Faisal Anurag
आदिवासी हक के लिए लड़ने वाले स्टेन नहीं रहे. उनकी मृत्यु जिस तरह हुई, वह स्वयं में एक सवाल है. जेल में उन्हें कोरोना हुआ. लेकिन उन्हें इलाज के लिए अदालती आदेश के बाद ही अस्पताल भेजा गया. 84 साल के बुजुर्ग के साथ के साथ हुए व्यवहार को लेकर अनेक सवाल उठे. जिस भीमा कोरेगांव के मामले में उन्हें एनआईए ने गिरफ्तार किया, उसे लेकर देश के अनेक प्रख्यात लोग सवाल उठाते रहे हैं. स्टेन की मृत्यु भारतीय लोकतंत्र पर स्वयं एक सवाल बन गया है.
स्टेन का जीवन एक खुली किताब की तरह रहा है. कैथोलिक जेसुइट स्टेन लुर्दुस्वामी जेसुइट विचारधारा के अनुसार मानवमुक्ति को ही अपना लक्ष्य बनाया और इसके लिए वे जीवन भर लड़े. वे पारंपरिक तौर पर एक ईसाई के पुरोहित भूमिका से बहुत अलग थे. यही कारण है कि उनकी जिंदगी में जितनी सादगी थी, उतना ही खुलापन भी था. उनसे मिलने वाले जानते हैं कि उनकी एक मात्र चिंता आदिवासी और समाज के अन्य वंचितों के इंसाफ के लिए थी. वे एक कुशल लेखक और विश्लेषक भी थे.
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इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट बेंगलुरु के निदेशक में बतौर वंचितों के सवालों और उनके इतिहास को लेकर अनेक शोध करवाए. उस दौर में उन्होंने भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं का जो सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक विश्लेषण प्रस्तुत किया, उसने देश में प्रतिबद्ध सामाजिक कार्यकताओं को प्रभावित किया. वे विश्लेषण 21वीं सदी में भी प्रासंगिक हैं.
चाईबासा में उनके कार्य से आदिवासियों के नये नेतृत्व उभरे और अन्याय के प्रतिरोध के साथ झारखंड के लिए प्रतिबद्ध कार्यकर्ता तैयार हुए. रांची मे उनके ही नेतृत्व में बगइचा बना, जिसमें एक रिसर्च, विमर्श और प्रशिक्षण के लिए ढांचा तैयार हुआ.
स्टेन ने झारखंड की विचारधारा को एक नयी चेतना और ऊर्जा से भरने में अपनी पूरी ताकत लगायी. बाद के दिनों में विस्थापन विरोधी आंदोलनों के भागीदारी करते हुए आदिवासी संसाधानों की लूट के वैश्विक साजिश का पर्दाफाश किया. बड़ी कंपनियों के संसाधन लूट की प्रवृति और पर्यावरण के नुकसान के सवाल को भी उन्होंने अपने लेखों, भाषणों और संवादों में उठाया. स्टेन ने पोटा पीड़ितों के सवाल को भी गंभीरता से उठाया. मानवाधिकार उनके लिए सर्वोपरि था और इसके लिए वे संजीदा रहे.
गिरफ्तारी के पहले तक उम्र और सेहत की चिंता छोड़ जिस तरह एक मोटरसाइकिल की सवारी करते थे, आदिवासी हितों के लिए अनवरत यात्राएं करते रहे. दक्षिण भारत में पैदा होने वाले स्टेन ने झारखंड को अपना घर बनाया और झारखंडी लोगों के साथ जीवंत रिश्ता बनाया. आजीवन इस सरोकार और संबंध को कभी उन्होंने टूटने नहीं दिया.
स्टेन के पास जाने वाले ज्यादातर वे लोग होते थे, जो नाइंसाफी के खिलाफ लड़ते रहे. स्टेन के होने का मतलब था, किसी भी गरीब के लिए राहत. वे लोगों की बातें ध्यान से सुनते थे और बहुत कम बोलते थे. उनके भाषणों में भी एक सदगी थी. वे कभी ऊंची आवाज में नहीं बोले और अतार्किक भी नहीं बोले.
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अदालती आदेश के बाद उन्हें होली फेमिली अस्पताल में भर्ती तो किया गया. यह कैसी विडंबना है कि जब वे वेटिलेंटर पर थे उनके अधिवक्ता मिहिर देसाई ने उनकी जमानत की सुनवाई के समय उनकी मृत्यु की सूचना अदालत को दिया.
जेल में उनके कांपते हाथों के लिए सहारा नहीं मिला और न ही उनकी आवाज सुनी गयी. 84 की उम्र, कई गंभीर बीमारियां बावजूद उन्हें जेल में एक यातना के दौर से गुजरने दिया गया. वे देश के जानेमाने एक्टिविस्ट थे.