alt="लगातार" width="600" height="400" /> केज बनाकर किया जा रहा मत्स्य पालन[/caption]
मिली सहायता तो, बेहतर हुआ जीवन
सरकारी सहायता और फिश कॉपरेटिव की सहायता से इन परिवारों को केज कल्चर के जरिये मछली पालन का प्रशिक्षण दिया गया. बालेश्वर गंझू खलारी प्रखंड मत्स्य जीव सहयोग समिति लिमिटेड के अध्यक्ष भी हैं. ये बताते हैं समिति में कई विस्थापित परिवार हैं. इन सभी को रांची जिला प्रशासन की ओर से पांच केज कल्चर उपलब्ध कराया गया है. इसमें मछली पालन किया जा रहा है. इसके अलावा पांच लाइफ जैकेट, एक नाव, शेड हाउस, चारा और मछली का बीज भी प्रशासन की ओर से उपलब्ध कराया गया है. इसे भी पढ़ें- सरायकेला:">https://lagatar.in/seraikela-acb-raid-in-pf-office-head-clerk-arrested-taking-bribe/26186/">सरायकेला:PF ऑफिस में ACB की छापेमारी, घूस लेते हेड क्लर्क गिरफ्तार
क्या है केज कल्चर?
केज मत्स्य पालन की एक नई तकनीक है. कोल फील्ड माइंस व स्टोन माइंस के जलाशयों में लोगों की सहभागिता से मछली पालन किया जा रहा है. इससे बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया गया है. यही वजह है कि भारत के साथ-साथ कई देशों में केज तकनीकी का उपयोग कर लोगों को रोजगार से जोड़ा जा रहा है.बंद खदानों के जलस्रोत बने आजीविका के आधार
खलारी में मत्स्य पालन के लिए जलस्रोत है, पर यहां बंद खदान के जलस्रोत हैं. जिसका पहले कोई उपयोग नहीं हुआ. अब यहां केज कल्चर योजना के जरिए मछली पालन किया जा रहा है और रोजगार के नए अवसर प्रदान किए जा रहे हैं. केज कल्चर से उत्पादित मछलियां बाजारों में उपलब्ध कराई जा रही है. इसमें समिति को एक लाख 10 हजार रुपये की आमदनी हुई है. आनेवाले दस से पंद्रह सालों तक बंद पड़े खदानों के जलाशयों में मत्स्य उत्पादन की यह प्रक्रिया चलती रहेगी. इसे भी पढ़ें- पश्चिम">https://lagatar.in/west-bengal-governor-said-in-india-today-conclave-emergency-situation-in-the-state-media-bureaucracy-are-all-scared/26171/">पश्चिमबंगाल के राज्यपाल इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में बोले, राज्य में इमरजेंसी के हालात, मीडिया, ब्यूरोक्रेसी सभी डरे हुए हैं
DMFT योजना के तहत केज विधि से मत्स्य पालन
रांची जिला मत्स्य पदाधिकारी डॉ अरूप कुमार चौधरी ने बताया कि जिला प्रशासन के द्वारा वित्त वर्ष 2019-20 में मछली पालन के लिए सिलोनगोडा तालाब कोल फील्ड माइंस सी के लिए डिस्ट्रिक माईनिंग फाउंडेशन ट्रस्ट (डीएमएफटी योजना) के तहत केज विधि से मत्स्य पालन की स्वीकृति दी गई. इस योजना का संचालन सिलोनगोडा माइंस के विस्थापितों के लिए किया गया.कॉपरेटिव सोसायटी का भी गठन किया गया. सोसायटी का संचालन उन्हीं के द्वारा किया जा रहा है. पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू हुई इस योजना में 25 से 30 टन मछली का उत्पादन किया जा सकता है. कोरोना की वजह से प्रोजेक्ट देर से शुरू हुआ, फिर भी अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं. सरकार के निर्देश पर योजना के उचित क्रियान्वयन पर जोर दिया जा रहा है.आकलन है कि केज के माध्यम से यहां पांच सौ लोगों को रोजगार से जोड़ा जा सकता है. इससे क्षेत्र में पलायन पर अंकुश लगेगा. इससे तीन तरह से लोगों को फायदा होगा. पहला रोजगार उपलब्ध होगा, दूसरा स्थानीय बाजारों में मछली की उपलब्धता होगी और तीसरा मछली यानी प्रोटीन की वजह से कुपोषण की समस्या भी दूर हो होगी. इसे भी देखें-

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