UN : अफगानिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र की दूत रोजा ओटुनबायेवा ने बुधवार को देश के तालिबान शासकों को आगाह किया कि महिलाओं और लड़कियों के शिक्षा हासिल करने तथा उनके काम करने पर लगाये गये प्रतिबंध हटाये बिना उनके देश को वैध सरकार के रूप में अंतरराष्ट्रीय मान्यता पाना लगभग असंभव है.
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तालिबान शासकों ने संयुक्त राष्ट्र से मान्यता देने के लिए कहा है
ओटुनबायेवा ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) को बताया कि तालिबान शासकों ने संयुक्त राष्ट्र और उसके 192 अन्य सदस्य देशों से उनकी सरकार को मान्यता देने के लिए कहा है, लेकिन साथ ही वे संयुक्त राष्ट्र चार्टर में व्यक्त प्रमुख मूल्यों के खिलाफ काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा, खासकर महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ जारी फरमानों और प्रतिबंधों से तालिबान शासकों ने अपने लिए जो बाधाएं खड़ीं की हैं, उनके बारे में, मैं स्पष्ट हूं.
तालिबान ने अगस्त 2021 में देश की बागडोर अपने हाथ में ली थी
बता दें कि अमेरिका और उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी के बाद तालिबान ने अगस्त 2021 में देश की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी. लड़कियों और महिलाओं की भागीदारी को सीमित करने वाले तालिबान के फरमानों ने देश को मिलने वाली विदेशी सहायता को प्रभावित किया है. उसके नागरिक दुनिया के सबसे बड़े मानवीय संकट का सामना कर रहे हैं. तालिबान सार्वजनिक रूप से फांसी देने सहित इस्लामी कानून के अन्य कड़े नियमों पर भी लौट आया है.
प्रतिबंधों में कोई बदलाव नहीं किया गया
ओटुनबायेवा ने कहा कि सुयंक्त राष्ट्र के कई बार अपील किये जाने के बाद प्रतिबंधों में कोई बदलाव नहीं किया गया इसमें संयुक्त राष्ट्र के लिए काम करने वाली अफगानिस्तान की महिलाओं पर अप्रैल में लगाया प्रतिबंध भी शामिल है. उन्होंने इन प्रतिबंधों को संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राष्ट्र के रूप में अफगानिस्तान द्वारा संस्था और उसके अधिकारियों के विशेषाधिकारों का सम्मान करने के दायित्व का उल्लंघन करार दिया.
किर्गिस्तान की पूर्व राष्ट्रपति ओटुनबायेवा ने बताया कि सभी गैर-जरूरी (नॉन एसेंशियल) अफगान कर्मचारी, महिलाएं और पुरुष अब भी घर पर हैं. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र इस बात को लेकर दृढ़ है कि वह महिला राष्ट्रीय कर्मचारियों की जगह पुरुष कर्मचारियों को नियुक्त नहीं करेगा जैसा कि कुछ तालिबान अधिकारियों ने सुझाव दिया है.