Ranchi : राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद (नार्म), हैदराबाद और राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण, चेन्नई के संयुक्त तत्वावधान में वर्चुअल माध्यम से आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय परिचर्चा का समापन हुआ. इसका विषय जैव विविधता व पर्यावरण नियम का प्रबंधन रखा गया था. इस परिचर्चा में देशभर के 35 वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने भाग लिया. कुलपति के निर्देश पर इस परिचर्चा में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वानिकी संकाय के वनोत्पाद एवं उपयोगिता विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ कौशल कुमार भाग लिया.
डॉ कौशल कुमार ने कहा कि अब जंगल बचाओ की जगह जंगल सजाओ शब्द का प्रयोग और रणनीतिक प्रयास की आवश्यकता है. वनों के संरक्षण व उसे सतत उपयोग के लिए वन क्षेत्र में स्थानीय लोगों की सहभागिता और लाभांश को सुनिश्चित करने के दिशा में पहल करनी होगी. वनों के दोहन में कमी लाने के लिए हर्बो एग्रोफोरेस्ट्री तथा हर्बल रिसोर्स टेक्नोलॉजी के माध्यम से औषधीय पौधों की जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है. हर्बल उत्पाद की आज वैश्विक मांग काफी अधिक है. हर्बल उत्पाद समय की मांग है. इसे बढ़ावा देकर प्राणियों का स्वास्थ्य, पर्यावरण की सुरक्षा एवं वनों का संरक्षण किया सकता है. रासायनिक और सिंथेटिक उत्पाद के प्रसार को रोकने के लिए हर्बल उत्पाद सबंधी जैव विविधता के नियमों में विशेष नीतिगत निर्णय लेना होगा.
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पशुओं की जानलेवा बीमारी का एकमात्र टीकाकरण ही विकल्प – डॉ संजय कुमार
वर्षा ऋतु में पशुओं में जानलेवा बीमारी गलघोंटू या डकहा और लंगडिया बीमारी का प्रकोप बढ़ जाता है. गलघोंटू में पशुओं में गला में सूजन के साथ-साथ बुखार की वजह से सांस लेने में तकलीफ होती है. इस बीमारी का टीकाकरण ही एकमात्र विकल्प है. पशुपालकों को मई माह में ही पशुओं का टीकाकरण करा लेना चाहिए.