Kiriburu (Shailesh Singh) : भाकपा माओवादी नक्सलियों द्वारा पश्चिम सिंहभूम जिला स्थित कोल्हान रिजर्व वन क्षेत्र के जंगलों में पुलिस व सीआरपीएफ को नुकसान पहुंचाने हेतु जगह-जगह लगाये गये बूबी ट्रैप्स नामक प्रेसर आईडी पुलिस से ज्यादा ग्रामीणों एंव उनके पालतू जानवरों के लिए खतरनाक होने लगा है. 20 नवम्बर को टोंटो थाना अन्तर्गत रेंगडडाहातु गांव के टाटीबेड़ा जंगल में लकड़ी लाने गये रेंगड़ाहातु गांव निवासी 45 वर्षीय चेतन कोड़ा की दर्दनाक मौत इसी बूबी ट्रैप्स के तार पर पड़ने से हुई आईडी विस्फोट में हो गई थी.
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बूबी ट्रैप्स होता है विभिन्न प्रकार का
उल्लेखनीय है कि भाकपा माओवादी के पोलित ब्यूरो, केन्द्रीय कमिटी, स्पेशल एरिया कमिटी स्तर से जुड़े जहां बडे़ नक्सली रहते या कैंप किये होते हैं, उस क्षेत्र से पुलिस की फायर रेंज से दूर के क्षेत्रों में नक्सलियों की तकनीकी सेल द्वारा घने जंगलों अथवा पुलिस के आने वाले मार्गों में बूबी ट्रैप्स लगाया जाता है. ताकि पुलिस को भारी नुकसान पहुंचाया जा सके. भाकपा माओवादी संगठन के सैक सदस्य तथा पच्चीस लाख के इनामी नक्सली संदीप दा (अभी जेल में) ने बूबी ट्रैप्स के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुये बताया था की यह बूबी ट्रैप्स विभिन्न प्रकार के होते हैं.
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लैंडमाइन्स को चार्ज कर ब्लास्ट कराया जाता है
नक्सली संदीप दा ने बताया था कि पुलिस के आने वाले संभावित मार्गों में दर्जनों स्थानों पर जमीन के अंदर लैंडमाइन्स बिछाकर उसे डेटोनेटर-बुस्टर व विशेष प्रकार की बैट्री से कनेक्ट कर लंबे जीआई तार से जोड़ा जाता है. जीआई तार को जंगल में गिरे सूखे पत्तों या झाड़ियों से ढ़क दिया जाता है. ताकी पुलिस अगर पैदल आये तो तार से टकराये जिससे तार पर दबाव पड़ने के साथ हीं बैट्री से कनेक्ट डेटोनेटर व बुस्टर लैंडमाइन्स को चार्ज कर ब्लास्ट कराया जा सकें. ब्लास्ट कराने के लिये किसी की जरूरत नहीं होती है. बल्कि यह तार पर प्रेसर पड़ने से स्वंय ब्लास्ट हो जाता है. जिससे पुलिस को भारी नुकसान पहुंचता है.
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नक्सली इस तरह पहुंचाते है पुलिस को नुकसान
इसके अलावे दर्जनों स्थानों पर गड्ढे कर गड्ढे के अंदर लोहे की मोटी नुकिली कील एक लकड़ी के पटने में लगा गड्ढे में रख उस गड्ढे को सुखे पत्तों से ढ़का जाता है. ताकि गड्ढे में पैर पड़ने से जवान का पैर लोहे की कील से जख्मी हो या मोच आये जिससे वह चलने में असमर्थ हो जाए. इसके अलावे ऐसा हीं गड्ढा खोद गड्ढे से कुछ दूरी पर जमीन के अंदर लैंडमाइन्स को प्लांट किया जाता है. जिसका कनेक्शन गड्ढे के उपर लगे जीआई तार से जोड़ा जाता है. ताकि जीआई तार पर जवानों के पैर का दबाव पड़ने से वहलैंडमाइन्स चार्ज होकर ब्लास्ट करे. जिस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के बूबी ट्रैप्स लगाया गया होता है उस क्षेत्रों में किसी भी ग्रामीणों व उसके पालतू मवेशियों को ले जाने की मनाही होती है. क्योंकि इस ट्रैप्स की चपेट में आने से किसी की भी जान जा सकती है. इसके अलावे नक्सल प्रभावित क्षेत्र के पगडंडी या कच्ची-पक्की मार्गों के दोनों तरफ बांस या अन्य लकड़ी गाड़ उस लकड़ी के उपर नक्सल से जुड़ी बैनर लगा दिया जाता है तथा उसके आसपास जमीन के अंदर शक्तिशाली लैंडमाईन्स गार कर उस लैंडमाइन्स के तार को बांस या लकड़ी से बांध दिया जाता है ताकि पुलिस लकड़ी अथवा बांस के उपर बंधे नक्सली बैनर को हटाने के लिये बांस या लकड़ी को जैसे हीं हिलाये वैसे हीं लकड़ी से लगा जीआई तार जो लैंडमाइन्स से कनेक्ट रहता है उसमें हलचल या दबाव पडे़ जिससे लैंडमाइन्स ब्लास्ट होकर जवानों को भारी नुकसान पहुंचाये. ऐसे बमों को प्रेशर बम भी कहा जाता है जिसे विभिन्न प्रकार व रूपों में नक्सलियों द्वारा प्लांट किया जाता रहा है.
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ग्रामीण नक्सलियों का नहीं करते है विरोध
चेतन कोड़ा की मौत नक्सलियों द्वारा लगाये गये इसी बूबी ट्रैप्स की वजह से हो गई. हालांकि इसके लिये ग्रामीण भी जिम्मेदार हैं. अगर नक्सली उनके गांव क्षेत्र या आसपास के जंगलों व पहाड़ियों पर ऐसा बूबी ट्रैप्स लगाते हैं तो इन्हें उसका खुलकर विरोध करना चाहिए. क्योंकि ग्रामीण प्रतिदिन ऐसे जंगलों में लकड़ी, वनोत्पाद लाने अथवा पालतू जानवरों को चराने जाते हैं. नक्सलियों को मना नहीं कर सकते हैं तो इसकी सूचना पुलिस को देनी चाहिए ताकि वह ऐसे बूबी ट्रैप्स को जंगल से निकाल खतरा मुक्त जोन बना सके. ग्रामीण अगर इसका विरोध नहीं करते है तो आने वाले समय में ऐसी घटनाएं और भी घट सकती है.
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