LagatarDesk : देश की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी इंफोसिस को 1990 में 2 करोड़ में खरीदने की पेशकश हुई थी. इंफोसिस के फाउंडर एन आर नारायण ने खुद इसकी जानकारी दी है. लेकिन एन आर नारायण और को-फाउंडर ने इस ऑफर को ठुकरा दिया था. इंफोसिस अब देश की दूसरी सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर एक्सपोर्टर कंपनी बन गयी है. इस कंपनी का मार्केट वैल्यूएशन 6.5 लाख करोड़ रुपये हो गया है.
1991 के आर्थिक सुधारों ने सफलता के रास्ते खोले
देश में इकोनॉमिक रिफॉर्म्स के 30 वर्ष पूरे हो चुके हैं. इस मौके पर मूर्ति ने एक इंटरव्यू दिया. उन्होंने बताया कि फाउंडर्स के संकल्प और 1991 के आर्थिक सुधारों के बिना कंपनी इस मुकाम पर नहीं पहुंच सकती थी . इस बदलाव ने अचानक इंफोसिस के लिए सफलता के रास्ते खोल दिये थे.
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आर्थिक सुधारों के कारण कंपनी का काम हुआ था आसान
1991 के आर्थिक सुधारों के कारण कंपनी को विदेश जाने और कंप्यूटर आयात करने के लिए सरकार या आरबीआई की अनुमति पर निर्भर नहीं रहना पड़ा. मूर्ति ने कहा कि 1991 में इंफोसिस का मार्केट कैप काफी छोटा था. कंपनी की उम्मीदें, महत्वाकांक्षाएं और दायरे भी बड़े नहीं थें. कंपनी का ऑफिस बैंगलोर के जया नगर में था.
उदारीकरण से पहले परमिशन के लिए काटने पड़ते थे दिल्ली के चक्कर
आर्थिक सुधारों से पहले कंपनी को कंप्यूटर, कंप्यूटर एक्सेसरीज और सॉफ्टवेयर आयात करने की परमिशन लेने के लिए दिल्ली जाना पड़ता था. इसमें काफी समय बर्बाद होता था. साथ ही हमें मुंबई में आरबीआई ऑफिसेज के भी चक्कर लगाने पड़ते थे. उन दिनों कंप्यूटर आयात करना किसी टॉर्चर से कम नहीं था. बैंकों की समझ में सॉफ्टवेयर नहीं आता था और वे फिजिकल कोलैट्ररल मांगते थे. ऐसे में बैंकों से टर्म लोन और वर्किंग कैपिटल लोन हमारी इंडस्ट्री के लिए नहीं था.
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10 वर्षों काम करने के बाद भी को-फाउंडर के पास नहीं था फोन
मूर्ति ने बताया कि 10 वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद भी इंफोसिस के को-फाउंडर्स की वित्तीय स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे घर और कार खरीद सकें. उनके घर पर फोन तक नहीं होता था.