Krishna Kant
अगस्त 2019 की बात है. रामदेव के सहयोगी बालकृष्ण ने भोजन किया और उनके सीने में दर्द शुरू हो गया. उन्हें बेहोशी छाने लगी. उनके स्टाफ ने उन्हें नजदीकी निजी अस्पताल पहुंचाया. वही अस्पताल जहां पर रामदेव बाबा के अनुसार “बेकार एलोपैथी” वाले डॉक्टर होते हैं. 15 मिनट उपचार के बाद अस्पताल के डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए. इसके बाद उन्हें एम्स, ऋषिकेश लाया गया. बालकृष्ण के साथ रामदेव भी मौजूद थे. एम्स निदेशक प्रो रविकांत की निगरानी में बालकृष्ण का उपचार हुआ. उस समय एक दर्जन डॉक्टर मौजूद थे. आज ये ठग कह रहा है कि एलोपैथी बेकार और दिवालिया है. आज ये डॉक्टरों की मौत और उनके साइंस का उपहास कर रहा है.
बीजेपी सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने दावा किया कि वे गौ मूत्र का सेवन करती हैं. इसलिए उन्हें कोरोना नहीं हुआ. जबकि मार्च में ही इन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई थी, तो इनको भोपाल से एयरलिफ्ट करके मुंबई ले जाया गया था और कोकिलाबेन अस्पताल में भर्ती कराया गया था. आतंकवाद के आरोप में जेल में थीं तो लगातार इनका इलाज चलता था. जो गांधी का नहीं हुआ, वह जान बचाने वाले डॉक्टरों का क्या होगा?
अनिल विज हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री हैं. कल उन्होंने ट्वीट किया, “हरियाणा में कोविड मरीजों के बीच एक लाख पतंजलि की कोरोनिल किट मुफ्त बांटी जाएंगी. कोरोनिल का आधा खर्च पतंजलि ने और आधा हरियाणा सरकार के कोविड राहत कोष से वहन किया है.”इसी ट्वीट पर पत्रकार दिलीप मंडल ने पूछा, “आपने कोरोना होने पर अपना इलाज मेदांता हॉस्पिटल, गुड़गांव में क्यों कराया? घर पर रहकर कोरोनिल क्यों नहीं ली?” जाहिर है कि सवाल लाख टके का है. लेकिन इसका जवाब नहीं आना है. कोरोना होने के बाद अनिल विज पहले पीजीआई रोहतक और बाद में गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती हुए थे.
गृह मंत्री अमित शाह को कोरोना हुआ तो वे गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती हुए थे और एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम मेदांता अस्पताल पहुंची थी.
कोई भी बड़ा नेता बीमार पड़ता है तो उन्हें देश का सर्वोत्तम इलाज मिलता है. और ये ठीक भी है कि उस दौरान वे मूत्रोपचार नहीं करते, वरना जान ही चली जाए. दिक्कत ये है कि वे आम आदमी को मूत्रोपचार की सलाह देते हैं.
आम आदमी बिहार से दिल्ली आता है. एम्स के बाहर महीनों सड़क पर पड़ा रहता है. किसी नेता और वीआईपी का पेट भी झरने लगे तो तुरंत एम्स में बिस्तर लेता है. डॉक्टर और उच्च कोटि की चिकित्सा लेता है. ठगों का यही गिरोह आपको कोरोनिल, गोबर, गोमूत्र और चूरन चटनी खाने की सलाह देकर उल्लू बनाता है. वह परंपरा और भारतीयता के नाम पर आपको घटिया सामान बेचकर अपना खजाना भरता है.
वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि आप बेहतर अस्पताल और चिकित्सा सुविधा की मांग न करें. इन ठगों को पहचानिए, अच्छी चिकित्सा सुविधा की मांग कीजिए और अपने डॉक्टरों पर भरोसा कीजिए.
जो किसान सदियों से गौ पालन कर रहे हैं, वे न तो कभी गोबर खाते हैं, न कभी गोमूत्र पीते हैं. जिन्हें लगता है कि गाय, भैंस, कूकुर और सूअर के उच्छिष्ट में अमृत है, वे ऐसा करने को आजाद हैं. आप उनके चक्कर में पड़ेंगे तो आपकी जान जा सकती है.
नोट: आयुर्वेद के अच्छे या बुरे होने का प्रश्न ही नहीं है. वह हमारी पारंपरिक पद्धति है, जिसके लिए हमें किसी से कुछ नहीं सुनना. आयुर्वेद के लिए भी अच्छे डॉक्टरों की सलाह लें.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.