Nirsa : तालाब के पानी की निकासी के लिए बने नाले के मलबे से दो बच्चों को बचाने के बाद खुद मलबे में दबकर प्राण गंवाने वाले तालबेड़िया कोल टोला निवासी 22 वर्षीय सौरभ कोल का ग्रामीणों ने डबडबाई आंखों से घटना के लगभग 23 घंटे बाद बुधवार 23 मार्च को उसी तालाब के किनारे अंतिम संस्कार कर दिया. ग्रामीणों ने निर्णय लिया कि जिस तालाब के मलबे से दो बच्चों को बचाने में सौरभ ने अपनी जान दी है, उसी स्थान पर उसका स्मारक बनाया जाएगा. अंतिम संस्कार में भारी संख्या में महिलाएं एवं पुरुष शामिल हुए. मालूम हो कि मंगलवार22 मार्च की दोपहर तालबेड़िया कोल टोला के दो बच्चों कुणाल एवं ओम प्रकाश मिट्टी के मलबे में दब गये थे. सौरभ ने उन दोनों को अपनी जान की परवाह ना करते हुए मलबे से निकाला. तभी ढेर सारा मलवा उस पर गिर गया था, जिसमें दबकर उसकी मौत हो गई.
सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेता था
ग्रामीणों ने बताया कि सौरभ गांव के सार्वजनिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता था. हालांकि वह 3 वर्ष पहले से ही गांव में रह रहा था. इसके पहले वह पश्चिम बंगाल में अपने पिता किशन कोल के साथ रहता था. पिता पश्चिम बंगाल की मायरा कोलियरी में कार्यरत थे. लगभग 5 वर्ष पूर्व वह सेवानिवृत्त हुए. उसके बाद पूरा परिवार पश्चिम बंगाल से गांव में आकर रहने लगा था.
पांच भाई-बहनों में सबसे छोटा था
ग्रामीणों ने बताया कि सौरभ पांच भाई-बहनों में सबसे छोटा था. दो बहनों की शादी हो चुकी है. बड़ा भाई राजू आंख से दिव्यांग है. छोटी बहन लक्ष्मी अभी कुंवारी है. वह तालबेड़िया में रहती है. सौरभ ने पश्चिम बंगाल बोर्ड से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी. आंख से दिव्यांग होने के कारण बड़े भाई की शादी नहीं हुई है.
स्थानीय युवकों को नृत्य भी सिखाता था
सौरभ नृत्य का का मास्टर भी था. गांव आने के बाद वहां के युवकों को नृत्य का प्रशिक्षण देता था. नृत्य का प्रशिक्षण देने के एवज में वह किसी से पैसे भी नहीं लेता था. बेनागोड़िया मोड़ पर उसने रोजी रोटी के लिए कपड़े की दुकान शुरू की थी. उसके व्यवहार कुशल होने के कारण दुकान भी अच्छी चल रही थी. सेवानिवृत्ति के बाद पिता का सारा काम वह स्वयं करता था.
छिन गया बूढ़े बाप का सहारा
पिता किशन कोल ने बताया कि वह स्वयं बजरंगबली का भक्त है. सौरभ भी बचपन से ही बजरंगबली के प्रति आस्था रखता था. वह प्रतिदिन बजरंगबली मंदिर की साफ सफाई एवं पूजा आरती के बाद ही भोजन ग्रहण करता था. यह बताते हुए उन्होंने फफककर रोते हुए कहा कि इतनी पूजा-अर्चना के बावजूद बजरंगबली ने पुत्र को नहीं बचाया. बड़े पुत्र ने सातवीं तक पढ़ाई की. अचानक उसकी आंख की रोशनी चली गई. इंदौर तक इसका इलाज कराया. परंतु कोई फायदा नहीं हुआ. छोटे पुत्र को देख कर जी रहा था. उसे भी भगवान ने छीन लिया.
दोनों बच्चों के लिए देवदूत बनकर पहुंचा था सौरभ
तालाब के पानी निकासी के लिए बने नाले के मलबे में दबे 9 वर्षीय कुणाल खेती का शिवा कोल एवं 8 वर्षीय ओमप्रकाश के पिता छोटू कोल सौरभ की मौत से मर्माहत हैं. उन दोनों ने बताया कि सौरभ उनके पुत्र के लिए देवदूत बनकर तालाब के समीप पहुंचा था. यदि वह समय पर नहीं पहुंचता तो आज उनके पुत्र दुनिया में नहीं होते. उसने पुत्रों की जान बचा दी, परंतु स्वयं मलबे में दबकर अकाल मौत को गले लगा लिया. वह हमारे परिवार के लिए देवदूत से कम नहीं है.
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