Arun Kumar Singh
Medininagar: पलामू जिले के पत्थर माईंस संचालक सरकारी नियमों को ताक पर रखते हैं और वे अपने हिसाब से बनाये गये नियमों के मुताबिक खनन, उत्पादन, भंडारण और परिवहन करते हैं. गौर करने की बात यह है कि इस संबद्ध में सरकारी महकमा और उनके अधिकारी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस काम में माइंस संचालकों की भरपूर मदद भी करते हैं.
महीनों बाद भी नहीं भरे गये पत्थर खदान
छतरपुर अनुमंडल क्षेत्र के छतरपुर, पिपरा और नौडीहा बाजार प्रखंड क्षेत्र में कई पत्थर खदानों के लीज की अवधि समाप्त हो चुकी है. इन खदानों से नियमों के विपरीत एक, दो और ढाई सौ फीट तक गहरा खनन करके पत्थर निकाले गये थे. लीज की अवधि समाप्त होने के महीनों बाद भी माईंस संचालकों ने नियम के मुताबिक इन गड्ढों को भरना तो दूर, गड्ढों के चारों तरफ बैरेकेडिंग तक करना भी मुनासिब नहीं समझा है. बेहिसाब खनन के कारण सैंकड़ों फुट गहरे ये गड्ढे अब हर दिन दुर्घटना को आमंत्रित करते हैं. अगर कोई प्राणी इन गड्ढों में गिरा तो उसका सलामत निकलना असंभव होगा.
बंद हो चुके पत्थर खदान अब तक भरे नहीं गये
रविशंकर सिंह उर्फ बबुआ जी के दो माईंस बगैया-बंधुडीह में थे. इनका रकवा 30 एकड़ से अधिक है. काफी गहरे इन दोनों माइंस को मिट्टी और बालू से न भरकर एक स्थानीय नदी की धारा को ही मोड़कर उसमें पानी भर दिया गया है. चौबीसों घंटे यहां हादसे की संभावना बनी हुई है. छतरपुर के लोहराही और करमा कला में नंदलाल शौण्डिक का सोना स्टोन चिप्स के दो माइंस, जिसमें एक काफी गहरा है, को भी खनन के बाद नहीं भरा गया है. वैसे ही तेनुडीह में महादेव कंस्ट्रक्शन कंपनी का एक माइंस, दंड़टुट्टा में अंजनी सिंह का एक माइंस, हेनहे विद्यालय के बगल में ओमप्रकाश का एक माइंस, लकड़ाही में विपीन शौण्डिक वगैरह के माइंस, नौडीहा बाजार थानाक्षेत्र में आलोक यादव का एक माइंस, मुनकेरी में राजकुमार खुराना का एक माइंस, यहीं पर सोनू सिंह का एक माइंस और हरिहरगंज के चपरवार में आनंद सिंह का एक माइंस भी खनन के बाद नहीं भरा गया और माइनिंग के कारण बने गड्ढे को यथावत छोड़ दिया गया है.अगर उपरोक्त सभी खदानों का एरिया जोड़ लें तो लगभग सौ एकड़ में सौ से तीन सौ फुट तक गहरे गड्ढे हैं. किसी भी इलाके में ये गड्ढे न सिर्फ किसी की असामयिक मौत का कारण बन सकते हैं बल्कि आसपास के पर्यावरण को भी प्रभावित करते हैं.
क्या कहता है नियम और एनजीटी की गाइड लाइन
माइनिंग का नियम यह कहता है कि खनन की अवधि समाप्त होने के बाद सभी खनन स्थल को मिट्टी और बालू मिलाकर जमीन की सतह तक भरना है और उसे पूर्ववत स्थिति में लाना है. जबकि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने तो ऐसे कई मामलों में माईंस संचालकों को स्पष्ट निर्देश दिये थे कि न सिर्फ माईंस को जमीन की सतह तक भरना है बल्कि उस जमीन पर पेड़ भी लगाने हैं. लेकिन उक्त माईंस संचालकों ने ऐसा नहीं किया.
क्या कहते हैं अधिकारी
इस स्थिति की बावत जब जिला खनन पदाधिकारी आनंद कुमार से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि “सभी को खदान बंद करने की योजना का पालन करना होगा. हांलाकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि सभी खदानों को भरवाने की जवाबदेही क्या अधिकारियों की नहीं थी. अधिकारियों ने अब तक उक्त खदानों को भरवाया क्यों नहीं.उल्लेखनीय है कि उक्त खदानों को नहीं भरने की एक शिकायत के बाद पलामू डीसी ने भी कहा था कि उक्त खदानों को भरवाया जाएगा और नहीं भरने वालों पर कार्रवाई की जाएगी. हांलाकि डीसी की यह बात भी जमीनी नहीं हो पायी. सवाल है कि मामला अगर न्यायालय अथवा एनजीटी में जाता है तो संबद्ध अधिकारी क्या जवाब देंगे.
मामले को लेकर एनजीटी में जायेंगे सामाजिक कार्यकर्ता
युद्ध संस्था के संयोजक अम्बिका सिंह का कहना है कि माइंस संचालक उक्त गड्ढों को इसलिए नहीं भरना चाहते क्योंकि उन्होंने हमेशा जल-जंगल-जमीन का दोहन किया है. उन्हें न तो प्रकृति से प्रेम है और न ही इलाके या अवाम की चिंता. अधिकारी इसलिए माइंस के गड्ढों को नहीं भरवाना चाहते हैं, क्योंकि जब जब यह मुद्दा उठता है, संबद्ध माइंस वालों से वे मुद्रा मोचन कर लेते हैं. इसके लिए जितने दोषी संबद्ध माइंस मालिक हैं, उससे अधिक दोषी अधिकारी हैं. उनकी संस्था इस मामले को न्यायालय और एनजीटी में ले जाएगी.
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