Vinit Upadhyay
Ranchi : रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार कर रहे उसमें सफर करने वाले यात्री अपनी सामान की हिफाजत जंजीर में बांधकर करते हैं. ताकि कोई उनका सामान ना ले चंपत ना हो जाए. ठीक उसी तरह हर शहर की कचहरी में कुर्सी भी जंजीर में बंधी हुई दिखती है. हालांकि यहां डर चोरी का नहीं बल्कि कुर्सी के मोह का है. ऐसा अमूमन हर शहर की कचहरी में देखने को मिल जाता है.. जहां वकील और टाइपिस्ट अपनी कुर्सी को जंजीरों में जकड़ कर रखते हैं. क्योंकि कचहरी में काम करने वाले टाइपिस्टों और वकीलों में कुर्सी का मोह खूब होता है. दरअसल जजीर में जकड़ी कुर्सियां और टेबल इस बात के संकेत हैं कि वह जगह किसी खास व्यक्ति के कब्जे में है. सालों से यह परंपरा की तरह चली आ रही है. यह सीन अभी भी रांची के सिविल कोर्ट के पुराने बार भवन में कुछ जगहों पर दिख जाएगा. सिविल कोर्ट में लंबे समय से प्रैक्टिस करने वाले कुछ वकीलों के टेबल और उनकी कुर्सियां जंजीरों में ताला लगाकर बंधी हुई दिख जाएंगी. सिविल कोर्ट या हाईकोर्ट में टेबल नंबर पूछकर लोग वकीलों तक पहुंच जाते हैं.
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जानें क्या कहते हैं वकील
करीब 30 वर्ष से वकालत कर रहे रांची सिविल कोर्ट के अनुभवी वकील अशोक श्रीवास्तव बताते हैं कि जब से उन्होंने प्रैक्टिस शुरू की, तब से कुर्सियों और टेबल को जंजीरो में ही बंधा देखा. काम खत्म होने के बाद घर लौटते वक्त सभी वकील और उनके मुंशी अपने कार्यालय की कुर्सियों को एक जगह समेट कर उसे टेबल में जंजीर से बांध देते थे. लेकिन अब ये प्रचलन काफी कम हो गया है. अब ज्यादातर वकील अपनी कुर्सियों को बिना जंजीर और ताले के ही छोड़ कर जाते हैं.
रांची जिला बार एसोसिएशन के महासचिव संजय विद्रोही कहते हैं कि कुछ वर्षों पहले तक वकीलों को खुले आसमान के नीचे कार्य करना पड़ता था. कोर्ट परिसर में बाउंड्री भी नहीं थी और न ही वकीलों के सामान की सुरक्षा के लिए सुरक्षाकर्मी, इसलिए वकील अपनी कुर्सी, टेबल और जरुरी सामानों को जंजीर से बांध कर जाते थे. यह प्रचलन दशकों से चलता आ रहा है. लेकिन अब इसमें कमी आई है. अब जंजीर से बंधी हुई कुर्सियां एकदम कम दिखाई देती हैं.
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