Faisal Anurag
राजनैतिक परिस्थितियां गुणात्मक रूप से बदल गयी हैं बावजूद इस बदलाव के अनुकूल रणनीति, विचार और साझेदार के साथ अधिक विश्वनीय सहयोग और सहकार के रास्ते को लेकर अनेक भ्रम मौजूद हैं. 2014 के बाद से सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन के सोचने के तरीकों, बहसों के उठते सवाल और उलझते संदर्भ पहले की तरह नहीं हैं.
इन संजीदा हालातों में विपक्ष के कुछ नेताओं का रवैया भ्रम का न केवल शिकार है बल्कि एनसीपी के नेता शरद पवार के बयान को इस संदर्भ में ही समझा जा सकता है. मुंबई में दिए गए एक इंटरव्यू में शरद पवार ने कांग्रेस पर तंज कसा है. महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार में कांग्रेस के साथ पवार का बयान ऐसे समय में आया है जब ममता बनर्जी तमाम विपक्षी दलों को भाजपा के खिलाफ एक बड़े गठबंधन का हिस्सा बनाने का प्रयास कर रही है. कुछ ही महीने पहले शरद पवार की बातचीत प्रशांत किशोर से भी हुयी थी. इस बातचीत में पवार ने मजबूत एकता के सूत्रों पर विपक्ष को नजदीज लाने के लिए प्रशांत किशोर के प्रयास को सराहा था और उसे हर हाल में मदद करने का प्रयास किया था. पिछले दिनों शरद पवार की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई लंबी बातचीत के बाद मीडिया में अनेक तरह के अनुमान लगाए गए. शरद पवार ने इस इंटरव्यू में साफ तौर पर कहा है कि कांग्रेस अतीत के मोह से निकलना ही नहीं चाहती और विपक्ष की एका की राह की यह मुख्य बाधा है.
शरद पवार ने इस इंटरव्यू में राहुल गांधी को निशाने पर लेते हुए कहा है कि कांग्रेस के लोग अपने नेतृत्व पर अलग रुख अपनाने को तैयार नहीं हैं. राहुल गांधी की भूमिका को लेकर शरद पवार का यह रूख नया नहीं है. राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी,आरएसएस और अडानी- अंबानी के खिलाफ सख्त रूख अपना रखा है. मध्यमार्गी नेताओं के लिए कड़ी आलोचना का यह रूख अपच-सा है. कांग्रेस के अंदर के ओल्ड गार्ड के अनेक नेता भी नहीं चाहते कि प्रधानमंत्री के खिलाफ कड़ी बातें की जाएं. 2019 के चुनाव की हार के बाद जिम्मेदारी लेने के बजाय कांग्रेस के ओल्ड गार्ड ने परोक्ष तौर पर यह सवाल उठाया था. ये वही नेता हैं जो यह भी नहीं चाहते हैं कि गांधी परिवार के साथ उनके रिश्ते खराब न हों, लेकिन वे यह भी नहीं चाहते हैं कि सरकार के प्रमुख लोगों के साथ उनके संबंध खराब हों. राहुल गांधी ने संबंधों की तुलना में विचारों को ज्यादा प्रमुखता देने वाले नेता की छवि बनायी है.
एनडीटीवी खबर के अनुसार पवार ने कहा “मैंने उत्तर प्रदेश के जमींदारों के बारे में एक कहानी सुनाई थी जिनके पास काफी जमीन और बड़ी हवेलियां हुआ करती थीं. भू-सीमन कानून के कारण उनकी जमीन कम हो गयी. हवेलियां बनी रहीं लेकिन उनके रखरखाव व मरम्मत की क्षमता (जमींदारों की) नहीं रही. उनकी कृषि से होने वाली आय भी पहले जैसी नहीं थी. कई हजार एकड़ से सिमटकर उनकी जमीन 15-20 एकड़ रह गयी. जमींदार जब सुबह उठा, उसने आसपास के हरे-भरे खेतों को देखा और कहा कि सारी जमीन उसकी है. वह कभी उसकी थी लेकिन अब नहीं है.” दरअसल शरद पवार साफ तौर पर कांग्रेस को एक ऐसी ताकत के रूप में रेखांतिक कर रहे हैं जो अतीत से चिपकी बैठी है. इस तल्ख बयान से साफ जाहिर होता है कि महाराष्ट्र में एनसीपी और कांग्रेस के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. ठीक तो एनसीपी और शिवसेना के बीच भी नहीं है. लेकिन इस तरह के बयान से विपक्ष की राह सुगम शायद ही हो सके.
तो क्या विपक्ष के पास भाजपा के विरोध की ताकत कम हो गयी है या फिर नेतृत्व के लिए बारगेनिंग ही उनकी प्राथमिकता है. ममता बनर्जी ने कई बार कहा है कि नेता कौन बनेगा इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि भाजपा को हराया जाए. ममता बनर्जी भी विपक्ष में राहुल गांधी के बाद एक ऐसी नेता हैं जो मोदी और अमित शाह को खुली चुनौती देती हैं. भाजपा के खिलाफ सैद्धांतिक संघर्ष की जरूरत के समय बीच का रास्ता अपना लेना अनेक नेताओं की नियति बन गयी है. देश में पिछले 30 सालों में पहली बार देखा जा रहा है कि भाजपा की सरकार से लड़ने की दृढ़ता और विचार किसान आंदोलन ने दिया है. समझौता के बजाए निर्णायक लड़ाई का एक ऐसा माइल स्टोन खड़ा कर दिया है जो मध्यमार्ग पर चलने वाले नेताओं के लिए परेशानी का सबब है. नेताओं ने मध्यमार्ग की नयी परिभाषा गढ़ ली है, नाराज किसी को नहीं करो. जब मूल्य,इतिहास और तरीके बदल रहे हों राजनीति के सूत्र बदलने की जरूरत है और विपक्ष इसी तरीके की खोज कर भाजपा को चुनौती दे सकता है.