Satya Sharan Mishra
Ranchi : बेड़ो प्रखंड के दर्जनों गांव के साथ कुदरत ने सौतेला व्यवहार किया. सरकार भी इन गांवों में रहने वाले लोगों की पीड़ा नहीं देख सकी. तब एक शख्स ने कुदरत के फैसले को बदलने के लिए अपने हाथों में थाम लिया कुदाल और फावड़ा. अकेले अपनी जिद से धरती की छाती चीरकर बना डाले एक के बाद एक के बाद तीन बांध और 5 तालाब. पहले नरपत्रा, फिर झरिया और फिर खरवागढ़ा बांध तैयार हुआ और बंजर जमीन पर लहलहा गई खुशहाली की फसल. यह जिद्दी शख्स कोई और नहीं पद्ममश्री सिमोन उरांव उर्फ सिमोन बाबा हैं, जिन्हें झारखंड का जलपुरुष कहा जाता है. 2016 में सिमोन उरांव को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया था. सिमोन उरांव के पर्यावरण के संरक्षण के कामों की लंबी फेहरिस्त है. जल, जंगल, जमीन की लड़ाई के लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा. 1955 से 1970 के बीच उन्होंने आदिवासी इलाकों में बांध बनाने का अभियान चलाया. उनके इस काम के लिए देश-विदेश में प्रशंसा हुई. 2002 में सिमोन उरांव को अमेरिकन मेडल ऑफ ऑनर स्टारकिंग पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.
सूखी धरती पर उपजने लगी है तीन-तीन फसल
आज सिमोन उरांव 85 साल के हो चुके हैं. बात 60 के दशक की है. जब बेड़ो के कई गांव बरसात में पानी के बेतरतीब बहाव के कारण जलमग्न हो जाया करते थे. इसके बाद बरसात समाप्त होने पर सुखाड़ का संकट पैदा हो जाता था. लोग रोजी-रोटी की तलाश में पलायन करते थे. उस वक्त सिमोन उरांव की उम्र 15 साल के करीब थी. गांव की हालत देख किशोरवय सिमोन ने किताब छोड़ी और हाथों में फावड़ा-कुदाल उठा लिया. लोगों को इकट्ठा किया और बांध बनाने का काम शुरु किया. मेहनत रंग लायी और 3 बांध और 5 तालाब बन गये. इस दौरान पौधारोपण का भी काम हुआ. बांध तैयार होने के बाद सैकड़ों एकड़ बंजर जमीन में हरियाली आ गयी. खेतों में फसल लहलहाने लगे. नरपत्रा, झरिया, खरवागढ़ा, जाम टोली, वैद्यटोली, खक्सी टोला समेत आसपास के दर्जनों गांवों में जहां एक फसल नहीं होती थी. सिंचाई सुविधा बहाल हो जाने के बाद वहां लोग तीन-तीन फसलें लगाने लगे. फिर पलायन बंद हो गया. जिन ग्रामीणों की जमीन तालाब बनाने में गई, उन्हें उसी तालाब में मछली पालन से जोड़ दिया गया. इतना ही नहीं, सिमोन उरांव ने गांव के आसपास के वनक्षेत्र पर पहरा बिठा दिया, ताकि माफियाओं से वनों की रक्षा की जा सके.
बिना सरकारी मदद के बनाया अच्छी क्वालिटी का बांध
सिमोन उरांव बताते हैं एक दशक की कड़ी मेहनत के बाद बांध बनने से सैकड़ों एकड़ भूमि डूब क्षेत्र से बाहर निकल गई, वहीं पानी के भंडारण की समस्या दूर हो गई. इसके बाद ग्रामीणों के सहयोग से पांच तालाब और 10 कुएं खोद डाले गए. सिर्फ खुदाई कर बांध नहीं बनाये गये, बल्कि देशभर में बनाये गये बांधों का अध्ययन किया गया. बांध निर्माण की बड़ी-बड़ी परियोजनाओं से उत्पन्न विस्थापन की समस्या से सबक लेते हुए बांध का निर्माण सुनियोजित तरीके से किया गया. बांध निर्माण के लिए कोई खास तकनीक नहीं थी और न ही फंड था. फिर भी संघर्ष करते हुए बांध बनाया गया.
सिमोन बाबा के संघर्ष पर बनी है डॉक्यूमेंट्री फिल्म
सिमोन उरांव की शुरूआती जिंदगी काफी कठनाई से गुजरी है. उनके संघर्ष पर 30 मिनट की एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘झरिया’ नाम से बनी है. झारखंडी पहचान लिए हुए पैबंद लगे कपड़े पहनने वाले सिमोन उरांव ने पर्यावरण को बचाने के लिए अपनी पूरी जिंदगी समर्पित कर दी. एक ऐसी शख्सियत जो न ऊंचे ओहदे पर बैठी है और न ही उसके पास कोई बड़ी डिग्री है. बस उनका हौसला मजबूत है और खुद पर पूरा विश्वास. इसी विश्वास के बदौलत उसने बंजर जमीन पर खुशहाली ला दी. बेड़ो प्रखंड के दर्जनों गांवों के लोग ही नहीं, बल्कि स्थानीय प्रशासन, यहां तक कि सरकार भी सिमोन की इस खासियत की मुरीद हैं. अपने दम पर उन्होंने ‘साथी हाथ बढ़ाना’ का नारा दिया. महज साक्षर भर होकर उन्होंने जल प्रबंधन के क्षेत्र में जो कर दिखाया है, वह सिर्फ बेड़ो के लिए ही नहीं, पूरे राज्य के साथ-साथ राष्ट्र के लिए विकास का पैमाना बन गया है.
आदिवासी एक पेड़ काटता है तो 10 लगाता है, सरकार जंगल कटवा देती है पेड़ नहीं लगातीः सिमोन उरांव
सिमोन उरांव कहते हैं कि भगवान ने पृथ्वी और आकाश बनाया. मनुष्य को उसका जिम्मा दिया. मनुष्य ने बांध, तालाब बनाया. लेकिन सरकार ने जब जंगल बचाने का जिम्मा लिया तो आदिवासियों को ही जंगल से भगाना शुरू कर दिया. विकास के लिए जंगल को काटकर विनाश कर दिया. उनका कहना है कि जब आदिवासी पेड़ काटते हैं तो एक के बदले में दस पेड़ लगाते हैं. लेकिन सरकार पेड़ काटती है, तो बदले में पेड़ नहीं लगाती है. उनका मानना है कि जो जंगल में रहता आ रहा है उसे वहां से हटाना नहीं चाहिए. उनको हटाया जायेगा तो जल, जंगल, जमीन सब खत्म हो जाएगा.
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