- सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत ट्रिपल टेस्ट के बाद निकाय चुनाव कराने का सरकार ने लिया है फैसला
- नगर निगम बोर्ड भंग होते ही खत्म हो जाएंगी मेयर, डिप्टी मेयर व पार्षदों की शक्तियां पावर
- मई से नगर निगम कार्यालयों में होगा सरकारी बाबुओं का राज
- पीएम आवास, जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र जैसे काम के लिए अब पदाधिकारियों के चक्कर लगाने होंगे
- झारखंड में ट्रिपल टेस्ट के बाद सरकार नगर निकाय चुनाव कराने की तैयारी में जुटी
- ट्रिपल टेस्ट के बाद नगर निकाय चुनाव मई 2025 से पहले संभव नहीं : डिप्टी मेयर
Satya Sharan Mishra
Ranchi : झारखंड के 34 नगर निकायों का कार्यकाल 28 अप्रैल को समाप्त हो रहा है. इसके साथ ही नगर निकायों में जनता द्वारा चुनकर भेजे गए जनप्रतिनिधियों को मिले अधिकार भी खत्म हो जाएंगे. नगर निकायों के बोर्ड के भंग होते ही मेयर, डिप्टी मेयर, अध्यक्ष और वार्ड पार्षद अधिकार विहीन हो जाएंगे. 28 अप्रैल के बाद नगर निकायों में सिर्फ सरकारी बाबुओं की चलेगी और लोगों को काम कराने के लिए पार्षदों की जगह पदाधिकारियों के चक्कर लगाने पड़ेंगे. गर्मी में जल संकट वाले मुहल्लों में लोगों के लिए पानी का टैंकर बुलाना हो, जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र बनाना हो, स्ट्रीट लाइट लगवानी हो, मुहल्ले या घरों से कचरे का उठाव कराना हो या फिर प्रधानमंत्री आवास का पैसा चाहिए, तो लोग चहलकदमी करते हुए वार्ड पार्षद के दफ्तर पहुंच जाया करते हैं या फोन कर पार्षद को अपनी परेशानी की जानकारी देकर काम करवा लिया करते हैं. लेकिन मई माह से यह सब इतना आसान नहीं होगा. नगर निकायों के पदाधिकारियों पर जनप्रतिनिधियों का दबाव खत्म हो जाएगा, तो उनकी मनमानी और बढ़ जाएगी. लोग परेशान होंगे. लोगों को यह परेशानी तब तक झेलनी होगी, जब तक नगर निकायों के चुनाव संपन्न होकर बोर्ड का गठन नहीं हो जाता.
योजनाओं में जनता की भागीदारी भी खत्म हो जाएगी
नगर निकायों के बोर्ड भंग होने से शहरों में चल रही योजनाओं में जनता की भागीदारी भी समाप्त हो जाएगी. अभी पार्षदों की अनुशंसा पर मुहल्लों के विकास की योजना तैयार होती है. कौन सी सड़क जरूरी है, कहां स्ट्रीट लाइट लगनी चाहिए, पानी का टैंकर कहां आना चाहिए, नाली किस रास्ते से जाएगी, किसे प्रधानमंत्री आवास मिलना चाहिए, यह सब अभी जनता के सहयोग से वार्ड पार्षद तय करते हैं, लेकिन जब नगर निकायों का बोर्ड भंग हो जाएगा, तो अफसर अपने मन-मुताबिक योजनाएं तैयार करेंगे. योजना लागू करने के लिए जनप्रतिनिधियों और जनता की स्वीकृति लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी. जनता की जरूरतों का आकलन किए बिना भी योजनाएं लागू हो जाएंगी.
आरक्षण रोस्टर में बदलाव, मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा
नगर विकास विभाग ने वर्ष 2023 में बिना ओबीसी आरक्षण के राज्य के 48 नगर निकायों में चुनाव कराने का प्रस्ताव तैयार किया था. नगरपालिका अधिनियम 2011 में संशोधन करने के बाद आरक्षण रोस्टर में भी बदलाव किया गया था. इसका काफी विरोध भी हुआ. मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा. 16 मार्च को हेमंत सरकार कैबिनेट की बैठक में नगर विकास विभाग की अधिसूचना को निरस्त करने का फैसला किया गया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में ट्रिपल टेस्ट के बाद निकाय चुनाव कराने का निर्णय लिया गया. नए नियमों के आधार पर अब नगर निकायों में मेयर या अध्यक्ष पद के लिए एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण राज्य सरकार संबंधित वर्ग की जनसंख्या के आधार पर तय करेगी. पहले रोटेशनल आधार पर आरक्षण लागू करने का नियम था. नवंबर 2022 में राज्य सरकार ने निकाय चुनाव की तैयारी कर ली थी लेकिन विवाद के कारण चुनाव टल गया.
इन नगर निकायों का कार्यकाल हो रहा खत्म
28 अप्रैल को रांची नगर निगम समेत 34 नगर निकायों का कार्यकाल खत्म हो रहा है. इनमें हजारीबाग, गिरिडीह, मेदिनीनगर, आदित्यपुर नगर निगम, गढ़वा, चतरा, मधुपुर, गोड्डा, साहिबगंज, पाकुड़, मिहिजाम, चिरकुंडा, फुसरो, गुमला, लोहरदगा, सिमडेगा, रामगढ़, चाईबासा और कपाली नगर परिषद शामिल हैं. इसके अलावा नगर उंटारी, हुसैनाबाद, छतरपुर, लातेहार, डोमचांच, राजमहल, बडहरवा, बासुकीनाथ, जामताड़ा, खूंटी, बुंडू और सरायकेला-खरसावां नगर पंचायतों का कार्यकाल भी 28 अप्रैल को ही खत्म हो रहा है.
आम लोगों की बढ़ेगी परेशानी : डिप्टी मेयर
रांची नगर निगम के डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय ने कहा कि नगर निकायों के बोर्ड भंग होने के बाद आम लोगों की परेशानी बढ़ेगी. अभी लोग अपनी समस्याओं का निदान अपने मुहल्ले में वार्ड पार्षद से मिलकर कर लेते हैं, लेकिन जनप्रतनिधियों का पावर खत्म होने के बाद उन्हें हर काम के लिए नगर निकाय के दफ्तर में जाना होगा. अफसरों की चिरौरी करनी पड़ेगी. राज्य में ट्रिपल टेस्ट के बाद नगर निकाय चुनाव मई 2025 से पहले होना संभव नहीं दिख रहा है.
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