Gladson Dungdung
अगस्त को प्रतिवर्ष ‘विश्व आदिवासी दिवस’ के रूप में मनाने की परंपरा बन गई है. इस दिन विश्वभर में आदिवासी समुदाय के लोग, आदिवासी संगठन और संयुक्त राष्ट्र और कई देशों की सरकारी संस्थानों द्वारा परिचर्चा, नाच-गान एवं सामूहिक समारोह का आयोजन किया जाता है. भारत के आदिवासी भी इस दिन को बेहद उत्साह एवं उमंग के साथ मनाते हैं. 9 अगस्त 1995 को पहली बार विश्व आदिवासी दिवस का आयोजन किया गया था. यह दिवस दुनियाभर में आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व है. इसलिए यह जानना जरूरी है कि 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस क्यों मनाया जाता है? यह तारीख आदिवासियों के लिए क्या महत्व रखता है? आदिवासी दिवस मनाने की परंपरा कहां से शुरू हुई? संयुक्त राष्ट्र ने विश्व आदिवासी दिवस की घोषणा क्यों की? विश्व आदिवासी दिवस मनाने का क्या उद्देश्य है? विश्व के 195 देशों में से 90 देशों में 5,000 विभिन्न आदिवासी समुदाय के लोग निवास करते हैं, जिनकी जनसंख्या लगभग 37 करोड़ एवं 7,000 भाषाएं हैं, लेकिन इनके अधिकारों का सबसे ज्यादा हनन होता रहा है. विकास, जनहित, राष्ट्रहित, सभ्यकरण, शहरीकरण इत्यादि के नाम पर उनकी मूल पहचान, भाषा एवं संस्कृति को नष्ट करने की पूरी कोशिश की गई एवं उनकी जमीन, इलाका एवं प्राकृतिक संसाधनों को हड़प लिया गया. इसी को मद्देनजर रखते हुए विश्व आदिवासी दिवस मनाने का निर्णय लिया गया, जिसका मूल उद्देश्य है आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा एवं बढ़ावा को सुनिश्चित करना. इसके अलावा खासकर विश्व के पर्यावरण संरक्षण में आदिवासियों के योगदान को चिह्नित करना है. आदिवासियों के अधिकारों का मसला और आदिवासी दिवस मनाने के पीछे एक लम्बा इतिहास है. आदिवासियों के साथ हो रहे प्रताड़ना एवं भेदभाव के मुद्दे को अतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने, जो लीग ऑफ नेशन के बाद यूनाइटेड नेशन्स का एक प्रमुख अंग बना, 1920 में उठाना शुरू किया.
इस संगठन ने 1957 में ‘इंडिजिनस एंड ट्राइवल पॉपुलेशन कॉन्वेंशन सं. 107 नामक दस्तावेज को अंगीकृत किया, जो आदिवासी मसले का पहला अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज है, जिसे दुनियाभर के आदिवासियों के ऊपर किये जाने वाली प्रताड़ना एवं भेदभाव से सुरक्षा प्रदान करने के लिए समर्पित किया गया था. अन्तराष्ट्रीय श्रम संगठन ने पुनः 1989 में उक्त दस्तावेज को संशोधित करते हुए ‘इंडिजिनस एंड ट्राइबल पीपुल्स कॉन्वेशन 169, जिसे आईएलओ कॉन्वेंशन 169 भी कहा जाता है, जारी किया. यह दस्तावेज आदिवासियों के आत्म-निर्णय के अधिकार को मान्यता देते हुए जमीन, इलाका एवं प्राकृतिक संसाधनों पर आदिवासियों के मालिकाना हक को स्वीकृति प्रदान करता है.
हालांकि विश्व आदिवासी दिवस मनाने के पीछे संयुक्त राज्य अमेरिका के आदिवासियों की सबसे बड़ी भूमिका है. अमेरिकी देशों में 12 अक्टूबर को कोलम्बस दिवस मनाने की प्रथा है, जिसका वहां के आदिवासियों ने घोर विरोध करते हुए उसी दिन आदिवासी दिवस मनाना शुरू किया. उन्होंने सरकारों से मांग की कि कोलम्बस दिवस की जगह पर आदिवासी दिवस मनाया जाना चाहिए, क्योंकि कोलम्बस उस उपनिवेशी शासन व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसके लिए बड़े पैमाने पर आदिवासियों का जनसंहार हुआ है. आदिवासियों ने अपना अभियान जारी रखते हुए 1989 से आदिवासी दिवस मनाना शुरू कर दिया, जिसे काफी समर्थन मिला. अंततः 12 अक्टूबर 1992 को अमेरिकी देशों में सरकारी स्तर पर कोलम्बस दिवस के जगह पर आदिवासी दिवस मनाने की परंपरा शुरू हो गई. इसी को मद्देनजर रखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 1994 को आदिवासी वर्ष घोषित किया. 23 दिसंबर 1994 को संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1995 से 2004 को प्रथम आदिवासी दशक घोषित किया तथा आदिवासियों के मुद्दे पर 9 अगस्त 1982 को जेनेवा में हुए प्रथम बैठक के स्मरण में 9 अगस्त को प्रतिवर्ष आदिवासी दिवस मनाने की घोषणा की. इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र ने 2005 से 2015 को द्वितीय आदिवासी दशक घोषित किया, जिसका मकसद आदिवासियों के मानव अधिकार, पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक एवं सामाजिक विकास के मुद्दों को सुलझाने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना है. 2016 में 2,680 आदिवासी भाषाओं की समाप्ति के कगार पर होने के खतरे को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने आदिवासी भाषाओं के संरक्षण हेतु विश्व का ध्यान आकर्षित करने के लिए वर्ष 2019 को आदिवासी भाषा वर्ष एवं 2022 से 2032 को आदिवासी भाषा दशक की घोषणा की है.
विश्व आदिवासी दिवस दुनिया भर के आदिवासियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने और उन्हें बढ़ावा देने का दिन है. इसलिए प्रतिवर्ष 9 अगस्त को हमें अपनी एकजुटता, अपने अधिकारों के लिए संघर्ष और प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करना चाहिए. इस दिन हम आदिवासियों को घोषणा करनी चाहिए कि हम आदिवासी अपनी मातृभूमि के प्रथम निवासी हैं. यहां की जमीन, इलाका और प्राकृतिक संसाधनों पर हमारा पहला हक है.यह जगजाहिर है कि भारत के 12 करोड़ आदिवासी ही यहां के प्रथम निवासियों के वंशज हैं. देश के आजादी के सात दशक बाद द्रौपदी मुर्मू के रूप में पहली बार एक आदिवासी को देश के सर्वोच्च पद पर बैठाया गया है. इसलिए उनका प्रथम कर्तव्य यह होना चाहिए कि वे आदिवासियों को भारत का ’इंडिजिनस पीपुल्स’घोषित करे एवं संयुक्त राष्ट्र आदिवासी घोषणा पत्र को लागू करें. इसके आदिवाले आदिवासियों के संवैधानिक, कानूनी एवं पारंपरिक अधिकारों का संरक्षण करने हेतु केन्द्र एवं राज्य सरकारों को दिशा निर्देश दें. सही मायने में आदिवासी समाज के लिए यही उनका सर्वोत्तम योगदान होगा और विश्व आदिवासी दिवस मनाने की सार्थकता भी बढ़ेगी.