Bismay Alankar
Hazaribagh : झारखंड में श्रावण के महीने में धन रोपनी अपने चरम पर होती है. उस समय गीत गाकर धान रोपती महिलाएं काफी आकर्षित करती है. समूह में गाये जाने वाले गीत को सुनकर मन खुश हो जाता है. लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि धान रोपनी केवल महिलाओं ही करती है. आपको कभी भी पुरुष धान रोपते नहीं दिखेंगे. वहीं खेतों में हल चलाते आपको केवल पुरुष ही नजर आयेंगे.
महिलाओं ने की थी खेती की शुरुआत
सदियों से चले आ रहे इस परंपरा के पीछे कई तर्क दिये जाते हैं. पुराने साक्ष्यों के अनुसार, महिलाओं ने खेती की शुरुआत की थी. साथ ही अनाज को सुरक्षित रखने का कार्य भी शुरू किया था. तब विश्व के अधिकांश क्षेत्र मातृ सत्तात्मक थे और उस वक्त खेती का कार्य महिलाओं द्वारा ही किये जाते थे. जब विश्व में पितृ सत्तात्मक आया, तब से ही शायद ऐसा हुआ कि स्त्री जननी है और सृजन का कार्य महिलाओं का होता है इसलिए रूपा धान रोपने का कार्य महिलाएं करेंगी. तब से आज तक यह व्यवस्था कायम है और यह आज भी देखने को मिलता है.
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अभी भी हल जोतने से लेकर मेड़बंदी के काम करते हैं पुरुष
दूसरी तरफ पुरुष जानवरों को साध सकते हैं और देर तक शारीरिक कर्म कर सकते हैं. इसलिए हल जोतने से लेकर मेड़बंदी तथा धान के बिचड़ों को ढोकर खेत तक ले जाने का काम पुरुष के जिम्में आया. यह पुरानी व्यवस्था आज भी देखने को मिलती है.
रोपनी के समय गीत गाकर ग्राम देवता से की जाती है फरियाद
धान रोपने का कार्य सामूहिक रूप से होता है और देर तक चलता है. ऐसे में थकान मिटाने और नीरसता को हटाने के लिए लोकगीत गाने की प्रथा शुरू हुई थी. यह प्रथा आज भी कायम है. इसलिए अक्सर आप देखते होंगे धानरोपनी के समय में महिलाएं गीत गाती हैं. अक्सर इन गीतों के जरिये ग्राम देवता को याद किया जाता है. उनसे फरियाद की जाती है कि इस गांव की और फसल की रक्षा करें. इतनी बारिश करें कि धान की फसल बेहतर हो.
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