Vinit Upadhyay
Ranchi: झारखंड हाइकोर्ट के लगभग आधा दर्जन से ज्यादा अधिवक्ता वरीय अधिवक्ता के चयन की राह पर हैं. लेकिन फुल कोर्ट की बैठक नहीं होने के कारण वरीय अधिवक्ता के चयन के तौर पर उनका मामला लटका हुआ है. क्योंकि वरिष्ठ अधिवक्ताओं के चयन के लिए जो अंतिम बैठक हुई थी, उसमें सर्वसम्मति से कोई निर्णय नहीं लिया जा सका.
झारखंड हाइकोर्ट में कई महत्वपूर्ण मामलों में पैरवी कर चुके और कई महत्वपूर्ण मुकदमों में अदालत में पक्ष रख रहे स्टेट बार काउंसिल के अध्यक्ष राजेंद्र कृष्णा, हाइकोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन की अध्यक्ष ऋतु कुमार,दीपक कुमार ,कल्याण राय,राजीव सिन्हा, मोख्तार खान,एके चतुर्वेदी और महेश तिवारी जैसे अधिवक्ताओं का नाम आगे है. जिनका चयन इस बार वरीय अधिवक्ता के रूप में हो सकता है. लेकिन वर्ष 2017 के बाद से अब तक फुल कोर्ट की बैठक नहीं हुई है. जिससे पिछले लगभग 3 वर्षों से झारखंड हाइकोर्ट का कोई अधिवक्ता वरीय अधिवक्ता के रूप में नहीं चुना गया है.
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अपने जूनियर्स को सिखाने का मौका मिलता है – पूर्व महाधिवक्ता
वर्ष 2010 में वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में चुने गए झारखंड के पूर्व महाधिवक्ता आरएस मजूमदार की कहना है कि, वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में चयन होना एक वकील को काफी ज्यादा जवाबदेह बना देता है. साथ ही उन्होंने कहा कि जुडिशियल डिसिप्लीन मेंटेन करने के साथ-साथ वरिष्ठ अधिवक्ताओं को वकालतनामा साइन नहीं करना होता है, और ना ही क्लाइंट से खुद डील करना होता है. उन्होंने कहा कि वरिष्ठ अधिवक्ता बनने के बाद अपने जूनियर वकीलों को मार्गदर्शन करनो का एक मौका भी मिलता है.
मुवक्किलों के प्रति भी वरीय अधिवक्ता हो जाते हैं जिम्मेवार – पूर्व महाधिवक्ता
वर्ष 2017 में डेजिग्नेटेड सीनियर चुने गये झारखंड हाइकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्य के पूर्व महाधिवक्ता अजीत कुमार कहते हैं कि जब किसी अधिवक्ता का चयन आम सहमति से वरीय अधिवक्ता के रूप में होता है, तो उन्हें एक अलग पहचान मिलती है. साथ ही कहा कि मान-सम्मान मिलता है और उनकी जिम्मेदारी भी काफी बढ़ जाती है.कहा कि न सिर्फ न्यायालय और वकीलों के प्रति बल्कि मुवक्किलों के प्रति भी वरीय अधिवक्ता काफी जिम्मेदार और जवाबदेह हो जाते हैं.
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