Sonia Jasmin
Ranchi: कोरोना महामारी के कारण न केवल आम व्यापारियों को बल्कि लघु उद्योग से जुड़ी महिलाओं पर अधिक असर पड़ा है. इनके कारोबार की स्थिति में आर्थिक और सामाजिक बदलाव आये हैं. महिलाओं के उद्योग क्षेत्र में पिछड़ने का सबसे बड़ा कारण उनके लिए पूंजी जुटाने में असमर्थता है. इस क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति सुधारने के बजाय खराब होती जा रही है.
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महिलाएं भी होना चाहती हैं आत्मनिर्भर
महिलाएं खुद को अब केवल रसोई तक ही सीमित रखने के बजाय समाज में अपनी पहचान बनाने की चाह रखती हैं. घरों में रहने वाली महिलाएं खुद को अब विभिन्न लघु उद्योगों से जोड़कर खुद को अब आत्मनिर्भर बना रही हैं.
वर्तमान में वे घर पर मोमबत्ती, अगरबत्ती, फूल-माला, बैग बनाने जैसे लघु उद्योग पर काम कर रही हैं. इस काम में मेहनत अधिक लगती है और मुनाफा कम होता है. फिर भी कामकाजी महिलाएं इससे पीछे नहीं हट रही हैं. वर्तमान में लघु उद्योगों में महिलाओं का बड़ा योगदान है.
आत्मनिर्भर बनने के लिए महिलाओं की राय
डिबडी, रांची की रहने वाली शोभा कुमारी बताती हैं कि वह 45 महिलाओं के साथ मिलकर गुड़िया और बैग बनाने का काम करती हैं. ये महिलाएं लोगों के घरों में दाई का भी काम करती हैं. जिससे ज्यादा आमदनी हो सके.इन महिलाओं का कहना है कि हर महिला को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना चाहिए और देश के विकास और प्रगति में भागीदार बनना चाहिए.
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चर्च रोड स्थित मास्टर लाइन की मेजरेन कुजुर बताती हैं कि उन्होंने फूल और फूल माला बनाने का काम इसी लॉकडाउन में अपने घर पर शुरू किया है. वह 30 महिलाओं को इस उद्योग से जोड़ने का टारगेट लेकर चल रही हैं.
अभी तक तो वह 6 औरतें ही इस काम के लिए तैयार हुई हैं. वे बताती हैं कि सिर्फ पति की कमाई से घर नहीं चल पाता है. इसी वजह से उन्हें फूल माला बनाने का काम करना पड़ रहा है. इस काम से रोज के 100 से 150 रुपये कमायी होती है. इन पैसों से घर चलाने में तो मदद मिलती ही है साथ ही उन्हें यह कमायी आत्मनिर्भर भी बनाती हैं. वे तैयार माल को आस-पास के बाजारों में या अपनी जान-पहचान के लोगों को बेचती हैं.
हटिया निवासी काव्या सिंह बताती हैं कि लॉकडाउन में उन्होंने सिलाई का काम शुरु किया है. वे पुराने कपड़े को दोबारा इस्तेमाल करके नयी चीजें जैसे- थैले, तकिया, कुशन कवर बनाती हैं.