New Delhi : ब्रिटेन का मानमर्दन करते हुए ओलंपिक में स्वर्ण पदक के साथ स्वतंत्र भारत को नयी पहचान दिलाने वाली 1948 लंदन ओलंपिक टीम के सदस्य केशव दत्त के निधन के साथ ही भारतीय हॉकी के स्वर्णिम युग का आखिरी स्तंभ भी ढह गया. भारतीय हॉकी के सर्वश्रेष्ठ हाफ बैक में से एक केशव दत्त ने बुधवार को कोलकाता में अंतिम सांस ली. वह 95 वर्ष के थे.
लाहौर में 1925 में जन्में दत्त 1952 हेलसिंकी ओलंपिक की स्वर्ण पदक विजेता भारतीय टीम के उपकप्तान थे.पिछले साल बलबीर सिंह सीनियर के निधन के बाद वह स्वतंत्र भारत की पहली ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता हॉकी टीम के आखिरी सदस्य थे. भारत ने लंदन के वेम्बले स्टेडियम पर अपने पूर्व शासक ब्रिटेन को 4.0 से हराकर ओलंपिक में ऐतिहासिक पीला तमगा जीता था. उस जीत ने भारतीय हॉकी के सुनहरे दौर का सूत्रपात किया जो अगले दो ओलंपिक में भी जारी रहा. हेलसिंकी में 1952 में भारत ने नीदरलैंड को 6.1 से हराकर लगातार पांचवां स्वर्ण पदक जीता था.
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ध्यानचंद की कप्तानी में कर चुके थे पूर्वी अफ्रीका का दौरा
इससे पहले ध्यानचंद के उम्दा खेल के दम पर भारत ने तीन बार स्वर्ण जीते थे. लेकिन वह आजादी से पहले की टीम थी.लंदन खेलों से पहले दत्त ने ध्यानचंद की कप्तानी में पूर्वी अफ्रीका का दौरा किया. मेजर ध्यानचंद और केडी सिंह बाबू जैसे दिग्गजों से हॉकी का ककहरा सीखने वाले दत्त ने पश्चिमी पंजाब शहर में अपनी पढ़ाई पूरी की. वह अविभाजित भारत में राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में पंजाब के लिये खेलते थे. विभाजन के बाद वह बांबे (मुंबई) आ गए और फिर 1950 में कोलकाता में बस गए. उन्होंने राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में बॉम्बे और बंगाल के लिये खेला.
मोहन बागान के लिए हॉकी खेलते हुए उन्होंने कलकत्ता लीग छह बार और बेटन कप तीन बार जीता. उन्हें 2019 में मोहन बागान रत्न सम्मान भी प्रदान किया गया और यह सम्मान पाने वाले वह पहले गैर फुटबॉलर थे.
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