NewDelhi : भारत का इतिहास वीरता का रहा है, लेकिन दुर्भाग्य से आजादी के बाद भी वही इतिहास पढ़ाया जाता रहा, जो गुलामी के कालखंड साजिशन रचा गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज शुक्रवार को यहां विज्ञान भवन में पूर्ववर्ती अहोम साम्राज्य के जनरल लचित बोड़फूकन की 400वीं जयंती पर साल भर आयोजित हुए कार्यक्रमों के समापन समारोह में बोल रहे थे.
Unfortunately, even after independence, we were taught the same history that was created under a conspiracy during the colonial era. After independence, it was needed to change the agenda of those who colonised us but it wasn’t done: PM Narendra Modi in Delhi pic.twitter.com/YyT7uafPLU
— ANI (@ANI) November 25, 2022
Humble request to historians-India isn’t just the story of Aurangzeb,Babar,Jahangir or Humayun. India is of Lachit Barphukan,Chhatrapati Shivaji,Guru Gobind Singh, Durgadas Rathore. We should make an effort to see in a new light. It’ll fulfil our dream to be Vishwa Guru: Assam CM pic.twitter.com/DEQz9erRJb
— ANI (@ANI) November 25, 2022
पीएम ने कहा कि आजादी के बाद जरूरत थी कि भारत को गुलाम बनाने वाले विदेशियों के एजेंडे को बदला जाता, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. जान लें कि पीएम मोदी इससे पहले बोड़फूकन की 400वीं जयंती के उपलक्ष्य में यहां आयोजित प्रदर्शनी का अवलोकन किया. इस अवसर पर असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा, राज्यपाल जगदीश मुखी और केन्द्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.
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भारत का इतिहास सिर्फ गुलामी का इतिहास नहीं है
उन्होंने कहा, भारत का इतिहास सिर्फ गुलामी का इतिहास नहीं है. भारत का इतिहास योद्धाओं का इतिहास है, अत्याचारियों के विरूद्ध अभूतपूर्व शौर्य और पराक्रम दिखाने का इतिहास है. भारत का इतिहास वीरता की परंपरा का रहा है. उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन दुर्भाग्य से हमें आजादी के बाद भी वही इतिहास पढ़ाया जाता रहा जो गुलामी के कालखंड में साजिशन रचा गया था. देश के कोने-कोने में भारत के सपूतों ने आतताइयों का मुकाबला किया लेकिन इस इतिहास को जानबूझकर दबा दिया गया. प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसे बलिदानियों को मुख्यधारा में ना लाकर जो गलती पहले की गयी. उसे सुधारा जा रहा है.
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भारत अपनी सांस्कृतिक विविधता का उत्सव मना रहा है
लचित बोड़फूकन की जयंती मनाने के लिए दिल्ली में किया गया यह आयोजन इसी का प्रतिबिंब है. प्रधानमंत्री ने कहा कि देश आज गुलामी की मानसिकता को छोड़ अपनी विरासत पर गर्व करने के भाव से भरा हुआ है और भारत ना सिर्फ अपनी सांस्कृतिक विविधता का उत्सव मना रहा है बल्कि अपनी संस्कृति के ऐतिहासिक नायक-नायिकाओं को भी गर्व से याद कर रहा है. मोदी ने कहा कि बोड़फकून ऐसे वीर योद्धा थे, जिन्होंने दिखा दिया कि हर आतंकी का अंत हो जाता है लेकिन भारत की अमर ज्योति अमर बनी रहती है.
लचित बोड़फूकन असम के पूर्ववर्ती अहोम साम्राज्य में एक सेनापति थे
बता दें कि लचित बोड़फूकन के 400वें जयंती वर्ष समारोह का उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इसी साल फरवरी में असम के जोरहाट में किया था. 24 नवंबर 1622 को पैदा हुए लासित बोरफुकान अहोम साम्राज्य के सेनापति थे. अहोम राजा चक्रध्वज सिंह ने उन्हें अपने साम्राज्य का सेनापति बनाया और सोलाधार बोरुआ, घोड़ा बोरुआ और सिमूलगढ़ किले का सेनापति जैसी कई उपाधियां दीं. वर्ष 1671 में गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर हुए सराईघाट के युद्ध में उन्होंने जो वीरता दिखाई वो इतिहास बन गयी.
इस युद्ध में उन्होंने औरंगजेब की सेना को इतनी भयानक शिकस्त दी कि अगले 250 सालों तक मुगल पूर्वोत्तर की ओर आना ही भूल गये. इस विजय की याद में असम में 24 नवंबर को लचित दिवस मनाया जाता है. सरायघाट का युद्ध गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी के तटों पर लड़ा गया था.
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