Pramod Upadhyay
Hazaribagh : निजी हो या सरकारी एंबुलेंस, आपात स्थिति में लोगों की सुविधा के लिए दी गई है. लेकिन हजारीबाग में इसकी कुछ अलग ही कहानी है. यहां लोगों को राहत देने की बात तो दूर, एंबुलेंस संचालक आर्थिक मामले में मरीज व मृतकों के परिजनों का खून चूस रहे हैं. हजारीबाग सदर अस्पताल या शेख भिखारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल से रिम्स तक जाने में एंबुलेंस संचालकों की मनमानी चलती है. निजी कार या टैक्सी से भी अधिक किराया वसूलते हैं. सीधा 2700 रुपए गिना लेते हैं. अगर कहीं ऑक्सीजन लगाने की जरूरत पड़ी, तो 300 रुपए अलग से चार्ज देने पड़ते हैं. अर्थात 3000 रुपए पॉकेट में है, तो मरीज को एंबुलेंस से आप रिम्स ले जा सकते हैं. यहां यह भी ध्यान रहे कि एंबुलेंस को टॉल टैक्स नहीं देना पड़ता है. किसी निजी कार या टैक्सी से बिरसा मुंडा एयरपोर्ट रांची तक सफर करेंगे, तो टॉल टैक्स समेत अधिकतम किराया 2400 रुपए तक लिया जाता है. सरकारी एंबुलेंस के रेट भी सरकार ने तय कर रखे हैं. इस हिसाब से 10-12 रुपए प्रति किमी चार्ज देना है. ऐसे में अगर हजारीबाग से रिम्स 90 किमी है, तो 1800 से 2000 रुपए तक किराया लगना चाहिए. आखिर 700 रुपए किराया बढ़ाकर लेना कहां तक उचित है, यह गंभीर चिंतनीय विषय है. एक तो मरीज के परिजन मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से पहले से ही परेशान रहते हैं और ऊपर से एंबुलेंस संचालकों की यह करतूत. मजबूरी में लोगों को एंबुलेंस का दामन थामना पड़ता है. इतना ही नहीं मुर्दों को लाने-ले जाने के लिए भी एंबुलेंस संचालकों की खूब मनमानी चलती है. स्थानीय स्तर पर तो अनाप-शनाप किराया वसूले जाते हैं.
केस-1 : हजारीबाग के इचाक प्रखंड स्थित नावाडीह में सोमवार को सड़क दुर्घटना में एक किशोर सूरज यादव की मौत हो गई थी. इसकी सूचना इचाक थाना ने हजारीबाग मेडिकल कॉलेज अस्पताल स्थित मुर्दाघर के एंबुलेंस संचालक को दी. शव को उठाकर लाने के क्रम में एंबुलेंस चालक ने पैसे मांगे. मृतक के परिजनों के पास उतने पैसे नहीं थे. तब चालक एंबुलेंस को सड़क पर खड़ा कर तेल नहीं होने का बहाना बनाने लगा. उसके बाद एक भाजपा नेता को सूचना मिली, तो उन्होंने अपनी जेब से 200 रुपए निकाल पेट्रोल भरवा दिया. तब एंबुलेंस आगे बढ़ी. फिर शव को सदर अस्पताल से इचाक के नावाडीह तक पहुंचाने के लिए 1500 रुपए लिए. यह पूरा खेल सरकारी एंबुलेंस में किया गया.
केस-2 : सोमवार की रात बरकट्ठा की चेचकपी निवासी साक्षी कुमारी (4 वर्ष) और अभिशांत कुमार (3 वर्ष) की पुआल में आग लगने से मौत हो गई थी. उसके बाद बरकट्ठा पुलिस ने हजारीबाग मेडिकल कॉलेज अस्पताल के मुर्दाघर से सरकारी एंबुलेंस बुलाकर शव को पोस्टमार्टम के लिए हजारीबाग भेज दिया. पोस्टमार्टम के बाद उसी एंबुलेंस ने फिर उसे गांव पहुंचाने के नाम पर 4000 रुपए लिए. जब एंबुलेंस संचालक से परिजनों ने पूछा, तो उसने कहा कि एक बार जाकर लाए और दोबारा पहुंचाने जा रहे हैं, तो इसका किराया तो लगेगा. अगर किलोमीटर जोड़ा जाए तो चार बार आने-जाने का 200 किलोमीटर की दूरी है.
प्रावधान के तहत थाने को करना है भुगतान
इस संबंध में मुर्दाघर के नीरज कुमार से पूछे जाने पर बताया कि अगर सड़क दुर्घटना या थाने से एंबुलेंस बुलाई जाती है, तो इसका मेंटेनेंस खर्च थाने से दिया जाता है. कुछ परिजन भी खर्च के नाम पर दे देते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि सरकार की ओर से प्रति किमी रेट तय है.
क्या कहते हैं निजी एंबुलेंस संचालक
इस संबंध में निजी एंबुलेंस संचालक सुनील पांडेय ने बताया कि सरकार की ओर से दूरी के अनुसार 10-12 रुपए प्रति किमी रेट फिक्स किया गया है. लोकल किराया अपने हिसाब से दूरी के अनुसार लेते हैं.
समाजसेवा के नाम पर यह कैसा छलावा : सीटू
सीपीएम नेता गणेश कुमार वर्मा उर्फ सीटू कहते हैं कि समाजसेवा के नाम पर यह कैसा छलावा किया जा रहा है. कई समाजसेवियों और जनप्रतिनिधियों ने आम नागरिकों की सेवा के लिए एंबुलेंस की सुविधाएं मुहैया कराई है. लेकिन एंबुलेंस संचालक तो मरीजों अथवा मृतकों के परिजनों का खून चूस रहे हैं. यह गंभीर चिंतनीय विषय है. ऐसा लगता है कि एंबुलेंस संचालकों में मानवीय संवेदनाएं मर चुकी है. ऐसे में सिर्फ वाहवाही लूटने के लिए एंबुलेंस देने का कोई मतलब नहीं है. पीड़ित मानवता की सेवा करनी है, तो मुर्दों को तो कम-से-कम बख्श देना चाहिए. एंबुलेंस को व्यवसाय नहीं बनाना चाहिए.