Ranchi : हेमंत सरकार में राज्य के 12 जिलों में खनिजों का 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक का अवैध खनन हुआ है. अपने घोटालों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए सरकार ने 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति बनाने और ओबीसी आरक्षण का दायरा बढ़ाने की घोषणा की है. यह आरोप लगाया है भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने. भाजपा प्रदेश कार्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए रघुवर ने कहा कि ढाई साल में परिवारवादी गठबंधन की सरकार ने कोयला, बालू, शराब और ट्रांसफर-पोस्टिंग में हजारों करोड़ रुपये की उगाही की है. पढ़ें – नीतीश बाबू से बचके रहना लालू जी, कल को वो आपको छोड़कर कांग्रेस की गोदी में बैठ जाएंगे : अमित शाह
सीएम ने अपने और अपने परिवार के नाम पर माइनिंग लीज ली
सीएम ने अपने और अपने परिवार के नाम पर माइनिंग लीज ली. ईडी ने अपने चार्जशीट में बताया है कि साहिबंगज जिले में 1400 से 1500 करोड़ रुपये का अवैध खनन हुआ है. अवैध खनन में सीएम के विधायक प्रतिनिधि का नाम सबसे आगे है. जब एक जिले में 1400 से 1500 करोड़ का अवैध खनन हुआ है तो इस हिसाब से राज्य में 12 ऐसे जिले हैं जहां माइंस और मिनिरल्स हैं. वे दावा करते हैं कि सभी जिलों को मिलाकर करीब 20 हजार करोड़ का अवैध खनन हुआ है.
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स्थानीयता को नियोजन नीति से जोड़ा गया था
रघुवर दास ने कहा कि राज्य गठन के बाद तत्कालीन सरकार ने स्थानीय व्यक्ति की पहचान उसके नाम, जमीन, वासगीत, रिकॉर्ड ऑफ राइट्स के आधार पर की थी. इसके खिलाफ हाईकोर्ट में दो वाद दायर किये गये थे. कोर्ट ने स्थानीयता को परिभाषित किये जाने संबंधी संकल्प को गलत बताया. तब से कई सरकारें आई, लेकिन स्थानीयता को परिभाषित नहीं किया जा सका. 2014 में जब भाजपा की सरकार आयी तो 7 अप्रैल 2015 को सर्वदलीय बैठ हुई. सामाजिक संगठनों और बुद्धिजीवियों से राय ली गई. तब जाकर 7 अप्रैल 2016 को स्थानीयता को परिभाषित करते हुए इसे नियोजन नीति से जोड़ा गया. वर्तमान सरकार ने 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता को परिभाषित करने का फैसला लिया है. सरकार को पता है कि इसे लागू करना कोर्ट की अवमानना होगी और स्थानीय नीति लागू नहीं हो सकेगा. मुख्यमंत्री खुद 23 मार्च 2022 को इसकी वैधानिकता के बारे में विधानसभा में बोल चुके हैं.
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ओबीसी आरक्षण का फैसला भी असंवैधानिक
रघुवर ने कहा कि हेमंत सरकार का ओबीसी आरक्षण का फैसला भी असंवैधानिक है. इसे लागू करना असंभव मालूम होता है. इस तरह यहां के आदिवासी, मूलवासी और पिछड़ों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया गया है. किसी को आरक्षण देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक उस श्रेणी के छात्रों की संख्या और उनके प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करना जरूरी है. भाजपा भी ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने की पक्षधर है. 2019 में सरकार ने राज्य के सभी जिलों के डीसी को ओबीसी आरक्षण के लिए सर्वे करने का निर्देश दिया था. इस सरकार ने अबतक वह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की है. इससे लगता है कि रिपोर्ट तैयार नहीं हुई है. आखिर सरकार ने ओबीसी आरक्षण का दायरा बढ़ाने में कौन-कौन से कारक को ध्यान में रखा है. उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा स्थानीय नीति और आरक्षण लागू करना नहीं बल्कि योजनाओं को लटकना, अटकाना और जनता को भटकाना है.
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