Shyam Kishore Choubey
झारखंड आंदोलन के पुरोधा और उसके पहले खासकर संताल परगना और टुंडी आदि इलाकों में महाजनों के काल रहे शिबू सोरेन जितना झामुमो प्रमुख के रूप में जाने जाते हैं, उनकी उससे कहीं अधिक प्रसिद्धि गुरुजी और बाबा के रूप में है. उन्हीं बाबा को, जब वे कोयला मंत्री थे, 2006-07 में एक कत्ल के आरोप में दिल्ली की लोअर कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. उनको उस समय मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और जेल जाना पड़ा. उन पर पिछली सदी के अंतिम दशक में सांसद रहते अपने निजी सचिव शशिनाथ झा की हत्या का आरोप लगा था. खैर, लोअर कोर्ट का फैसला दिल्ली हाईकोर्ट में टिक न सका और वे बाइज्जत बरी हो गए और उनको पुनः कोयला मंत्री पद मिला.
इधर झारखंड में उनके 17 विधायकोें वाले दल झामुमो के सक्रिय सहयोग-समर्थन से एक निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा की सरकार चल रही थी। कोड़ा के छात्र जीवन के मित्र विनोद सिन्हा की बाबा के कथित करीबी मनोहर लाल पाल से व्यावसायिक मित्रता थी. कोड़ा की खूबी या खराबी कहिए कि वे विनोद की मित्रता भूल नहीं पाते थे, जबकि विनोद के कारनामे यत्र-तत्र-सर्वत्र गूंज रहे थे। उसकी ‘तरक्की’ देखकर पाल का भी मन मचलता था. कहा यही जाता है कि पाल और उसके जैसे कुछ लोग बाबा के कान भरने में कोई चूक नहीं कर रहे थे कि सत्ता आप अपने हाथ में ले लें तो राज्य चमक जाएगा. उधर राज्य का एक प्रमुख प्रकाशन समूह भी कोड़ा के विरुद्ध दांव लगाने को तैयार-तत्पर था. इन्हीं परिस्थितियों में बाबा का मन डोल गया.
बेहद तनाव और खींचतान भरे माहौल में कोड़ा सरकार के दो साल तक रांची, बाबा के कार्यक्षेत्र दुमका से लेकर दिल्ली तक झारखंड को लेकर राजनीतिक सरगर्मी बहुत तेज हो गई. झारखंड ने पहली बार ईडी की भी हलचल देखी. 17 अगस्त 2008 को झामुमो ने कोड़ा सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी और लगे हाथ उसके तीन मंत्रियों सुधीर महतो, नलिन सोरेन और दुलाल भुइयां ने अपने-अपने पद से त्यागपत्र राज्यपाल को सौंप दिये. चार दिनों बाद राजभवन ने उसे स्वीकार कर लिया.
अंततः 22 अगस्त को लालू प्रसाद रांची आ धमके. 3, कांके रोड स्थित मुख्यमंत्री आवास में गहन मंत्रणा हुई और तय हुआ कि अगले दिन यानी 23 अगस्त 2008 को कोड़ा इस्तीफा कर देंगे. हुआ भी यही. गवर्नर ने कोड़ा को कार्यवाहक मुख्यमंत्री के बतौर काम करते रहने का निर्देश दिया
इस बीच एक अविश्वास प्रस्ताव को लेकर दिल्ली की यूपीए सरकार सांसत में थी. बाबा दुमका आ बैठे थे. दिल्ली को उनकी सख्त जरूरत थी. ऐसी सूरत में कोड़ा को लगाया गया. वे दुमका गए और बाबा से राय-मशविरा कर दिल्ली जाने का प्रोग्राम बनाया. दिल्ली में कांग्रेस प्रमुख के समक्ष दोनों बैठे. वहां बाबा की मान-मनव्वल हुई और उनकी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शर्त रखी. कोड़ा ने मान लिया. कहा यह भी जाता है कि लालू प्रसाद झामुमो को मनाने और कोड़ा के मुख्यमंत्री बने रहने के पक्ष में थे. उन दिनों राजनीतिक गलियारे में यह भी चर्चा चली थी कि पूरे प्रकरण में कुछ डील-विल भी हुई. इन्हीं परिस्थितियों में कोड़ा और बाबा की रांची वापसी
हुई लेकिन कोड़ा पद त्यागने से मुकर गए. दो दिनों तक यहां इसी बात को लेकर सियासी गहमागहमी रही. अंततः 22 अगस्त को लालू प्रसाद रांची आ धमके. 3, कांके रोड स्थित मुख्यमंत्री आवास में गहन मंत्रणा हुई और तय हुआ कि अगले दिन यानी 23 अगस्त 2008 को कोड़ा इस्तीफा कर देंगे. हुआ भी यही. गवर्नर ने कोड़ा को कार्यवाहक मुख्यमंत्री के बतौर काम करते रहने का निर्देश दिया.
