Shyam Kishore Choubey
झारखंड में सियासी रिश्तों में तेजी से बदलाव आ रहा है. राज्य स्थापना दिवस समारोह में शिरकत करने की मंजूरी के बावजूद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने किन्हीं कारणों से 13 नवंबर को ही स्पष्ट कर दिया था कि वे नहीं शामिल होंगी. तो भी एक यक्षप्रश्न तो है ही कि राज्यपाल रमेश बैस राज्य के इस अहम सालाना जलसे में क्यों नहीं गए? अलग बात है कि राष्ट्रपति, जो कुछ अरसा पहले तक इस राज्य की राज्यपाल रह चुकी थीं, उस दिन 15 नवंबर को रांची पधारी थीं और गौरव दिवस मनाने बिरसा मुंडा के गांव-घर उलिहातू गई थीं, लेकिन सरकारी जलसे से उन्होंने पहले ही किनारा कर लिया था. दूसरी ओर राज्यपाल विधानसभा के वर्षगांठ समारोह में 22 नवंबर को गए और बोले भी. मतलब स्पष्ट है कि चूंकि यह आयोजन स्पीकर का था, इसलिए उन्होंने उससे परहेज नहीं किया, जबकि झारखंड दिवस का कार्यक्रम मुख्यमंत्री का था, इसलिए उन्होंने अपनी उपस्थिति से मना कर दिया. विधानसभा के कार्यक्रम में मंच पर राज्यपाल और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कुर्सी अगल-बगल थी. दोनों आसीन भी थे लेकिन उनका फिजीकल अपीयरेंस बता रहा था कि मन-मिजाज में तल्खी तारी थी.
विधानसभा के कार्यक्रम में राज्यपाल और मुख्यमंत्री के संबोधन में भी अंतर दिखा. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जहां झारखंड गठन का पूरा श्रेय अपने पिता शिबू सोरेन के आंदोलन को दिया, वहीं राज्यपाल रमेश बैस ने यह श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम किया. मुख्यमंत्री यह भी बोले, उनके पास कहने को तो बहुत कुछ है, लेकिन यह हर्ष का मौका है, इसलिए कम ही बोलेंगे. वचन-वाणी में जब्ती दोनों ओर दिखी, लेकिन वहां मौजूद सभी लोगों ने दोनों राजपुरुषों के संबंधों में तल्खी खूब नोट की.
यहां यह याद करना होगा कि जब रमेश बैस ने राजभवन में प्रवेश किया था, तब वे शिबू सोरेन का उल्लेख करना नहीं भूले थे. उन्होंने खास तौर पर कहा था कि हम दोनों साथ-साथ संसद सदस्य थे. रमेश बैस और हेमंत सोरेन दानों ही मृदुभाषी हैं, लेकिन समय के साथ उनमें ऐसा तीखा तनाव हो गया, जैसा इस राज्य में कभी देखने को न मिला. 2006 में जब यूपीए सदस्य के बतौर मधु कोड़ा मुख्यमंत्री बने थे और केंद्र में भी यूपीए सरकार थी, तो पूर्ण मंत्रिपरिषद के गठन में विलंब को लेकर भाजपा ने राजभवन के समक्ष दो-तीन दिनों तक धरना दिया था. उस धरने में बहुत कुछ कहा गया था. इसके बावजूद राजभवन और भाजपा के संबंधों में सौहार्द जैसा ही बना रहा. ऐसे ही 2014 में केंद्र और राज्य में डबल इंजन कही जानेवाली एनडीए सरकार बनी तो बेशक तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन तथा नेता सदन रघुवर दास के बीच तनातनी चलती थी, लेकिन हेमंत और राजभवन के संबंधों पर कोई उल्टी-सीधी बात न हुई. सदन में एनडीए बनाम यूपीए खूब खींचतान होती थी और जाते-जाते रघुवर सरकार ने हेमंत परिवार की जायदाद पर जांच बैठा दी. इसके बावजूद राजभवन की मंशा पर कोई ऐसा सवाल न उठा, जो किसी को नागवार गुजरे.
इसके विपरीत मौजूदा हालात में महागठबंधन की दिल्ली से तो ठनी ही हुई है, प्रदेश भाजपा से भी 36 का रिश्ता हो गया है, लेकिन चिंताजनक बात सरकार और राजभवन के बीच बढ़ी दूरियां हैं. राजभवन की सरकार से खटास तब शुरू हुई, जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नाम आवंटित और प्रत्यर्पित अनगड़ा की 88 डिसमिल पत्थर खदान लीज पर राज्यपाल ने चुनाव आयोग से मंतव्य मांग लिया. भाजपा ने उनको ज्ञापन देकर इसे ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला बताया था और इस आधार पर हेमंत को विधायकी से अयोग्य ठहराने की मांग की थी. यह वाकया फरवरी का है. चुनाव आयोग ने लंबी सुनवाई के बाद, जैसी कि खबर आई थी, 25 अगस्त को अपना मंतव्य राजभवन को सर्व करा दिया था. तभी से खुद हेमंत, उनका दल झामुमो और महागठबंधन गुजारिश करते रहे हैं कि चुनाव आयोग का मंतव्य या तो उन्हें दिया जाय या इस आधार पर राजभवन अपना न्याय निर्णय दे.
दूसरी ओर, भले ही दिल्लगी में लेकिन राज्यपाल ने एक मौके पर मीडिया के समक्ष कहा कि चुनाव आयोग का लिफाफ इतना मजबूती से सटा है कि खुल ही नहीं रहा. कुछ अरसा बाद अपने गृह नगर रायपुर में उन्होंने दिवाली से ऐन पहले एक खबरिया चैनल से कहा कि झारखंड में पटाखे नहीं, एटम बम फूटनेवाला है. यह वह समय था, जब राज्य में छह महीने से ईडी ताबड़तोड़ कार्रवाइयां कर रहा था. सरकारी दलों में बेचैनी थी, जबकि भाजपा टिटकारते हुए लहर ले रही थी. इन्हीं परिस्थितियों में दो घटनाओं ने दूरियां बढ़ाईं. एक तो ईडी ने हेमंत को समन कर पूछताछ के लिए अपने दफ्तर आने का फरमान जारी किया, दूसरे राजभवन ने कह दिया कि अनगड़ा लीज मामले में चुनाव आयोग से दोबारा मंतव्य मांगा गया है. दूसरी ओर, झारखंड दिवस के एक दिन पहले 14 नवंबर को हेमंत की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर राज्यपाल की प्रोसिडिंग्स को राजनीति से प्रेरित बताते हुए राज्यपाल और चुनाव आयोग की संभावित कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग कर दी गई. इसी दौरान हेमंत ने सार्वजनिक रूप से कह दिया कि उनकी सरकार के खिलाफ षडयंत्र किया जा रहा है और राज्यपाल षडयंत्रकारियों को संरक्षण दे रहे हैं. ऐसे ही झारखंड दिवस के दिन अखबारों में प्रकाशित विज्ञापन में राज्यपाल की तस्वीर नहीं दी गई. जो परिदृश्य उभरा, उसने भौतिक रूप से आसपास विद्यमान राजभवन और सीएमओ के बीच गहरी खाई पैदा कर दी. ऐसा न हो कि दो बड़ों की खींचतान में गरीब झारखंड का नुकसान हो जाये.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.