NewDelhi : देशद्रोह (धारा 124ए) और यूएपीए और अनलॉफुल एक्टिविटी (प्रिवेंशन) एक्ट, इन दोनों कानूनों के इस्तेमाल पर अक्सर प्रश्नचिह्न लगते रहे हैं. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस आरएफ नरीमन ने देशद्रोह का कानून खत्म करने की वकालत की थी. कहा था कि यह कानून औपनिवेशिक प्रवृत्ति का है. देश के संविधान में इसके लिए कोई जगह नहीं है. बता दें कि दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों में आरोपी करार दिये गये शरजील इमाम पर कोर्ट ने देशद्रोह और यूएपीए की धारा भी जोड़ने का आदेश दिया है. ये धाराएं एंटी-सीएए प्रदर्शन के दौरान दिए गए भाषणों की वजह से शरजील पर लगाई जा रही है. शरजील इमाम पर असम को देश से अलग करने के लिए भड़काने का आरोप है.
शरजील इमाम पर देशद्रोह का केस चलाने की मंजूरी दिये जाने के बाद फिर चर्चा शुरू हो गयी है कि यह कानून जारी रखा जाये या नहीं. यूएपीए को लेकर भी अक्सर विवाद होते रहे हैं. अगस्त 2019 में जब सरकार ने इस कानून में संशोधन किया था, तब जमकर बवाल मचा था. संशोधन के बाद सरकार किसी संगठन या संस्था को नहीं बल्कि किसी व्यक्ति विशेष को भी आतंकवादी करार दे सकती है.
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सरकार जल्दबाजी में देशद्रोह और यूएपीए के तहत केस दर्ज कर लेती है
इन कानूनों के विरोधी दावा करते हैं सरकार जल्दबाजी में देशद्रोह और यूएपीए के तहत केस दर्ज कर लेती है, लेकिन अदालतों में आरोप साबित नहीं कर पाती. जानकारों की मानें तो देश में पहले टाडा और पोटा जैसे कानून थे, जिनका कन्विक्शन रेट भी कम था. बाद में ये कानून निरस्त कर दिये गये. इस समय देश में आतंकवाद के लिए यूएपीए इकलौता कानून है और इसका कन्विक्शन रेट काफी कम है.
देशद्रोह की बात करें तो 2014 से 2020 तक पांच सालों में देशद्रोह के 322 मामले दर्ज किये गये, इनमें 472 लोग गिरफ्तार किये गये. देशद्रोह के आरोप में जो लोग गिरफ्तार हुए, उनमें से महज 12 लोगों को ही सजा मिल पायी. इसी क्रम में 2014 से 2020 तक 5 साल में यूएपीए के तहत 5,027 मामले दर्ज हुए. इनमें 7,243 लोगों को गिरफ्तार किया गया. हालांकि, इनमें से सिर्फ 212 लोगों पर ही आरोप साबित हुआ और सजा मिली. .
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17वीं इंग्लैंड में देशद्रोह कानून लाया गया था
17वीं इंग्लैंड में देशद्रोह कानून लाया गया था. यही कानून अंग्रेजों के जरिए भारत आया. 1860 में जब इंडियन पीनल कोड यानी आईपीसी लागू हुई, तब देशद्रोह का कानून उसमें नहीं था. 1870 में आईपीसी में संशोधन कर धारा 124A को जोड़ा गया था. इसका इस्तेमाल महात्मा गांधी से लेकर भगत सिंह तक पर हुआ था. आजादी के बाद जब भारत का अपना संविधान बना तो उसमें भी ये धारा जारी रही. इसके तहत उम्रकैद या तीन साल तक की कैद हो सकती है.
यूएपीए कानून संसद में 1967 में पास हुआ था
आतंकवादी और देश की अखंडता-संप्रभुता को खतरा पहुंचाने वाली ताकतों को रोकने के लिए यूएपीए कानून कानून लाया गया था. यह कानून संसद में 1967 में पास हुआ था और उसके बाद से इसमें कई संशोधन हो चुके हैं. इसके तहत आरोपी को कम से कम 7 साल तक की कैद हो सकती है. आखिरी बार अगस्त 2019 में इस कानून में संशोधन हुआ था. संशोधन के अनुसार अब संगठन या संस्था के अलावा व्यक्तियों को भी आतंकवादी घोषित किया जा सकता है और उनकी संपत्ति जब्त की जा सकती है.