Shyam Kishore Choubey
मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने अपने इस तीसरे मुख्यमंत्रित्वकाल में उपमुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को काफी तवज्जो दी. प्रायः हर मीटिंग में उनको साथ रखते. यहां तक कि दिल्ली की बैठकों में भी उनको साथ ले जाते. इसके पहले किसी भी मुख्यमंत्री ने अपने डिप्टी को ऐसा सुअवसर नहीं दिया. इस प्रकार हेमंत को एक तो सरकारी कामकाज सीखने का मौका मिला, दूसरे उच्च पदस्थ लोगों से उनके परिचय का दायरा भी बढ़ा. इतना ही नहीं, उनको सरकार चलाने का भी अनुभव मिला. कहने की बात नहीं कि खुद अर्जुन मुंडा सुलझे हुए और जानकार राजनेता हैं. उनमें सीखने की प्रवृत्ति गजब की है. राजनीतिक दांव-पेंच में भी वे माहिर हैं. उनके साहचर्य का सीधा लाभ हेमंत को मिला. सच कहिए तो उसी दौर में हेमंत एक राजनेता के रूप में विकसित होने लगे. लेकिन यह क्या? 9 मई 2012 को एक ऐसी दुर्घटना हो गई, जिसकी किसी को आशंका तक नहीं थी.
अर्जुन मुंडा ने अपनी धर्मपत्नी मीरा मुंडा और विधायक बड़कुंवर गगराई संग एक बिजली पावर स्टेशन के उद्घाटन के लिए रांची से सरायकेला-खरसावां के कुचाई के लिए उड़ान भरी. रास्ते में हेलीकॉप्टर गड़बड़ाने लगा. दक्ष पायलट ने उसे किसी तरह संभाला और वापस रांची की राह पकड़ी. हेलीकॉप्टर रांची एयरपोर्ट के ऊपर चक्कर काटने लगा. तकनीकी गड़बडी के कारण लैंडिग की सूरत न देख पायलट ने एयरपोर्ट के अधिकारियों को एलर्ट कर दिया कि क्रैश लैंडिंग के अलावा कोई रास्ता शेष नहीं है. पायलट हेलीकॉप्टर का ईंधन हवा में चक्कर काटते हुए खत्म कर देना चाहता था ताकि क्रैश लैंडिंग में कम से कम नुकसान हो. तबतक आननफानन में एयरपोर्ट से लेकर अपोलो अस्पताल तक सारी तैयारियां कर ली गयीं. एंबुलेंस ले जाने के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया. ईंधन खत्म होने के बाद मुंडा दंपति को लेकर आ रहे हेलीकॉप्टर की क्रैश लैंडिंग करा दी गयी. इसमें अर्जुन मुंडा और पायलट गंभीर रूप से जख्मी हुए. मीरा मुंडा को भी गंभीर चोटें आयीं. विधायक बड़कुंवर गगराई को मामूली चोट आयी. अर्जुन मुंडा की रीढ़ की हड्डियों में जबर्दस्त चोट थी. खैर, आनन-फानन में मुंडा दंपति, विधायक और पायलट को अपोलो अस्पताल लाया गया. मुंडा को गंभीर ऑपरेशन से गुजरना पड़ा. लंबे समय तक अस्पताल में रहने के बाद जब वे चंगा होने लगे, तो उनको मुख्यमंत्री आवास में ही एक मेडिकल बेड लगाकर डॉक्टर और नर्स की निगरानी में शिफ्ट कराया गया. काफी टाइम तक उनको आवास से ही अपना कामकाज निपटाना पड़ा.
लोगों का यह मानना था कि जिन परिस्थितियों में अर्जुन मुंडा का जीवन बचा है, उससे यही लगता है कि ईश्वर उनको बड़े काम करने का मौका देना चाहता है. वे अपेक्षाकृत कम समय में स्वस्थ हो गये तो इसके पीछे जो बड़ा कारण नजर आता है, वह है उनका खिलाड़ी और खुशमिजाज होना. वे राजनीति के जैसे मंजे हुए खिलाड़ी हैं, वैसे ही गोल्फ का भी शौक रखते हैं. वे बांसुरी तो बजाते ही हैं. जो लोग भी उनके संपर्क में रहे हैं, वे उनकी ठहाकेदार हंसी को कभी नहीं भूल सकते. हंसना और रोना भी तो एक व्यायाम ही माना जाता है. वैसे भी खुशमिजाज व्यक्ति जल्द स्वस्थ होते हैं. यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि झारखंड बनने के बाद राज्य का बजट साल-दर-साल बढ़ता चला गया, लेकिन अबतक की 11 सरकारें एक हेलीकॉप्टर तक न खरीद सकीं. प्रायः हर बजट में हेलीकॉप्टर खरीद के लिए राशि तय की जाती है, लेकिन होता-हवाता कुछ नहीं है. 21 वर्षों से यहां की सरकारें किराये के हेलीकॉप्टर पर ही उड़ान भर रही हैं. इस मद में जितना फूंका-तापा जा चुका है, उतने में निश्चय ही एक छोटा जहाज खरीदा जा सकता था. अर्जुन मुंडा का जो हेलीकॉप्टर जान बचाने के लिए क्रैश कराया गया था, वह भी किराये का ही था.
अर्जुन मुंडा ने मुख्यमंत्री आवास के विस्तृत लॉन में हनुमान का एक मंदिर भी बनवा रखा था. बहुत संभव है कि यह वास्तु या ज्योतिषीय सलाह के आधार पर उठाया गया कदम हो. ऐसा इसलिए प्रतीत होता है कि उनके बाद के दोनों मुख्यमंत्रियों में से एक हेमंत सोरेन ने तो 3, कांके रोड में रहना ही पसंद नहीं किया, जबकि रघुवर दास ने अपने आने-जाने के लिए कांके रोड स्थित मुख्य गेट की ठीक विपरीत दिशा में एक अलग गेट बनवाया. इस आवास में वास्तु दोष से संबंधित बातें शायद बहुत सही न भी हों, क्योंकि मुंडा के कार्यकाल से पहले चाहे मधु कोड़ा हों या बाबूलाल मरांडी, इसी में रहे. अलबत्ता शिबू सोरेन मोरहाबादी मैदान के निकट आवंटित सांसद आवास से ही अपना काम-काज चलाते रहे. हालांकि एक टर्म उन्होंने 3, कांके रोड को भी अपना
ठिकाना बनाया था. रघुवर दास ने अपना पांच वर्ष का पूरा कार्यकाल इसी में बिताया, यह अलग बात है कि अगला चुनाव वे
हार गये. (जारी)
(नोटः यह श्रृंखला लेखक के संस्मरणों पर आधारित है. इसमें छपी बातों से संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है.)
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