Akshay Kumar Jha
Ranchi: झारखंड बीजेपी के कभी हार्डकोर कार्यकर्ताओं में इनकी गिनती होती थी. इन्होंने 1992 में ही बीजेपी ज्वाइन की. बीजेपी में रहते इन्होंने 1998-2001 तक पायलेट की ट्रेनिंग ली. 1995 में इन्हें युवा मोर्चा का संगठन प्रभारी बना दिया गया. इनके काम को देखते हुए इन्हें 2014 में किसान मोर्चा का उपाध्यक्ष का जिम्मा दिया गया. इस बीच इनकी पार्टी के कई बड़े नेताओं से नजदीकियां बढ़ीं.
लेकिन इन्हीं नजदीकियों ने बीजेपी में इनकी राजनीतिक करियर पर ब्रेक लगा दिया.10 जून 2018 को इन्हें पार्टी से बिना कारण पूछे ही बाहर कर दिया गया. आज इनका बीजेपी से दूर-दूर तक सिर्फ और सिर्फ अदावत का नाता है. आखिर ऐसा क्या हो गया था कि जो कभी बीजेपी के आलाकमानों के आंखों के तारे थे, वो बेगाने हो गये.
हाल यह हुआ कि पार्टी के बड़े पदाधिकारियों के बारे सोशल मीडिया पर लिखने की वजह से इन्हें दीपक प्रकाश, राकेश प्रसाद, सुबोध सिंह गुड्डु, प्रदीप वर्मा और हेमंत कुमार दास जैसे दिग्गजों ने कोर्ट नोटिस भेजा दिया. इनका पूरा नाम है अमृतेश सिंह चौहान.
उत्तराखंड सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत का झारखंड कनेक्शन
बात 2014-2016 की है. पार्टी में रहते हुए अमृतेश सिंह चौहान उस वक्त के झारखंड प्रभारी और मौजूदा उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत, तत्कालीन झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र राय और तत्कालीन संगठन महामंत्री राजेंद्र सिंह से काफी करीब हो गये. इतने करीब की उत्तराखंड से लेकर झारखंड तक ये किसी भी बीजेपी नेता के आवास पर बेधड़क आया-जाया करते थे. 2016 नवंबर-दिसंबर में उत्तराखंड में चुनाव हो रहा था.
2017 के दिसंबर-जनवरी से अमृतेश सिंह चौहान ने सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट से सभी को चौंकाना शुरू किया. उन्होंने त्रिवेंद्र सिंह रावत पर घूस लेने का आरोप लगाया. आरोप लगाया गया कि गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष बनाने के एवज में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अमृतेश सिंह चौहान से रिश्वत ली. ये रकम अमृतेश सिंह चौहान ने एक सेवानिवृत प्रोफेसर हरेंद्र रावत की पत्नी के बैंक खाते में डाली. फेसबुक पर पोस्ट लिखकर दावा किया गया कि हरेंद्र रावत की पत्नी डॉ सविता रावत की बहन त्रिवेंद्र सिंह रावत की पत्नी हैं. सोशल मीडिया पर बात आते ही उत्तराखंड के एक पत्रकार उमेश शर्मा ने मामले को कोर्ट तक पहुंचा दिया.
इधर फेसबुक पर बार-बार पार्टी विरोधी बयानबाजी करने की सूरत में अमृतेश सिंह रावत को पार्टी से बाहर कर दिया गया. कुछ दिनों पहले मामले पर सुनवाई करते हुए उत्तराखंड हाइकोर्ट ने घूस लेने की जांच सीबीआइ से कराने का फैसला सुनाया. जिसपर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से रोक लगाते हुए दो हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा गया है. अगली सुनवाई चार हफ्ते के बाद होगी. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को सीएम रावत की तरफ से राहत की बात मानी जा रही है.
अब इस मामले में पत्रकार उमेश शर्मा और त्रिवेंद्र सिंह रावत दोनों ही अमृतेश सिंह चौहान की तरफ देख रहे हैं. अमृतेश चौहान की भूमिका दोनों के लिए बेहद अहम मानी जा रही है.
रघुवर दास और उनकी टीम रहती थी निशाने पर
बीजेपी के बड़े दिग्गजों का साथ होने के बावजूद अमृतेश सिंह चौहान पार्टी के कुछ लोगों को खटकने लगे. उस वक्त पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास पर पार्टी और सरकार दोनों को हाईजैक कर लेने का आरोप लगने लगा. आरोप यह कि रघुवर दास जिसे चाहते थे, वहीं उनके आस-पास फटक सकता था. अमृतेश सिंह चौहान रघुवर दास की गुड बुक में नाम दर्ज नहीं करा सके. रघुवर दास पर पुराने कार्यकर्ताओं की अनदेखी करने का आरोप भी लगने लगा. इसी दौरान सोशल मीडिया पर चौहान की तरफ से रघुवर दास के खिलाफ काफी कुछ लिखा जाने लगा. चौहान का त्रिवेंद्र सिंह रावत से भी रिश्ता खराब हो चुका था.लिहाजा इन्हें पार्टी ने बाहर कर दिया गया.
रविंद्र राय की अमित शाह को चिट्ठी बाबूलाल के पास कैसे आयी
2014 झारखंड विधानसभा चुनाव के बाद तत्कालीन जेवीएम प्रमुख बाबूलाल मरांडी ने मीडिया के सामने एक चिट्ठी रखी. चिट्ठी तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र राय की तरफ से तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को लिखी हुई थी. चिट्ठी में बीजेपी की तरफ से विधायकों की खरीद-ब्रिकी के बारे लिखा था. बीजेपी के कई बड़े नाम थे. बीजेपी को नजदीक से जानने वाले कुछ लोगों का कहना है कि इस मामले को भी बीजेपी अमृतेश सिंह चौहान से जोड़ कर देखती है. कहा जाता है कि चिट्ठी रविंद्र राय के आवास से निकल बाबूलाल के घर तक ऐसे ही किसी जरिए से पहुंची थी. (हालांकि ‘लगातार’ न्यूज नेटवर्क ऐसी किसी चिट्ठी की सत्यता की पुष्टि नहीं करता है.)