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