Faisal Anurag
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जंगलराज के आतंक का तानाबाना बुनते हुए बिहार के मतदाताओं से लोकतंत्र की हिफाजत करने और उसे मजबूत बनाने का आह्वान कर एक नयी बहस को जन्म दिया है. प्रधानमंत्री के इस आह्वान को लेकर विपक्ष हमलावर है. इस बीच स्वीडन के विश्व प्रसिद्ध संस्थान ‘वी- डेम इंस्टीट्यूट’ ने दुनिया के 179 देशों को लेकर उदार लोकतंत्र सूचकांक जारी किया है. भारत के लिए इस सूचकांक से अच्छी खबर नहीं है. भारत को 179 देशों में 90वें पायदान पर रखा गया है. भारत के ही पड़ोसी देश श्रीलंका 70वें और नेपाल 72वें नबंर पर है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र माना जाता रहा है. लेकिन हाल में लोकतंत्र की स्थिति को लेकर दो महत्वपूर्ण सूचकांक जारी हुए हैं और दोनों में भी भारत दुनिया के 50 शीर्ष देशों में नहीं है. स्वीडन के इस संस्थान की रिपोर्ट के पहले एक ख्याति प्राप्त अमेरिकन संथान ने भी सूचकांक जारी किया था और उसमें भारत 90 के आसपास ही था.
‘वी- डेम इंस्टीट्यूट’ के इस अध्ययन का पैमाना है: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मीडिया की स्वतंत्रता, सिविल सोसाइटी की स्वतंत्रता, चुनावों की गुणवत्ता, मीडिया में विचारों की जगह और शिक्षा में स्वतंत्रता. इस रिपोर्ट में कहा गया है, मीडिया, सिविल सोसाइटी और मोदी सरकार में विपक्ष के विरोध की जगह कम होती जा रही है, जिसके कारण लोकतंत्र के रूप में भारत अपना स्थान खोने की कगार पर है. यह बेहद तल्ख टिप्पणी है, क्योंकि भारत इसपर गर्व करता है कि वह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और भारत में लोकतंत्र न केवल सांस्कृतिक रूप से लोगों में रचा बसा है. साथ ही भारत प्रचीनतम लोकतंत्र की भूमि भी मानी जाती रही है.
बावजूद यदि लोकतंत्र पर अध्ययन करने वाले संस्थान भारत में लोकतंत्र की स्थिति को लेकर चिंतित हैं तो इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है. मोदी सरकार के लिए यह असहज तथ्य है. भारत में चुनावों की निरंतरता है और सत्ता हस्तांतरण भी सहज प्रक्रिया का हिस्सा है. बावजूद इसके आखिर लोकतंत्र के अनेक अहम पैमानों पर भारत यदि खरा साबित नहीं हो रहा है तो उसे आत्म मूल्यांकन करना चाहिए.
भारत का संविधान,स्वतंत्र न्यायपालिका और संविधान मूलक अधिकारों पर सबके समान हक ने भारत को दुनिया में सम्मान दिया है. ‘वी- डेम इंस्टीट्यूट’ संस्था के निदेशक स्टीफ़न लिंडबर्ग ने बीबीसी को दिये एक इंटरव्यू में कहा, “कई लोकतंत्र के स्तंभ हैं, जो भारत में कमज़ोर पड़ते जा रहे हैं. मोदी के सत्ता में आने के दो साल पहले इनमें से कुछ इंडिकेटर्स में गिरावट आनी शुरू हो चुकी थी, लेकिन वास्तव में इसमें नाटकीय गिरावट मोदी के 2014 में सत्ता में आने के बाद से आने लगी.”
लिंडबर्ग ने बताया, “मेरे विचार में पिछले पांच से आठ सालों में स्थिति अधिक बिगड़ गयी है. भारत अब लोकतंत्र न कहलाये जाने वाले देशों की श्रेणी में आने के बिल्कुल क़रीब है. हमारे इंडिकेटर्स बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में सरकार के प्रति मीडिया का पक्ष लेने का सिलसिला काफ़ी बढ़ गया है. सरकार की ओर से पत्रकारों को प्रताड़ित करना, मीडिया को सेंसर करने की कोशिश करना, पत्रकारों की गिरफ़्तारी और मीडिया की ओर से सेल्फ़ सेंसरशिप की घटनायें बढ़ती जा रही हैं.”
बिहार के मतदाताओं से लोकतंत्र को मजबूत करने के प्रधानमंत्री के आह्वान को इस संदर्भ में भी देखे जाने की जरूरत है कि लोकतंत्र को लेकर भारत की क्या छवि दुनियाभर में बन रही है. वैसे तो दुनिया के अनेक देशों में उदार लोकतंत्र निरंकुशता के दक्षिणपंथी ताकतों के उभार में बदल रहा है. खासकर कोविड के बाद के लॉकडाउन के दौर में अनेक शासकों ने अपने अधिकारों को ज्यादा मजबूत बनाया है और लोगों के संवैधानिक अधिकारों पर हमला किया है.