Hazaribagh: एक सोशल एक्टिविस्ट को सरेआम फंसाने की साजिश हो, सारे मामले का पर्दाफाश हो जाए, रजिस्ट्री ऑफिस के एक मुलाजिम को जेल हो जाए, अपने मुलाजिम के जेल होने पर अगर उसके पदाधिकारी यानी sub-registrar 2 दिनों के बाद भी उपायुक्त के पास कोई कागजात नहीं भेजें, तब भी जिले के उपायुक्त संज्ञान नहीं लेंगे. जी हां चाहे कुछ हो जाए ! उपायुक्त जिले के मालिक हैं. सब रजिस्ट्रार के ऊपर के पद पर हैं. जिले के जो मुख्य विभाग उनके अंदर आते हैं, रजिस्ट्री ऑफिस यानी निबंधन कार्यालय भी उनमें से एक प्रमुख कार्यालय है. लेकिन इसके पदाधिकारी यानी अपने मातहत पर यह संज्ञान नहीं लेंगे. यह हम नहीं कह रहे हैं. यह स्वयं लगातार डॉट इन से बात करते हुए उपायुक्त आदित्य कुमार आनंद ने कही है. क्योंकि मामला आपराधिक है और किसी ने अभी तक इस पूरे मामले पर लिखित शिकायत नहीं की है.
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आरटीआई कार्यकर्ता के गिरफ्तारी प्रकरण में सुलगते सवाल
- माननीय साहब आपके महकमे का कोई व्यक्ति जेल चला गया है. और इस मामले में बड़े पदाधिकारी के मिलीभगत की शिकायत आ रही हो. इन खबरों से रोज टेलीविजन, अखबार, पोर्टल रंगा रहा हो. तो फिर क्या आप को संज्ञान के लिए किसी कागजात की आवश्यकता है ?
- क्या किसी ऑफिस के शाख पर बट्टा लग जाने की स्थिति में उपायुक्त जैसे पद पर बैठे व्यक्ति संज्ञान के लिए किसी तीसरे व्यक्ति के आवेदन की प्रतीक्षा करेगा ?
- आपने कहा गिरफ्तार व्यक्ति जिनमें से एक रजिस्ट्री ऑफिस का कर्मचारी है, वह स्वतः 48 घंटे के भीतर सस्पेंड हो जाएगा. लेकिन अगर इन्हीं 48 घंटों के अंदर विभाग के मुखिया यानी सब रजिस्ट्रार अगर इस कर्मी के सस्पेंशन को लेकर कोई फाइल आप तक नहीं बढ़ाते, तो क्या आपके तरफ से एक स्पष्टीकरण सब रजिस्ट्रार को नहीं पूछा जाना चाहिए ?
- क्या इतना भी स्वत: संज्ञान लेना आपके लिए जरूरी नहीं है. आखिर किन कारणों से सब रजिस्ट्रार ने अब तक गिरफ्तार कर्मी को सस्पेंड करने के लिए आपके पास फाइल नहीं बढ़ाई गई है ?
- क्या रजिस्ट्री ऑफिस के सब रजिस्ट्रार को अब तक अखबारों या अन्य माध्यम से पता नहीं चला है कि उनके ऑफिस कर्मी की गिरफ्तारी एक बहुत ही संगीन मामले को लेकर हुई है ?
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RTI एक्टिविस्ट राजेश मिश्रा की गिरफ्तारी का प्रकरण
आपको बता दें कि राजेश मिश्रा गिरफ्तारी मामले में रजिस्ट्री ऑफिस के कर्मी की गिरफ्तारी अन्य चार लोगों के साथ हुई है. इन लोगों ने राजेश मिश्रा की डिक्की में अफीम और ब्राउन शुगर की पुड़िया रखी और पुलिस को खबर कर दी थी. जिसके बाद पुलिस ने आनन-फानन में राजेश मिश्रा को पकड़ कर जेल भेज दिया. बाद में आरटीआई एक्टिविस्ट और पत्रकारों के जबरदस्त आंदोलन के बाद पुलिस ने माना कि इस मामले में गलती हुई है. और हजारीबाग पुलिस अधीक्षक कार्तिक एस ने 48 घंटों के अंदर खुद जांच कर 5 लोगों को गिरफ्तार किया. धीरे-धीरे मामले जब खुलते गए तो पता चला आरटीआई एक्टिविस्ट राजेश मिश्रा ने रजिस्ट्री ऑफिस में कई जमीन के रजिस्ट्री और अन्य मामलों से संबंधित आरटीआई लगा रखा था. और उसी के कारण जमीन दलाल, डीड राइटर और ऑफिस कर्मी ने मिलकर योजना बनाई और आरटीआई एक्टिविस्ट को पकड़वा दिया. हालांकि सूत्र बताते हैं इस मामले के पीछे रजिस्ट्रार वैभव मणि त्रिपाठी का हाथ है. और वही मास्टरमाइंड है. ऐसे मामले में जिले के उपायुक्त आदित्य कुमार आनंद की चुप्पी समझ से परे है.
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