Mumbai : शिवसेना के मुखपत्र सामना में उद्धव सरकार द्वारा औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदले जाने के फैसले की तारीफ की गयी है. सामना ने अपने संपादकीय में लिखा कि जैसे शिवसैनिकों ने जैसे अयोध्या से बाबर का नामोनिशान मिटाया था, वैसे ही महाराष्ट्र से औरंगाबाद का नाम मिटा दिया गया. सामना ने लिखा कि उद्धव कैबिनेट में जनभावना से संबंधित फैसले लिये गये. औरंगाबाद का संभाजीनगर और उस्मानाबाद को धाराशीव करके मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने वचन पूरा किया. लिखा कि औरंगाबाद का नाम बदलने पर कुछ लोगों के पेट में दर्द हुआ. फिर भी उसकी परवाह किये बगैर मुख्यमंत्री ने यह निर्णय लिया.
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शिवसैनिकों ने बाबर का नामोनिशान मिटाया
शिवसेना ने लिखा, अयोध्या के बाबर का नामोनिशान शिवसैनिकों ने हमेशा के लिए नष्ट कर दिया, उसी तरह औरंगाबाद का नाम महाराष्ट्र से मिटा दिया. इस पर महाराष्ट्र के मुसलमान भाइयों को भी अभिमान होना चाहिए. जिस तरह से बाबर हमारा कुछ नहीं लगता था, उसी तरह औरंगजेब से भी हमारा रिश्ता-नाता या खून का कोई संबंध नहीं था. वह छत्रपति संभाजी राजा का हत्यारा था और शिवराय उसके मुगल शासन के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़े थे.सामना के अनुसार महाराष्ट्र के किसी जिले का नाम औरंगजेब के नाम पर होना यह क्लेशदायक था. यह स्वाभिमान को ठेस पहुंचानेवाला था. आगे लिखा कि हाल के दिनों में कुछ लोगों द्वारा औरंगजेब की कब्र पर जानबूझकर नमाज अदा करने जाने से यह कुछ ज्यादा ही चर्चा में आ गया. लेकिन महाराष्ट्र सिर्फ शिवराय के विचारों का और हिंदू हृदयसम्राट शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे की भूमिका को मानने वाला है.
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मुस्लिमों को औरंगाबाद पर फैसले को नम्रता से स्वीकार करना चाहिए
शिवसेना ने लिखा, अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय जिस नम्रता से देश भर के मुस्लिम समाज ने स्वीकार किया था, वही भूमिका संभाजीनगर के मामले में अपनानी चाहिए. विपक्ष ने यह बात फैलायी थी कि ठाकरे सरकार औरंगाबाद का संभाजीनगर करने से डरती है. पूछा कि फडणवीस का शासन जब महाराष्ट्र में था, तो उन्होंने यह काम क्यों नहीं किया, इस सवाल का जवाब उन्हें पहले देना चाहिए!
मराठवाड़ा औरंगजेब की तरह निजाम के पैरों तले रौंदा गया प्रदेश है. एक बड़े संघर्ष के बाद मराठवाड़ा का निर्माण हुआ. मराठवाड़ा के मुक्ति संग्राम के लिए जिन्होंने शहादत दी, दोनों शहरों के नाम बदलना उन सभी वीरों के लिए श्रद्धांजलि साबित होगा. यह निर्णय दोनों पक्षों को विनम्रतापूर्वक स्वीकार करना चाहिए. तभी हिंदुत्व का सम्मान रहेगा और राष्ट्रभक्ति की भावना मजबूत होगी. इस मुद्दे पर लोगों को भड़काने का काम किया जाएगा. लेकिन ये फैसला बाला साहेब की इच्छानुसार है.