Shyam Kishore Choubey
प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी का झारखंड दिवस की पूर्व संध्या पर राजधानी रांची पधार कर अगले दिन बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातू जाना बहुत मायने रखता है. वह भी तब, जबकि वे पड़ोसी छत्तीसगढ़ के अलावा मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना आदि के चुनावी समर में फंसे हुए थे. मिजोरम छोड़कर चार राज्यों में 17 नवंबर को मतदान हुआ. इन राज्यों में वे भाजपा का एकमात्र चेहरा हैं. यहां तक कि मध्यप्रदेश पर 18 सालों से राज कर रहे शिवराज सिंह चौहान भी अपने राज्य का चेहरा नहीं बनाये गये हैं. दो साल पहले मोदी ने ही बिरसा के जन्म दिन 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस घोषित किया था और इसे यादगार बनाने के लिए वे उलिहातू जा कर बिरसा के वंशजों से मिले भी. इस मौके पर खूंटी में जनसभा कर उन्होंने कई योजनाओं का शिलान्यास-उद्घाटन किया. यह अच्छी बात है कि उन्होंने इस अवसर पर पीएम पीवीटीजी मिशन की न केवल लॉन्चिंग की, अपितु विकसित भारत संकल्प यात्रा को भी हरी झंडी दिखाई. करीब डेढ़ साल पहले उन्होंने 22 जुलाई 2022 को देवघर हवाई अड्डे का उद्घाटन किया था.
अपने दूसरे कार्यकाल के गुजरे साढ़े चार साल में झारखंड जैसे छोटे राज्य में दो बार उनका आना यह बताता है कि उनके लिए सभी राज्य तुलसी दल है. मोदी काल की भाजपा अपना चुनावी खेत समय देखकर जोतती ही रहती है. चूंकि 15 नवंबर ही झारखंड का स्थापना दिवस है, इसलिए क्या ही अच्छा होता कि मोदी इस राज्य के स्थापना दिवस के राजकीय समारोह में भी शिरकत करते! मोदी का खूंटी कार्यक्रम पहले से तय था तो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को निवेदन करना चाहिए था कि वे राजकीय समारोह की भी शोभा बढ़ाएं. चूक किधर से हुई, यह स्पष्ट होना चाहिए. यूं, इस दिन खूंटी में पीएम-सीएम दोनों ने संग-संग रहकर बिरसा जन्मदिवस मना लिया, यही संतोष की बात है. ऐसे भी 16 साल पहले तक खूंटी, रांची जिले का ही सबडिवीजन हुआ करता था.
प्रधानमंत्री ने बिरसा जन्म दिवस के मौके पर झारखंड में कुछ समय बिताकर निश्चय ही सुचिंतित कदम उठाया. इसके राजनीतिक मायने भी हैं. चार साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में झारखंड की 28 आरक्षित जनजातीय विधानसभा सीटों में भाजपा को दो ही मिल पाई थीं और उसके चंद महीनों पहले लोकसभा चुनाव में आरक्षित जनजातीय खूंटी और लोहरदगा सीटें भाजपा बहुत मुश्किल से निकाल पाई थी. छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी पर्याप्त जनजातीय आबादी है. जब विदेशों में किये गये मोदी के कार्यक्रम से देश का चुनाव प्रभावित होता रहा है तो खूंटी से अन्य राज्यों तक संदेश जा ही सकता है. मोदी राजनीति की शतरंजी चाल चलने में माहिर हैं.
14 साल बाद बाबूलाल मरांडी की भाजपा में न केवल वापसी, बल्कि उनको नेता विधायक दल और फिर प्रदेश अध्यक्ष के आसन पर विराजमान कराना और फिर तमाम कील-कांटे दूर कर देना भी उसी चाल का नायाब नमूना है. अलग बात है कि टीम बाबूलाल का गठन साढ़े चार महीने बाद भी नहीं हो सका है. मोदी राजनेता हैं तो राजनीति ही करेंगे न! ‘विकसित भारत संकल्प यात्रा’ की खूंटी में लॉन्चिंग पर केंद्र सरकार द्वारा जारी एक विज्ञापन में ‘मोदी सरकार की गारंटी’ शीर्षक आकर्षित करता है. राजनीतिक हलकों में आजकल गारंटियों की धूम है. उक्त पांच राज्यों के चुनाव में राजनीतिक गारंटियों से जनता बाग-बाग है. वह चाहे जिसकी गारंटी पर फिदा हो जाए.
एक नजर हेमंत सोरेन पर भी.
झारखंड दिवस के अवसर पर राजधानी रांची में आयोजित मुख्य राजकीय समारोह में उन्होंने ‘आपकी योजना, आपकी सरकार, आपके द्वार’अभियान का तीसरा संस्करण लॉन्च किया. यह अभियान 29 दिसंबर तक चलेगा. झारखंड सरकार के सूत्र बताते हैं कि पिछले दो वर्षों में यह अभियान राज्य की सभी 4,351 पंचायतों और 50 नगर निकायों में चला था. इस दौरान 36,512 शिविर लगाये गये, जिनमें नागरिकों से 91.39 लाख आवेदन मिले, जिनमें से प्रायः सभी का निबटान कर दिया गया है. 2021 में लगाये गये 6,867 शिविरों में 35.95 लाख आवेदन और 2022 में लगाये गये 5,696 शिविरों में 55.44 लाख आवेदन मिले थे. ये आंकड़े बताते हैं कि आरंभिक 6,867 शिविरों में 35.95 लाख शिकायतें मिली थीं, जबकि अगले साल पूर्वापेक्षा 1,171 कम शिविर लगाये गये, लेकिन 19.49 लाख अधिक आवेदन मिले. यानी जन शिकायतों वाले इन सरकारी शिविरों पर अवाम का भरोसा बढ़ गया था.
इसका एक दूसरा निहितार्थ भी है. 3.30 करोड़ आबादी वाले राज्य में 91 लाख आवेदन का मतलब औसतन एक तिहाई आबादी को शासन-प्रशासन से शिकायत थी. बहुमत वाली सरकार के लिए यह अच्छी बात नहीं कही जा सकती. ब्लॉक और जिला स्तर पर मॉनिटरिंग बढ़ानी पड़ेगी न! सामान्य जन की शिकायत या अपेक्षाएं अमूमन सरकारी योजनाओं और सुविधाओं से ही जुड़ी होती हैं. यूं, हर दिन चुनावी मोड में रहनेवाले नरेंद्र मोदी से हेमंत ने एक बात तो सीख ही ली है, राजनीति करनी है तो सक्रिय बने रहना होगा.
चाहे खूंटी में हुआ प्रधानमंत्री का कार्यक्रम हो, या रांची में राज्य सरकार का, दोनों में कई-कई हजार करोड़ की योजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास किया गया. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. झारखंड में पिछले 23 साल से ऐसा ही होता रहा है. उसके पहले भी होता रहा था. राशि कुछ कम-बेसी हो सकती है. इसके बावजूद देश की 130-40 करोड़ आबादी में से 80 करोड़ यानी अमूमन 60 फीसद आबादी सरकार द्वारा दिये जा रहे पांच किलो अनाज पर आश्रित है. झारखंड का तो खैर गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि मामलों में रिकॉर्ड कभी अच्छा न रहा.
डिस्क्लेमर:ये लेखक के निजी विचार हैं.