Vinit Abha Upadhyay
Ranchi : झारखंड हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में स्पष्ट किया है कि जिस कर्मचारी को अवैध रूप से नौकरी से निकाल दिया गया हो, उसे उन लाभों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए, जो उसे उसे नौकरी से निकाले न जाने की स्थिति में मिलते. दरससल प्रार्थी उमेश कुमार सिंह की नियुक्ति वर्ष 1989 में धनबाद के चिरकुंडा स्थित जे.के.आर.आर. हाई स्कूल में क्लर्क के रूप में हुई थी. नियुक्ति के तीन वर्ष बाद 23 जुलाई 1992 को उनकी सेवाएं यह कह कर समाप्त कर दी गयी कि जिला शिक्षा कार्यालय से नियुक्ति के लिए मंजूरी नहीं मिली थी. इसके बाद उन्होंने श्रम न्यायालय में अपनी बर्खास्तगी को चुनौती दी. श्रम न्यायालय ने 25 जनवरी 1995 को याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया. श्रम न्यायालय के फैसले के बाद उमेश सिंह ने अपनी सेवाएं फिर से शुरू कीं. लेकिन 23 जुलाई 1992 से 30 नवंबर 2009 तक की कार्य अवधि के लिए उन्हें वेतन समेत अन्य लाभ नहीं दिया गया. उमेश कुमार सिंह ने अवैध समाप्ति की अवधि के लिए सेवाओं के नियमितीकरण की मांग को लेकर हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की. इस रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश जस्टिस डॉ एसएन पाठक की अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की 23 जुलाई 1992 से 30 नवंबर 2009 तक की सेवाओं को सेवानिवृत्ति के बाद और पेंशन संबंधी लाभों सहित सभी लाभ दिये जाने चाहिए.
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