मुख्यमंत्री पद से कोड़ा के इस्तीफे के बाद भी यह रहस्य बना रहा कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? मीडिया में यह बात बड़ी तेजी से उछाली गई कि बाबा के प्रियपात्र चंपाई सोरेन यह जवाबदेही संभालेंगे. बाद में पता चला कि झामुमो खेमे ने बाबा को मीडिया और अन्य माध्यमों के सवालों से बचाने के लिए बड़ी चालाकी से यह अफवाह फैलायी थी. मीडिया में तीन दिनों तक अनुमानों
का दौर चलता रहा. 26 अगस्त को राजफाश हुआ कि दिल्ली का मोह छोड़कर बाबा झारखंड की सेवा करेंगे.
कोड़ा ने महज 12 दिन पहले तिरंगा फहराया था, उसी में ‘जय झारखंड’ और ‘शिबू सोरेन जिंदाबाद’ नारे के साथ बहुत तामझाम से बाबा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. यह दूसरा अवसर था, जब शिबू जैसा आंदोलनकारी राज्य की कमान संभालने को तत्पर हुआ था. आठ वर्षों के झारखंड में यह छठवीं सरकार थी. ऐसा पहली बार हुआ, जब एक साथ मुख्यमंत्री सहित बारहों मंत्रियों ने शपथ ली
इस प्रकार जिस ऐतिहासिक मोरहाबादी मैदान में कोड़ा ने महज 12 दिन पहले तिरंगा फहराया था, उसी में ‘जय झारखंड’ और ‘शिबू सोरेन जिंदाबाद’ नारे के साथ बहुत तामझाम से बाबा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. यह दूसरा अवसर था, जब शिबू जैसा आंदोलनकारी राज्य की कमान संभालने को तत्पर हुआ था. आठ वर्षों के झारखंड में यह छठवीं सरकार थी. ऐसा पहली बार हुआ, जब एक साथ मुख्यमंत्री सहित बारहों मंत्रियों ने शपथ ली. इसके पहले की सभी पांच सरकारों में दो, तीन, चार किश्तों में कैबिनेट पूरी की जाती रही थी. मंत्री पद के लिए जोड़-तोड़, पैरवी-सिफारिश, पसंद-नापसंद का दौर चलता रहता था.
असंतुष्टों को इंजीनियरिंग और निर्माण, वन जैसे विभाग देकर समेटे रहने की तरकीब आजमायी जाती थी. बहरहाल, शिबू कैबिनेट की खासियत यही थी कि कोड़ा मंत्रिमंडल के केवल एक सदस्य आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी को जगह नहीं मिली, स्थान-पूर्ति फाॅरवर्ड ब्लाक की अपर्णा सेन गुप्ता से की गई. चंद्रप्रकाश अपोजिशन बेंच पर आसीन हो गए. छह दिन बाद 2 सितंबर को
मंत्रियों को विभाग अलाॅट कर दिये गये. स्टीफन और सुधीर उपमुख्यमंत्री बने रहे. कमलेश, एनोस, हरिनारायण, भानु, बंधु तिर्की की भी कुर्सी सलामत रही.
यह जानने को किसी की भी दिलचस्पी हो सकती है कि शिबू की ताजपोशी के बाद कोड़ा का क्या हुआ, तो इसका जवाब है, उनको यूपीए का राज्य संयोजक जैसा झुनझुना थमा दिया गया था. कोड़ा के मुख्यमंत्रित्वकाल में यही पद शिबू के पास था.
(नोटः यह श्रृंखला पूर्णतः लेखक के संस्मरणों पर आधारित है. इसमें छपी बातों से संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है.)