Soumitra Roy
सिर्फ एक साल में मोदी राज में बच्चों का कुपोषण 91% बढ़ गया. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने एक आरटीआई के जवाब में बताया है कि देश में कुल 33,23,322 बच्चे कुपोषित हैं. यह उपलब्धि किनकी तपस्या से हुई और किन संस्थाओं को इसके लिये धन्यवाद दिया जाये, यह तो आने वाले वक्त में सामने आयेगा.
14 अक्टूबर 2021 तक भारत में 17.76 लाख बच्चे गंभीर कुपोषित (एसएएम) और 15.46 लाख बच्चे मध्यम कुपोषित (एमएएम) थे. भारत में दुनिया के सबसे अधिक अविकसित (4.66 करोड़) और कमजोर (2.55 करोड़) बच्चे मौजूद हैं. कुछ लोग इस सरकारी आंकड़े पर भी गर्व कर सकते हैं.
गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे सबसे ज्यादा महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात में हैं. मोदी राज में गुजरात वाइब्रेंट था. नवंबर 2020 और 14 अक्तूबर 2021 के बीच गंभीर कुपोषित बच्चों की संख्या में 91 प्रतिशत की वृद्धि देखी गयी है, जो अब 9.27 लाख से बढ़कर 17.76 लाख हो गयी है.
इन सबके बावजूद संसद, विपक्ष और पूरे देश की अवाम रोज़ थोड़ा-थोड़ा मर रहे, पिचक रहे, सिकुड़ रहे बच्चों के लिए मौन हैं. इन 33 लाख बच्चों के भी सपने होंगे. कोई फौजी तो कोई खिलाड़ी या आईएएस/आईपीएस बनना चाहता होगा. लेकिन कुपोषित नींव न उन्हें सीखने देगी, न दौड़ने.
जब भी देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत का भविष्य बनाने की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, तो मेरे जेहन में कुपोषित, एनीमिक, भूखा और कमज़ोर भारत छा जाता है. तो क्या अब यह मान लेना चाहिये कि मोदी का गुजरात मॉडल कुपोषित है. आखिर में देश की नीयत भी कुपोषित हो जा रही है.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.