Jamshedpur : टाटा स्टील फ़ाउंडेशन द्वारा आयोजित अखिल भारतीय आदिवासी सम्मेलन ‘संवाद’ ऑनलाइन प्रारूप में आज संपन्न हुआ. इसमें दुनिया भर के विभिन्न क्षेत्रों से जनजातीय समुदायों को एक मंच पर लाया गया. इस वर्ष भारत के 23 राज्यों, 5 केंद्र शासित प्रदेशों और 17 देशों की 114 जनजातियों के 3,000 से अधिक लोगों ने ‘संवाद’ में हिस्सा लिया, जिनमें श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका, नेपाल, केन्या, फिलीपींस, थाईलैंड और तंजानिया शामिल हैं. इस मौके पर छह लोगों को ‘संवाद’ फेलोशिप प्रदान की गई.
इन्हें किया गया सम्मानित
गढ़िया लोहार जनजाति की दीपा पवार को गढ़िया लोहार की पारंपरिक कला और लोहे के हथियार बनाने के दस्तावेजीकरण पर परियोजना के लिए, वान गुर्जर जनजाति से तौकीर आलम को वान गुज्जर की भाषा के संरक्षण की एक पहल ‘मारी बिरसा (हमारी विरासत)’ पर परियोजना के लिए, कादर जनजाति से बिबथा एस को कादर समुदाय की सांस्कृतिक व प्राकृतिक विरासत के दस्तावेजीकरण पर परियोजना के लिए, बियात जनजाति से लालरेम्रुआता नमलाई को बियात देसी खेल के दस्तावेज़ीकरण और जनजाति के सांस्कृतिक पुनरुद्धार और संरक्षण में इसकी भूमिका पर परियोजना के लिए, संगताम जनजाति से अरिबा अनार को संगताम जनजाति के लोक गीतों और लोक संगीतों के पुनरुत्थान पर परियोजना के लिए से
और पुंपई नागा जनजाति के के. बोवांग खो को ‘रिक्लेम द पास्ट ऐंड इम्पॉवर द प्रेजेंट : पाउली (ओनाइम का घड़ा)’ पर परियोजना के लिए फेलोशिप मिली.
आज संवाद का म्यूजिकल कलेक्टिव ‘रिदम ऑफ द अर्थ’ की एक संगीतमय शाम दर्शकों को एक मधुर यात्रा में ले गई। मौके पर, लोक रॉक बैंड ‘अतृप्त’ के सहयोग से ‘आरओटीई’ द्वारा रचित दो कम्पोजिशन भी जारी की गईं.
इसके अलावा, अपने आधुनिक नागपुरी गीतों के लिए प्रसिद्ध संगीत बैंड सलेम ने भी इस अवसर पर प्रस्तुति दी।
उद्घाटन के दिन, दो सिंगल्स ’बिरसा केर रायज (प्रख्यात लोक गायक पद्म श्री मुकुंद नायक के सहयोग से रची यह आदिवासी पहचान के मूल भगवान बिरसा मुंडा को एक श्रद्धांजलि है) और अबुआ दिसुम अबुआ रायज (“हमारी भूमि, हमारा शासन“, जो 19 वीं शताब्दी में भगवान बिरसा मुंडा द्वारा गढ़े गए नारे से प्रेरणा लेता है) भी जारी की गई.
सम्मेलन के दौरान विशेषज्ञों और आदिवासी नेतृत्वकर्ताओं ने चर्चा की कि चुनौतियों से भरे इस समय के दौरान शासन का पारंपरिक मॉडलों ने इतने प्रभावकारी तरीके से किस प्रकार काम किया। चर्चा में समुदायों को साथ लाने के लिए शासन के अभिनव तरीकों और संकट का हल करने में समानांतर शासन प्रणालियों के बीच समन्वय को समझने का प्रयास किया गया.
भारत के आठ राज्यों में 23 स्थानों पर स्क्रीनिंग आयोजित की गई। इन स्क्रीनिंग को विशेष रूप से ग्रामीण आदिवासी बस्तियों में सुविधाजनक बनाया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अधिक से अधिक लोगों को सम्मेलन में शामिल होने का अवसर मिले.
सौरव रॉय, चीफ, कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी ने कहा, “इस खोज में हम यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि संकट काल के बावजूद बातचीत जारी रहे.
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संवाद की विभिन्न शाखाओं ने जैसे आदिवासी हस्तकला, आदिवासी फिल्म प्रदर्शन, आदिवासी व्यंजन और विभिन्न जनजातियों के सांस्कृतिक प्रदर्शन, जो संवाद के सार का निर्माण करते हैं, पारंपरिक प्रथाओं, अभ्यासों और समृद्ध विरासत को अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से आम जनता तक पहुंचाया.
कला प्रेमियों एवं उत्साही लोगों को उरांव, सोहराई, सौरा, गोंड, वारली और रजवार भित्ति चित्र कला रूपों पर आयोजित मास्टरक्लास में हिस्सा लेने का मौका मिला, जिन्हें प्रख्यात आदिवासी कारीगरों द्वारा होस्ट किया गया था. संवाद के प्रत्येक दिन का समापन मणिपुर के गुरु रेवाबेन जैसे प्रतिष्ठित कलाकारों और नागालैंड के टेटसो सिस्टर्स और गालो, सिद्धी, डंडामी मादिया, भूमिज व अन्य की जनजातियों के सांस्कृतिक समूहों द्वारा सांस्कृतिक प्रदर्शन के साथ हुआ.
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फ़िल्म प्रदर्शन खंड ‘समुदाय के साथ’ के अंतर्गत अशोक वीलू की ‘लुक एट द स्काई’, चिन्ताई खियमनियुंगन की “स्ट्रेंथ इन डायवर्सिटी” और अभिजीत पात्रो की ‘जोहार’ नामक फिल्मों का प्रदर्शन हुआ. आज ‘समुदाय के साथ’ फिल्म प्रतियोगिता भी शुरू की गई. इस वर्ष 20 राज्यों से 103 पात्र आवेदन मिले हैं, जो पिछले वर्ष प्राप्त आवेदनों की तुलना में दोगुने से अधिक हैं.
संवाद पिछले 6 वर्षों में भारत के 27 राज्यों और 18 देशों के 117 जनजातियों के 30,000 से अधिक लोगों को एक साथ लाया है और हर वर्ष जमशेदपुर के नागरिकों को इसका बेसब्री के साथ इंतजार रहता है. ‘