Ranchi : भाजपा की राष्ट्रीय मंत्री व रांची की मेयर आशा लकड़ा ने राज्य सरकार द्वारा कोर्ट फीस में अप्रत्याशित वृद्धि का विरोध किया है. शनिवार को प्रेस वार्ता में आशा लकड़ा ने कहा कि कोर्ट फीस में वृद्धि आदिवासियों व गरीबों पर जुल्म के समान है. हेमंत सरकार से जल्द वापस ले. कहा कि राज्य सरकार आदिवासी और गरीब विरोधी है. आदिवासी बहुल राज्य में सरकार ऐसी स्थिति उत्पन्न करना चाहती है कि भविष्य में आदिवासी कभी अदालत का मुंह न देख सके. आदिवासी अपने खिलाफ हो रहे अत्याचार को बस सहन करता रहे, अदालत तक न पहुंचे.
कोर्ट फीस में 10 गुना से अधिक वृद्धि की गयी है
उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार ने कोर्ट फीस में 10 गुना से अधिक वृद्धि की है. संपत्ति विवाद से संबंधित मामला फाइल करने में पहले 50 हजार रुपये लगते थे. अब अधिकतम तीन लाख रुपये तक की कोर्ट फीस लगेगी. पहले जनहित याचिका दायर करने के लिए मात्र 250 रुपये खर्च करने पड़ते थे, अब जनहित याचिका के लिए एक हजार रुपये जमा करने होंगे. यह पूर्व की तुलना में चार गुना अधिक है. कहा कि झारखंड में पिछले 13 वर्षों में 2009 से 2021 तक गैर कानूनी गतिविधियां अधिनियम की धाराओं के तहत 704 मामले दर्ज किए गए हैं. इनमें 52.3 प्रतिशत केस आदिवासियों पर दर्ज किए गए हैं, जबकि 23.1 प्रतिशत ओबीसी और 6.7 प्रतिशत दलितों पर दर्ज हुए हैं.
बार काउंसिल ने भी विधेयक वापस लेने की मांग की है
उन्होंने कहा कि कोर्ट फीस से संबंधित (झारखंड संशोधन अधिनियम) विधेयक 22 दिसंबर 2021 को विधानसभा से पारित कराया गया था. 11 फरवरी 2022 को राज्यपाल से इसकी स्वीकृति मिली थी. गजट प्रकाशित होने के बाद कोर्ट फीस में वृद्धि को लेकर भारी विरोध हो रहा है. 22 जुलाई 2022 को झारखंड स्टेट बार काउंसिल ने राजभवन को आवेदन देकर कोर्ट फीस में हुई वृद्धि को वापस लेने की मांग की थी. झारखंड सरकार ने कोर्ट फीस अधिनियम-2021 में संशोधन कर स्टांप फीस में छह से लेकर दस गुना तक की वृद्धि कर दी है.
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