Ranchi: प्री मैट्रिक स्कॉलरशिप में घोटाले के एक से बढ़कर एक मामले सामने आ रहे हैं. जिस वक्त यह पैसा आया और बंटा उस वक्त विभाग की मंत्री लुईस मरांडी थी और सचिव हिमानी पांडे. हर महीने सचिव स्तर से तमाम सचिवालय और जिले के अधिकारियों के साथ सचिव स्तर पर बैठक होती थी. छात्रवृत्ति से जुड़ी सभी योजनाओं की समीक्षा की जाती थी. लेकिन कभी भी इस गड़बड़ी की शिकायत न तो जिला स्तर पर की गयी और न ही राज्य स्तर पर ही इसकी समीक्षा हुयी. देखते ही देखते करोड़ों का घोटाला हो गया और कोई कुछ नहीं कर सका.
मैंने अपना आधार और फिंगर प्रिंट दिया, लेकिन पैसे नहीं मिला : छात्र
सरफराज डेवलपमेंट एकेडमी मिशन हाई स्कूल खुर्जी (रांची) में पढ़ने वाले रोहित कुजूर का कहना है कि छात्रवृत्ति के लिए मुझसे आधार कार्ड और फिंगर प्रिंट दोनों लिया गया था. मुझसे किसी बैंक अकाउंट का डिटेल नहीं मांगा गया. मुझे आज तक एक भी पैसे नहीं मिले. मुझसे कहा गया था कि मुझे 10 हजार 700 रुपए मिलेंगे. जो एक हॉस्टल में रहने वाले छात्र को मिलता है. जबकि हमारे स्कूल में कोई हॉस्टल है ही नहीं.
रोहित के परिवारवाले सब्जी की खेती करते हैं. वह काफी गरीब परिवार से आता है. ऐसे ही गरीब अल्पसंख्यक बच्चों के लिए केंद्र सरकार की तरफ से यह योजना चलायी गयी थी. लेकिन फायदा किसी और को मिला. रिकॉर्ड बताते हैं कि इस स्कूल के 174 बच्चों को छात्रवत्ति मिली, जिसमें 148 हॉस्टल में रहने वाले छात्र थे. स्कूल के संचालक का कहना है कि लॉकडाउन से पहले वे स्कूल के साथ एक हॉस्टल भी चलाते थे. हॉस्टल में 40-50 छात्र रहते थे. लेकिन यह हॉस्टल कहां चलता था, इसकी जानकारी संचालक ने नहीं दी.
रांची के ही सनराइज पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाली आसमीन खातून का भी नाम छात्रवृत्ति मिलने वालों की लिस्ट में है. रिकॉर्ड बताते हैं कि आसमीन को सरकार की तरफ से 5700 रुपये छत्रवृत्ति के तौर पर मिले. लेकिन उनसी मां का कहना है कि उन्हें किसी तरह की कोई राशि अभी तक नहीं मिली है. उन्होंने बताया कि स्कूल प्रबंधन की तरफ से उन्हें 2500 रुपये मिलने की बात प्रबंधन की तरफ से की जाती थी. लेकिन इस पैसे को स्कूल फीस में ही एडजस्ट कर लिया जाता था. कहा कि वह छोटे-मोटे किसान हैं. अगर उन्हें पैसे मिले होते तो लॉकडाउन के समय उन्हें काफी मदद मिलती.
वहीं इसी स्कूल की राकिबा खातून का कहना है कि उसे 2500 रुपए मिले हैं. जबकि सरकार की तरफ से 5700 दिया गया था. राकिबा कहती है कि मेरा अकाउंट किस बैंक में है, यह मुझे पता नहीं है. मुझे पैसा नकद ही मिला है. आंकड़े बताते हैं कि इस स्कूल के 130 बच्चों को 5700 रुपए छात्रवृत्ति दी गयी है. स्कूल संचालक का कहना है कि उन्होंने सभी बच्चों के बीच छात्रवृत्ति बांटी है. पैसे छात्रों को कम मिले, क्योंकि बाकी पैसे स्कूल फीस में एडजस्ट किया गया.
रिकॉर्ड की बात करें तो रांची के ही आलीया आराबिया मदरसा में 102 बच्चों को छात्रवृत्ति मिली है. रिकॉर्ड में कांके की सना परवीन का भी जिक्र है. उसे उस मदरसे के आठवीं कक्षा की छात्रा बताया गया है. लेकिन सना परवीन संत एनी स्कूल की दसवीं की छात्रा है. सना बताती है कि 2018 में मुझसे फॉर्म भरवाया गया था और कहा गया था कि 2019 में मेरे अकाउंट में पैसे आएंगे. जितने भी पैसे आएंगे उसमें से आधे पैसे बिचौलिए को देने की शर्त थी. मदरसे में लड़कों को रहने के लिए हॉस्टल है. लेकिन मदरसा के हेड टीचर का कहना है कि वे कभी भी छात्रवृत्ति के लिए फॉर्म भरे ही नहीं है.
इंडियन एक्सप्रेस की छपी खबर में कई चौकाने वाले मामले सामने आए हैं.
हसन अली नाम के एक शख्स के खाते में 10700 रुपए आये. हसन अली 25 साल का आदमी है और वह एक बच्चे का पिता भी है. अली का कहना है कि एक बिचौलिए ने उनसे कहा कि सउदी अरब सरकार की तरफ से चैरिटी की राशि उसके खाते में आएगी. उसे बस अपना आधार और फिंगर प्रिंट देना है. 11 मई को उसके खाते में पैसे आये जिसमें से आधी राशि बिचौलिए ने ले लिए.
हसन ने बताया कि ऐसा ही उनकी बहन के साथ भी हुआ है. अभय सिंह का नाम भी 10700 रुपए छात्रवृत्ति लेने वालों की लिस्ट में है. अभय को कागज पर सिख बताया गया है. लेकिन उनके घर वालों का कहना है कि वो हिंदू भूमिहार परिवार से आते हैं. परिवार वालों ने कहा कि उन्हें सिर्फ 4000 रुपये ही मिले. इसी तरह का मामला दुमका जिले के एक मदरसे में भी सामने आया है. लेकिन मदरसा के लोगों का कहना है कि ऐसी कोई घटना वहां नहीं घटी है. किस छात्रवृत्ति की बात की जा रही है, उन्हें नहीं पता है.