Amit singh
Ranchi : झारखंड में इंजीनियर काली कमाई के लिए कुछ भी कर सकते हैं. जेएनएनयूआरएम शहरी जलापूर्ति योजना में इंजीनियरों ने डीपीआर बनाते समय ही लीकेज (तकनीकी गड़बड़ी) कर दी. उस लीकेज से इंजीनियर अभी भी अवैध कमाई कर रहे हैं. इंजीनियरों की अवैध कमाई के लालच से शहरी जलापूर्ति योजना की लागत 288 करोड़ से बढ़कर 472 करोड़ तक पहुंच गयी है. यानी 184 करोड़ की बढ़ोत्तरी.
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इंजीनियरों ने डीपीआर बनाते समय योजना लागत को बढ़ाया
लगातार न्यूज ने शहरी जलापूर्ति योजना में हुई तकनीकी गड़बड़ी की विस्तृत पड़ताल की. कई तकनीकी विशेषज्ञों से बातचीत की. पाया गया कि पेयजल विभाग के इंजीनियरों ने एक सोची-समझी साजिश के तहत डीपीआर बनाते समय ही योजना लागत में बढोत्तरी कर दी. अवैध कमाई के लिए इंजीनियरों ने योजना में लीकेज कर दिया है. अब यह लीकेज बड़े घोटाले में तब्दील हो गया है. इस घोटाले को लगातार न्यूज नेटवर्क ”अनोखी इंजीनियरिंग से करोड़ों की कमाई’ शीर्षक से प्रकाशित कर रहा है. आज पहली किस्त :-
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पेयजल विभाग के तीन प्रमंडल उपलब्ध नहीं करा रहे हैं दस्तावेज
पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के इंजीनियर जलापूर्ति योजना में 184 करोड़ के लीकेज (घोटाले) को दबाने में लगे हैं. विभाग के गोंदा, हटिया और वितरण प्रमंडल से जेएनएनयूआरएम शहरी जलापूर्ति योजना से संबंधित जानकारी मांगी जा रही है. मगर इंजीनियर जानबूझ कर जानकारी उपलब्ध नहीं करा रहे हैं. ऐसा इसलिए कि योजना में जानबूझ कर की गयी तकनीकी गड़बड़ी उजागर न हो जाये.
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नगर विकास विभाग ने बढ़ती लागत पर उठाया था सवाल
नगर विकास विभाग ने जलापूर्ति योजना की बढ़ती लागत पर सवाल उठाया था. मंत्रिमंडल सचिवालय एवं निगरानी विभाग को इंजीनियरों द्वारा डीपीआर बनाने में तकनीकी गड़बड़ी की शिकायत मिली. निगरानी विभाग ने जेएनएनयूआरएम अंतर्गत रांची शहरी जलापूर्ति योजना की तकनीकी जांच शुरू की. जांच में पेयजल विभाग के इंजीनियरों से सहयोग मांगा. मगर पेयजल विभाग के इंजीनियर जांच में किसी प्रकार का सहयोग नहीं कर रहे हैं.
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16 रिमाइंडर का पेयजल विभाग के इंजीनियरों ने नहीं दिया कोई जवाब
इंजीनियर अगर 16 पत्र (रिमाइंडर) के बाद भी किसी योजना की जानकारी उपलब्ध नहीं करायें, तो समझ लीजिए कि योजना में वित्तीय अनियमितता है. तकनीकी गड़बड़ी है. उस गड़बड़ी को छुपाने के लिए इंजीनियर रिमाइंडर का जवाब नहीं दे रहे हैं. योजना से संबंधित जानकारी उपलब्ध नहीं करा रहे है. मंत्रिमंडल निगरानी विभाग ने 17.10.2019 से लेकर अबतक कुल 16 पत्र पेयजल विभाग को भेजे. मगर विभागीय इंजीनियरों ने एक भी पत्र का जवाब नहीं दिया.
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मुख्य अभियंता ने लिखा है : जानकारी नहीं मिलने की वजह से जांच लंबित
मंत्रिमंडल निगरानी के मुख्य अभियंता राजदेव सिंह ने अंतिम पत्र 5 फरवरी 2021 को भेजा है. पत्र में स्पष्ट लिखा है कि पेयजल विभाग द्वारा कार्यालय को कोई भी अभिलेख एवं जानकारी उपलब्ध नहीं करायी गयी है. इसके कारण जांच कार्य लंबित है. जांच नहीं होने की वजह से योजना में तकनीकी गड़बड़ी से संबंधित शिकायत पर उचित कार्रवाई नहीं हो पा रही है.
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मंत्रीमंडल निगरानी विभाग ने कब-कब लिखा पत्र
- पत्रांक—1609, दिनांक — 17.10.2019
- पत्रांक—2208, दिनांक — 20.06.2019
- पत्रांक—444, दिनांक — 04.11.2019
- पत्रांक—476, दिनांक — 03.12.2019
- पत्रांक—609, दिनांक — 09.01.2020
- पत्रांक—25, दिनांक — 04.02.2020
- पत्रांक — 66, दिनांक — 05.03.2020
- पत्रांक — 76, दिनांक — 20.03.2020
- पत्रांक — 132, दिनांक — 21.05.2020
- पत्रांक — 201, दिनांक — 25.06.2020
- पत्रांक — 248, दिनांक — 29.07.2020
- पत्रांक — 304, दिनांक — 01.10.2020
- पत्रांक — 992, दिनांक — 20.05.2020
- पत्रांक — 276, दिनांक — 10.06.2020
- पत्रांक — 304, दिनांक — 01.10.2020
- पत्रांक — 64, दिनांक — 05.02.2021
नोट : कल पढ़ें- भूकंप जोन बदलकर इंजीनियरों ने बढ़ाई शहरी जलापूर्ति योजना की लागत
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