Faisal Anurag
संक्रमण के हर दिन बनते नये रिकार्ड के बीच वैक्सीन की कमी को लेकर राज्यों और केंद्र के बीच विवाद राजनीतिक रूप ले चुका है. केंद्र के दो मंत्रियों हर्षवर्धन और प्रकाश जावेड़कर ने गैर भाजपा शासित राज्यों को लेकर राजनीतिक टिप्पणियां की हैं. महाराष्ट्र में टीके की कमी का असर साफ दिख रहा है. यही हाल उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले का भी है, जहां अनेक निजी अस्पतालों में वैक्सीन खत्म हो चुकी है.
ओडिशा ने भी वैक्सीन की कमी को ले कर चेतावनी दी है. वैक्सीन की कमी वाले राज्यों में झारखंड भी शामिल है, जहां कई सेंटरों से वैक्सीन लेने वालों को बिना लिये वापस जाना पड़ा. आंध्रप्रदेश ने भी टीका कमी के संकट का सवाल उठाया है.
केंद्र सरकार के मंत्रियों ने महाराष्ट्र सरकार पर जिस तरह के हमले किये हैं, वह इस संकट काल में अजूबा है. प्रकाश जावेड़कर ने ठाकरे सरकार पर हमला किया. महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने वैक्सीन कमी के सवाल को उठाया था. उनकी बात को गंभीरता से लेने के बजाए हर्षवर्धन और जावेड़कर ने महाराष्ट्र सरकार की कुशलता और प्रबंधन को ही आड़े हाथों लिया है. इस बीच राहुल गांधी ने भी वैक्सीन कमी को लेकर केंद्र, खासकर नरेंद्र मोदी की आलोचना की है. राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पर वैश्विक छवि बनाने के लिए वैक्सीन निर्यात में सवाल उठाया है. यही नहीं, इस विवाद के बीच 45 साल से कम उम्र के लोगों को वैक्सीन देने की मांग पर जोर पकड़ रही है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर तुरंत सब को वैक्सीन देने की मांग की है. यह मांग ऐसे समय की गयी है, जब प्रधानमंत्री मोदी और उनके सरकार के मंत्री 45 साल से अधिक के लोगों के वैक्सीन की प्रक्रिया को उचित ठहरा रहे हैं. भारत सरकार के स्वास्थ्य सचिव पिछले दिनों कह चुके हैं कि सबको वैक्सीन देना संभव नहीं है.
बिहार चुनाव के दौरान भाजपा का पहला वादा सबको मुफ्त वैक्सीन देने का ही था. कोविड को लेकर वह पहली सार्वजनिक राजनीति थी. हालांकि बिहार को भी वैक्सीन की कमी का सामना करना पड़ रहा है और वहां भी निजी अस्पतालों में 250रु ले कर टीका दिया जा रहा है. लेकिन दूसरी भयावह लहर के बीच तो केंद्र और गैर भाजपा शासित राज्यों के बीच तनाव जैसा माहौल है. हर्षवर्धन तो अपने बयान में महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ पर कड़ी टिप्पणियां की हैं. लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने उन भाजपा शासित राज्यों की चर्चा तक करना उचित नहीं समझा, जहां कोरोना संक्रमण की गति काफी तेज है. भाजपा द्वारा शासित कर्नाटक और उत्तर प्रदेश, इन दिनों नये मामलों के शीर्ष पांच योगदानकर्ताओं में से हैं. प्रति मिलियन जनसंख्या के हिसाब से भाजपा शासित राज्य गोवा में महाराष्ट्र की तुलना में अधिक मौतें हो रही हैं. लद्दाख का भी यही हाल है. इसी मानक पर हिमाचल प्रदेश, केरल से भी बदतर है.
भाजपा शासित राज्यों की चुप्पी का यह मतलब नहीं है कि वहां का प्रबंधन किसी अन्य से बेहतर है या वे टीके की कमी का सामना नहीं कर रहे हैं. विपक्ष शासित राज्यों को यह महसूस हो रहा है कि उनके साथ केंद्र भेदभाव कर रहा है. जानबूझ कर उनकी सरकारों को अस्थिर करने के इरादे से ऐसा माहौल बनाया जा रहा है, जिसका असर राज्य सरकार के क्रियाकलाप पर हो. विपक्ष के नेताओं को यह भी महसूस हो रहा है कि कोविड जैसी महामारी में भी उनके साथ न केवल भेदवाव किया जा रहा है, बल्कि उनकी साख पर भी संकट खड़ा किया जा रहा है. नोटबंदी, जीएसटी और लॉकडाउन के दौर में भी केंद्र और विपक्ष शासित राज्यों के बीच तनाव उभरे थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहकारी संघवाद की वकालत करते रहते हैं. बावजूद इसके संकट की इस घड़ी में केंद्र राज्य सहयोग की सहजता को लेकर उठे सवालों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. महाराष्ट्र, दिल्ली के साथ ही ओडिशा और आंध्रप्रदेश ने जिस स्वर में बात की है, वह संघवाद के सहकार की उपेक्षा से जुड़ा है. स्क्रॉल की एक रिपोर्ट के अनुसार टीका कमी का सवाल एक हकीकत है. ऐसी स्थिति में हर्षवर्धन ने जिस तरह प्रतिक्रिया दी है, वह गैरवाजिब जान पड़ती है. इन आरोपों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि घरेलू जरूरतों को पूरा करने के बजाय केंद्र ने विदेशों को अधिक टीके भेजे हैं. इस कारण ही केंद्र की प्राथमिकताओं पर सवाल किये जा रहे हैं.
एक दिन में 1 लाख 30 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित हो रहे हैं और हर दिन मरने वालों की संख्या हजार के आसपास पहुंच गयी है. वैक्सीन का विवाद दुखद ही कहा जा सकता है. यदि कुछ राज्य सरकारों ने सवाल उठाये हैं, तो उन्हें तर्कसंगत जबाव देने की जरूरत है न कि आरोप-प्रत्यारोप की. विपक्ष की सरकार इस हालात में यदि भेदभाव महसूस कर रही हैं, तो इसके कारण कहां और कौन पैदा कर रहा है, इसपर गौर करने की जरूरत है.