Faisal Anurag
राजनीति में पटकनी देने की कई नयी शैलियां इजाद हो रही हैं. महाराष्ट्र में सत्ता हासिल करने के लिए बेचैन भारतीय जनता पार्टी को पहले तो सरकार बना लेने के बाद भी पटकनी खानी पड़ी और अब साल भर के लिए 12 विधायकों के विधानसभा से मुअत्तली के बाद उसके अभियान को ही झटका लगता दिख रहा है. महाराष्ट्र में शिवसेना को डोरे डाल रही भाजपा के लिए माहौल बनने के पहले ही इस आघात का सामना करना पड़ा है. अब तक अनेक विपक्षी सरकारों को हटा कर सत्ता हासिल करने के जिन उपायों को भाजपा आजमाती रही है महाराष्ट्र में उसका वही तरीका उल्टा असर दिखा रहा है.
विधानसभा चुनाव के बाद रातो रात अजित पवार के साथ थपथ लेने के बाद देवेंद्र फड़नवीस अपनी उस फजीहत को नहीं भूल पाए हैं, जो शिवसेना ने दिया. एनसीपी के अजित पवार के कारण जो भ्रम बनाया था. शरद पवार के सक्रिय होते ही टूट गया. फड़णवीस को विधानसभा का सामना किए बगैर ही इस्तीफा देना पड़ा. महाराष्ट्र में भाजपा कभी कांग्रेस तो कभी एनसीपी पर डोरे डालती रही. अब शिवसेना से तमाम मतभेद दूर करने की रणनीति को अंजाम देने के बीच ही विधानसभा में पीठासीन स्पीकर के साथ अभद्र व्यवहार करने के कारण 12 भाजपा विधायकों को विधानसभा से एक साल के लिए मुअत्तल कर दिया गया है. देश के कई राज्यों में चुनाव में हार के बावजूद भाजपा ने देर सबेर सरकार बना लिया है. इसके लिए विधायकों से इस्तीफा दिलाने का तरीका उसने शुरू किया. अब विपक्ष के दलों ने भी उसी तरह का आचरण करना शुरू कर दिया है.
बंगाल में चुनाव जीतकर आए भाजपा के 32 विधायकों ने जिस तरह तृणमूल कांग्रेस के साथ संपर्क किया है. उससे भाजपा के आलाकमान की चिंता बढ़ गयी है. मुकुल राय ने इसकी अगुवायी कर दी है. त्रिपुरा में तो तूफान थम गया है, लेकिन खत्म नहीं हुआ है. झारखंड में भी भाजपा अपने पुराने तरीके को आजमाने के लिए जोर लगाए हुए है. लेकिन महाराष्ट्र और बंगाल ने जो राह दिखायी है उसके कई संदेश हैं. 2017 में तो बिहार में बगैर विधायक खरीदे ही भाजपा ने सरकार बना लिया. उसने इसके लिए नीतीश कुमार को ही अपनी ओर कर लिया. लेकिन ऐसा फॉर्मूला किसी अन्य राज्य में फिर देखने को नहीं मिला है. विपक्ष की जहां भी गठबंधन सरकारें हैं, वहां राजनैतिक अस्थिरता की आशंका बलबती ही रहती है. मध्य प्रदेश में तो कांग्रेस के विधायकों को ही खरीद लिया गया. राजस्थान में कांग्रेस के सरकार की स्थिरता को लेकर अक्सर संदेह का महौल बनता ही रहता है.
महाराष्ट्र में मुअत्तली के खिलाफ भाजपा ने राज्यपाल और अदालत का दरवाजा खटखटाया है. लेकिन संविधान के जानकारों के अनुसार, इसमें राज्यपाल तो कुछ भी दखल नहीं दे सकते हैं और कोर्ट भी भूमिका नहीं निभा सकता है. सदन के भीतर स्पीकर के फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती है. संविधान विशेषज्ञ उल्लास बापट के अनुसार, हालांकि भाजपा विधायकों ने राज्यपाल से संपर्क किया और उनसे निलंबन पर रोक लगाने का आग्रह किया. लेकिन राज्यपाल इस मामले में बहुत कम कर सकते हैं. संविधान राज्यपाल को विधानमंडल की कार्यवाही में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं देता है. इसी तरह, अगर विधायक अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं, तो भी अदालत इस संबंध में ज्यादा कुछ नहीं कर पाएगी क्योंकि संविधान उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय को सदन की आंतरिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करने से रोकता है.
2019 के चुनावों में भाजपा ने 106 सीटें जीती थीं. 12 सदस्यों की मुअत्तली के बाद साल भर तक विधानसभा उसके केवल 94 सदस्य ही वोट दे सकते हैं. मुअत्तली परिघटना से यह भी जान पड़ता है कि महाराष्ट्र में भाजपा के उस ठाकरे सरकार को गिराने या शिवसेना से ही फिर से गठबंधन करने का जो माहौल बनाया जा रहा था, उसकी बुनियाद ही कमजोर है. जिस भास्कर जाधव ने बतौर स्पीकर भाजपा के सदस्यों की मुअत्तली की राह बनायी, वे शिवसेना से ही जीत कर आए हैं.