- पिछले वर्ष लॉकडाउन से ही नहीं हुआ है अनुबंधित शिक्षकों को भुगतान
- अनुबंधित शिक्षकों की आर्थिक स्थिति हो चुकी है दयनीय
- महज तीन कॉलेजों मे स्थायी शिक्षक, शेष प्रभारी प्राचार्य के भरोसे
Ranchi: मारवाड़ी कॉलेज के प्रिसिपल डॉ यूसी मेहता के रिटायरमेंट के साथ रांची विश्वविद्यालय के 14 अंगीभूत कॉलेजों में स्थाई प्राचार्यो की संख्या तीन रह गई है. तत्काल डॉ जीपी वर्मा को प्रोफेसर इंचार्ज बनाया गया है, लेकिन ऑटोनोमस कॉलेज होने को कारण स्थायी प्राचार्य का होना जरूरी है. राज्य गठन के बाद सिर्फ एक बार जेपीएससी के द्वारा राज्य के कॉलेजो में 23 प्राचार्यो की नियुक्ति की गई है, जिसमे चार पद रांची विश्वविद्यालय के हिस्से आई. डॉ यूसी मेहता के रिटायरमेंट के बाद वीमेंस कॉलेज में डॉ शमशुन नेहार, रामलखन सिंह यादव कॉलेज में डॉ मनोज कुमार और जेएन कॉलेज में डॉ बीपी वर्मा स्थाई प्राचार्य हैं, बाकी कॉलेज प्रभारी प्राचार्य के भरोसे हैं. निकट भविष्य में विश्वविद्यालय के अंगीभूत कॉलेजों को जल्द ही स्थायी प्राचार्य मिलेंगे, संभावना कम ही दिखाई पड़ती है.
प्राचार्यो के साथ साथ रांची विश्वविद्यालय में स्थाई शिक्षकों का भी अभाव है, झारखंड राज्य में वर्ष 2008 से अब तक एक बार भी शिक्षकों की नियुक्ति हुई ही नहीं है. राज्य गठन के बाद 2008 में ही शिक्षकों की नियुक्ति की जा सकी थी. साल 2008 में विश्वविद्यालयों में 850 असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति की गई थी, यह नियुक्ति भी काफी विवादों से भरा रहा. 2008 के बाद सात बार सहायक प्रोफेसरों की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला गया, लेकिन नियुक्ति कभी पूर्ण नहीं हुई.
स्थिति यह है कि नियमित पदों से ज्यादा बैकलॉग में पद खाली हैं. रेगुलर में 120 तो बैकलॉग में 148 यानि 268 पद खाली हैं. यह आंकड़ा 1980 में सृजित पदों के आधार पर है, जबकि हाल के वर्षो में शिक्षा में काफी बदलाव हुए है. विश्वविद्यालय मे कई वोकेशनल कोर्स प्रारंभ किए गए है. वोकेशनल कोर्स के शिक्षकों की गणना इनमें नहीं की गई है.
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इस तरह रांची विश्वविद्यालय के छात्रों के पठन-पाठन का जिम्मा अनुबंधित शिक्षिकों और अतिथि शिक्षकों के भरोसे है, कोरोना काल के दौरान भी असिस्टेंट प्रोफेसर ही विश्वविद्यालयों में पठन-पाठन को संचालित कर रखा है और इस कमी के बावजूद विभिन्न विश्वविद्यालय अपने स्तर से पठन-पाठन के साथ-साथ परीक्षा आयोजित करना और परीक्षा परिणाम भी जारी कर रहे हैं. इसके बाद भी अनुबंधित शिक्षकों को पिछले एक वर्ष से भी अधिक समय से भुगतान नहीं किया गया है.
मानदेय के अभाव में नामांकन और मूल्यांकन कार्य का बहिष्कार करेंगे अनुबंधित प्रोफेसर: डॉ निरंजन महतो
झारखंड असिस्टेंट प्रोफेसर अनुबंध संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ निरंजन महतो ने कहा कि रांची विश्वविद्यालय में कार्यरत अनुबंधित असिस्टेंट प्रोफेसरों को प्रथम लॉकडाउन के समय का बकाया मानदेय का भुगतान नहीं हुआ है. अब वे लोग बाध्य होकर मूल्यांकन कार्य का बहिष्कार करेंगे. उन्होंने कहा कि अनुबंधित शिक्षकों की नियुक्ति शिक्षण कार्यों के लिए किया गया है लेकिन विश्वविद्यालय में उन्हें नामांकन, प्रश्न पत्र चयन एवं मूल्यांकन से संबंधित संपूर्ण कार्यों का संपादन करना पड़ता है.
अनुबंधित असिस्टेंट प्रोफेसरों को प्रथम लॉकडाउन अथार्थ पिछले एक वर्ष से मानदेय का भुगतान नहीं हुआ है. केंद्र और राज्य सरकार का स्पष्ट निर्देश दिया गया था कि किसी भी कर्मचारियों का मानदेय नहीं रोक जाएगा. इसके बावजूद रांची विश्वविद्यालय में मानदेय का भुगतान नहीं हुआ है.
प्रदेश अध्यक्ष डॉ निरंजन महतो ने कहा कि रांची विश्वविद्यालय में कार्यरत अनुबंधित असिस्टेंट प्रोफेसरों ने रेडियो खांची और अन्य ऑनलाइन माध्यम से क्लास लेने का कार्य किया है. इसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन अनुबंधित असिस्टेंट प्रोफेसरों को मानदेय देने में आनाकानी कर रही है.
भुगतान नहीं होने से अनुबंधित असिस्टेंट प्रोफेसरों की स्थिति दयनीय
डॉ. निरंजन महतो ने कहा रांची विश्वविद्यालय में कार्यरत अनुबंधित असिस्टेंट प्रोफेसरों को पिछले एक वर्ष से मानदेय नहीं मिलने के कारण आर्थिक स्थिति दयनीय हो गयी है. अपने मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने में कठिनाई उत्पन्न हो रही है. कहने के लिए हमलोग असिस्टेंट प्रोफेसर हैं लेकिन पारिवारिक भरण-पोषण करने में काफी दिक्कत हो रहा हैं. अनुबंधित असिस्टेंट प्रोफेसरों को अपने बच्चों का स्कूल फीस देने में कठिनाई हो रही है.
उन्होंने कहा कि बच्चों की स्कूल फीस जमा नहीं कर पाने की स्थिति में उन्हें क्लास करने से वंचित होना पड़ रहा है. हमलोगों को अपने बच्चों के सामने ही शर्मिंदा होना पड़ रहा है. झारखंड में कार्यरत अनुबंधित असिस्टेंट प्रोफेसरों को प्रति क्लास छह सौ रुपये और महीने में अधिकतम छतीस हजार रुपए देने का प्रावधान है. विश्वविद्यालयों में यूजीसी के नियमानुसार सीबीसीएस प्रणाली लागू है, जिसके कारण अधिकांश समय परीक्षा संचालन करने में व्यतित हो जाता है.