Abhilasha
LagatarDesk: केंद्र सरकार ने एक योजना तैयार की थी कि अगले 5 साल में भारत में रिफाइनिंग क्षमता को दोगुना हो जायेगी. साथ ही उन्होंने ये भी कहा था कि प्राकृतिक गैस के प्रयोग को चार गुना किया जायेगा. मोदी सरकार का यह कथन आश्चर्यचकित करता है. इस अश्चर्य की ठोस वजह है. इसे ऐसे समझते हैं –
- भारत में वर्तमान में कच्चे तेल का उत्पादन केवल 3 करोड़ टन है और भारत प्रतिवर्ष 22 करोड़ टन क्रूड ऑयल को विदेशों से मंगवाता है.
- वहीं भारत में प्राकृतिक गैस का उत्पादन केवल 3000 करोड़ क्यूबिक मीटर है और प्रतिवर्ष 3500 करोड़ क्यूबिक मीटर नैचुरल गैस विदेशों से मंगवाना पड़ता है.
- जिस तरह केंद्र सरकार आनेवाले 5 साल में इनके प्रयोग को बढ़ाने की बात कर रही है, उसे पूरा करने के लिए 2025 तक भारत में कच्चे तेल के उत्पादन को 7 गुना और प्रकृतिक गैस के उत्पादन को 2 गुना करनी पड़ेगी. 2025-26 तक भारत में इतनी अधिक मात्रा में उत्पादन बढ़ाने की कोई संभावना नजर ही नहीं आती है. अंत में भारत के पास एकमात्र उपाय बचता है. कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस का बाहरी देशों से आयात करना.
- यदि हम कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस का उपयोग को बढ़ाते है तो वर्तमान समय में जितना इसको बाहरी देशों से मंगवा रहे है उससे दोगुना भविष्य मंगवाने की जरुरत पड़ेगी.
- इससे विदेशी मुद्रा भंडार में विदेशी मुद्रा में कमी हो जायेगी.
- प्राकृतिक गैस के उपयोग से मिथेन गैस निकलता है और मिथेन गैस कार्बन डाइऑक्साइड(CO2), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) और नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) से भी ज्यादा खतरनाक है.
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भारत पूरी तरह आयात पर ही टीकी हुई है. केंद्र सरकार की इस तरह की योजना अचंभित करती है, क्योंकि भारत में इतना उत्पादन जब है ही नहीं तो सरकार अपनी योजना को पूरा कैसे करेंगा. यहां तक कि केंद्र सरकार के मंत्री ने भी कोयला का उत्पादन बढ़ाने के संबंध में पहले ही घोषणा कर चुके हैं. यदि कोयले का उत्पादन बढ़ाया जायेगा तो इससे नुकसान भी हमें ही होगा.
- कोयला का उत्पादन बढ़ने का अर्थ है कि इसके उपयोग को भी बढ़ाना और कोयले की खपत हम जितना बढ़ायेंगे. इससे CO2, SO2 और N2O गैस उतना ही निकलेगा. जिससे ग्लोबल वार्मिग होने की संभावना और अधिक बढ़ जायेगा.
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इलेक्ट्रॉनिक वाहनों और पेट्रोल में इथेनॉल मिश्रण की योजना में भी सरकार फेल
भारत सरकार ने ऊर्जा प्रबंधन को लेकर भी कई कदम उठाये हैं. सरकारव पेट्रोल के साथ इथेनॉल का मिश्रण और इलेक्ट्रानिक वाहनों को बढ़ावा देने जैसी योजनाएं भी बना रही हैं. भारत में इथेनॉल का उत्पादन कम है. भारत में इथेनॉल की मात्रा बहुत कम है. भारत में जब इसका उत्पादन इतना है ही नहीं तो सरकार इसकी आपूर्ती कैसे कर पायेगी. अतंत: सरकार को इसे भी बाहरी देशों से ही मंगवाना पड़ेगा. भारत की अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए इतना आयात अच्छा नहीं है. और किसी भी देश की अर्थव्यवस्था इस बात पर निर्भर करती है कि उसका निर्यात का अनुपात आयात से कितना अधिक है. ज्यादा आयात का अर्थ है विदेशी मुद्रा भंडार में विदेशी मुद्रा में कमी.
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क्या भारत बिना नींव का महल बना रहा है
सरकार इलेक्ट्रानिक वाहनों के उपयोग को भी बढ़ावा दे रही है. सरकार की ये नीति में भी विफल होती नजर आ रही है. इलेक्ट्रानिक वाहन की बैटरी को निश्चित अंतराल में चार्ज करने की आवश्यकता होती है और इसके लिए कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट से पैदा होनेवाली बिजली का उपयोग किया जाता है.
- जब भारत में Renewable Energy इतनी मात्रा में उपलब्ध ही नहीं है, तो सरकार बैटरी को चार्ज करने के लिए इतनी मात्रा में बिजली उपलब्ध कैसे करायेगी.
- इलेक्ट्रानिक वाहनों के मुख्य भाग लीथियम ऑयोन बैटरी सेल है और भारत में इसका उत्पादन बहुत कम है. भविष्य में इतनी अधिक मात्रा में भारत में इसका उत्पादन की संभावना भी नहीं दिखती है.
- अपको बता दें कि चीन ही एकमात्र ऐसा देश है जिसके पास लीथियम ऑयोन बैटरी सेल बनाने की इतनी अधिक क्षमता है. इससे तो साफ पता चल रहा है कि सरकार आनेवाले दिनों में चीन से इसे मंगवाये.
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अगर सरकार को भविष्य में इतनी अधिक मात्रा में इसका मैन्युफैक्चरिंग करनी थी. तो लिथियम बैटरी सेल और आवश्यक रसायन के उत्पादन के लिए सरकार ने कोई योजना क्यों नहीं बनाई. क्या सरकार घोड़े के आगे गाड़ी खड़ा करने की सोच रही है.
ऊपर दिये गये तथ्यों से तो लगता नहीं कि सरकार इन सारी योजनाओं को कभी पूरा कर पायेगी. सरकार केवल वैसी योजना बना रही है, जिसमें सिर्फ चीजों को बाहर से ही मंगवाना पड़े. सरकार को आयात से ज्यादा निर्यात में ध्यान देने की जरुरत है.