NewDelhi : संविधान पीठ में शामिल जस्टिस जोसफ ने कहा कि हमें मौजूदा दौर में ऐसे सीईसी की आवश्यकता है जो पीएम के खिलाफ भी शिकायत किये जाने पर एक्शन ले सके. कहा कि मान लीजिए किसी प्रधानमंत्री के खिलाफ कुछ आरोप लगे हों और निर्वाचन आयोग यानी सीईसी को कार्रवाई करनी हो, लेकिन आयोग और सीईसी अगर यस मैन यानी कमजोर घुटने और कंधे वाले हों तो क्या ये मुमकिन होगा? यानी वो उनके खिलाफ एक्शन नहीं लेगा
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CEC को स्वतंत्र और स्वायत्त होना चाहिए
कोर्ट का कहना था कि कि क्या यह सिस्टम का पूर्ण रूप से ब्रेकडाउन नहीं है? संविधान और जनविश्वास के अनुसार सीईसी को राजनीतिक प्रभाव से अछूता माना जाता है. उसे स्वायत्त और स्वतंत्र होना चाहिए. कहा कि आयुक्तों के चयन के लिए भी एक स्वतंत्र निकाय होना चाहिए. सिर्फ कैबिनेट की मंजूरी ही काफी नहीं है. नियुक्ति कमेटियों का कहना है कि बदलाव की सख्त जरूरत है. राजनेता भी ऊपर से चिल्लाते हैं लेकिन कुछ नहीं होता.
चुनाव आयोग की स्वायत्तता पर 5 जजों की बेंच में सुनवाई हुई
जान लें कि सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को चुनाव आयोग की स्वायत्तता पर 5 जजों की बेंच में सुनवाई हुई. जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता में हुई सुनवाई में उन्होंने कहा कि कोर्ट की कोशिश है कि एक सिस्टम तैयार किया जाये जिससे मजबूत व्यक्ति मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में चुना जा सके. जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, ऋषिकेश राय और सीटी रविकुमार की बेंच ने कहा कि देश में कई सीईसी रह चुके हैं और टी एन शेषन कभी-कभार ही होते हैं. हम नहीं चाहते कि कोई इसे दबाने की कोशिश करे. हमें CEC के पद के लिए सर्वोत्तम व्यक्ति को खोजना है.
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1990 से मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर आवाज उठ रहे हैं
सवाल यह है कि हम उस बेस्ट व्यक्ति को कैसे चुनें और उसे कैसे नियुक्त करें. केंद्र की तरफ से पेश हो रहे अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी ने कहा कि सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति की नियुक्ति पर किसी को आपत्ति नहीं है, लेकिन सवाल यह है कि यह कैसे किया जा सकता है. इस क्रम में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि 1990 से ही मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर आवाज उठ रहे हैं.
बता दें कि 23 अक्टूबर, 2018 को SC ने सीईसी और ईसी के चयन के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली एक जनहित याचिका को आधिकारिक निर्णय के लिए पांच जजों की संविधान पीठ को भेज दिया था. 17 नवंबर को, केंद्र ने सीईसी और ईसी के चयन के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं का जोरदार विरोध किया था, और कहा था कि इस तरह का कोई भी प्रयास संविधान में संशोधन करने जैसा है.
2004 से कोई भी सीईसी 6 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है
बता दें कि वर्ष 2004 से कोई भी मुख्य चुनाव आयुक्त अपने 6 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है. अदालत ने अपनी टिप्पणी में इस बात को रेखांकित किया. कोर्ट ने कहा, ” 2004 के बाद से, किसी भी सीईसी ने छह साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है और यूपीए सरकार के 10 साल के शासन के दौरान छह सीईसी थे और एनडीए सरकार के आठ वर्षों में आठ सीईसी हुए हैं.
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने निर्वाचन आयोग की स्वायत्तता पर सवाल उठाते हुए सरकार से पूछा कि कभी किसी पीएम पर आरोप लगे तो क्या आयोग ने उनके खिलाफ एक्शन लिया है? संविधान पीठ ने सरकार से कहा कि आप निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया हमें समझाएं. हाल ही में आपने एक आयुक्त की नियुक्ति की है. अभी तो आपको सब याद होगा. किस प्रक्रिया के तहत आपने उनको नियुक्त किया है?
न्यायपालिका में भी नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव आये हैं
जस्टिस केएम जोसफ के बाद जस्टिस अजय रस्तोगी ने भी निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि आपने इसकी न्यायपालिका से तुलना की है. न्यायपालिका में भी नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव आये हैं. मौजूदा सिस्टम में अगर खामी हो तो उसमें सुधार और बदलाव लाजिमी है. सरकार जो जज और सीजेआई की नियुक्ति करती थी तब भी महान न्यायाधीश बने, लेकिन प्रक्रिया पर सवालिया निशान थे. प्रक्रिया बदल गयी.
जस्टिस रस्तोगी ने सरकार से दो टूक पूछा कि आप निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति करते समय सिर्फ नौकरशाहों तक ही सीमित क्यों रहते हैं? अटॉर्नी जनरल ने कहा कि ये तो एक अलग बहस हो जाएगी. अगर किसी मामले में कोई घोषणापत्र है तो हम उसका पालन कैसे नहीं करेंगे? इससे पहले अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार पिक एंड चूज यानी मनपसंद अफसर को उठा कर ही नियुक्त कर देती है ऐसा नहीं है.