NEW YORK : सोशल मीडिया पर आये दिन तरह-तरह के चैलेंज चलते रहते हैं. आइस बकेट चैलेंज इनमें सबसे लोकप्रिय चैलेंज में से एक था. लोग अपने ऊपर बर्फ से भरी ठंडे पानी की बाल्टी उड़ेलते थे. आइस बकेट चैलेंज का मकसद सिर्फ मस्ती-मजा करना या वायरल वीडियो क्रिएट करना ही नहीं था, बल्कि लोगों को एक खास तरह की बीमारी के बारे में जागरूक कराना था. इस चैलेंज को पूरी दुनिया में एक “क्रेज” में बदल देने वाले पेट्रिक क्विन को लू गेरिग सिंड्रोम या फिर एएलएस नाम की बीमारी थी. उनके निधन के बाद उनके समर्थकों ने फेसबुक पर लिखा, “हमें बहुत खेद के साथ पेट्रिक के गुजर जाने की खबर साझा करनी पड़ रही है. हम एएलएस के खिलाफ लड़ाई में उनकी प्रेरणा और साहस के लिए उन्हें हमेशा याद रखेंगे.” क्विन महज 37 साल के थे.
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एएलएस बीमारी से पीड़ित थे क्विन
एएलएस यानी एम्योट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस. क्विन को 30 साल की उम्र में पता चला था कि उन्हें यह बीमारी है. इसी बीमारी को आम बोलचाल की भाषा में अमेरिका में अकसर लू गेरिग डिजीज के नाम से भी जाना जाता है. दरअसल 2014 में क्विन ने पेशेवर गोल्फर क्रिस केनेडी को अपनी पत्नी की बहन जेनेट सेनेर्चिया को चैलेंज करते देखा. वे सिर पर बर्फ वाले पानी की पूरी बाल्टी डालने को कह रहे थे और फिर उसे रिकॉर्ड कर के सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की बात भी कर रहे थे. उनका आइडिया था कि जेनेट और लोगों को भी ऐसा ही करने को कहें और इस दौरान चैरिटी के लिए पैसा दान करने का आग्रह करें. दरअसल जेनेट के पति को एएलएस था.
बीमारी के प्रति जागरूकता के लिए था आइस बकेट चैंलेज
क्विन ने इस आइडिया को दुनिया भर में फैलाने का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया. वे एएलएस एसोसिएशन के तहत यूं भी यह काम कर रहे थे. सहसंस्थापक पीट फ्रेट्स के साथ आइस बकेट चैलेंज के जरिए उन्होंने 22 करोड़ डॉलर जमा किए. इसे उन्होंने “इतिहास में सबसे बड़े सोशल मीडिया कैम्पेन” की संज्ञा भी दी.क्विन की तरह फ्रेट्स को भी एएलएस था. बीमारी का पता चलने के सात साल बाद 34 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया था. आइस बकेट चैलेंज के पांच साल पूरे होने पर क्विन ने कहा था, “कोई नहीं जानता था कि आइस बकेट चैलेंज दुनिया भर में इस तरह फैल जाएगा लेकिन हम एकजुट हुए क्योंकि एएलएस जैसी बीमारी के प्रति रवैया बदलने का यही सही तरीका था.”
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आज उनके गुजर जाने के बाद दुनिया उनके ये शब्द याद कर रही है, “दुनिया भर में योद्धा इससे लड़ रहे हैं, वे इस मौत की सजा को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं हैं. हम अपनी जंग जारी रखेंगे. मैं तब तक यह दुनिया नहीं छोडूंगा जब तक मैं यह सुनिश्चित न कर लूं कि एएलएस के साथ इंसान जी भी सकता है, सिर्फ मरता ही नहीं है.” मांग की है.