NewDelhi : भाजपा सांसद डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा है कि भारत के वित्त मंत्रालय में कम बुद्धि, लो-आइक्यू वाले लोग हैं. उन्होंने यह बात अमेरिकी चैनल Valuetainment के पैट्रिक बेट डेविड को दिये एक साक्षात्कार में कही. साक्षात्कार के क्रम में पैट्रिक बेट डेविड प्रधानमंत्री मोदी का जिक्र यह कहते हुए करते है कि आप(स्वामी) उनको सत्तर के दशक से जानते हैं और ब्लंट प्राइम मिनिस्टर की संज्ञा देते हैं.
पूछा कि एक बार आपने उनको भोला, अनुभवहीन अर्थशास्त्री भी कहा है लेकिन खुद आपने ही कभी चाहा था कि आप को मोदी मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री का ओहदा मिले. इस क्रम में डेविड पूछते है कि अगर आपको भारत का वित्त मंत्री बना दिया जाये, तो आप अपने देश को चीन और अमेरिका के टक्कर में भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे आगे ले जायेंगे.
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वे मोदी को सत्तर के दशक से जानते हैं
डॉ स्वामी मुस्कराकर स्वीकार करते हैं कि वे मोदी को सत्तर के दशक से जानते हैं. वे मेरे मित्र हैं. साथ ही प्रधानमंत्री के लिए ब्लंट और नाईव इकनॉमिस्ट (भोला अनुभवहीन अर्थशास्त्री) कहने से इनकार करते हुए कहते हैं कि मैंने दरअसल यह कहा था कि मोदी अर्थव्यवस्था के बारे में जानते ही नहीं. फिर, खुद ही कहते हैं कि यह ज्यादा कड़ा शब्द है. वे वित्त मंत्री होते तो भारत की अर्थव्यवस्था को कैसे आगे बढ़ाते, के जवाब में डॉ स्वामी डेढ़ साल से जारी कोविड महामारी का जिक्र करते हुए कहने हैं कि दरअसल देश के वित्त मंत्रालय में लो-आइक्यू यानी अल्पबुद्धि वाले लोग हैं.
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मोदी आज्ञाकारी लोगों को पसंद करते हैं.
मैं चूंकि प्रधानमंत्री का पुराना दोस्त हूं सो जानता हूं कि उन्हें ऐसे लोग अच्छे लगते हैं. वे आज्ञाकारी लोगों को पसंद करते हैं. यह उनकी कमज़ोरी है. वे चाहते हैं कि लोग उनके लिए काम करें. कहा कि स्वतंत्र रूप से काम करने वाले लोग उन्हें पसंद नही. स्वामी के अनुसार उन्हें इसी वजह से दूर रखा गया है. सवाल पर वापस लौटते हुए डॉ स्वामी कहते हैं कि कोविड के कारण भारत इस वक्त मांग की सकल घरेलू कमी (ग्रॉस डोमेस्टिक कमी) से जूझ रहा है, कामगार वर्ग और मध्य वर्ग की आय में भारी कमी आयी है. शो रूमों में कारों जैसे उत्पाद की लाइन लगी है. लेकिन खरीदार नहीं मिल रहे. मांग ही नहीं है.
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डॉ स्वामी पहला सुझाव लोगों के हाथ में सीधे पैसा रखे जाने का देते हैं
डॉ स्वामी के अनुसार वैसे उपाय करने होंगे कि देश में मांग पैदा हो. यह मांग तभी पैदा होगी, जब देशवासियों की जेब में पैसा हो. इसके लिए डॉ स्वामी पहला सुझाव लोगों के हाथ में सीधे पैसा रखे जाने का देते हैं और याद दिलाते हैं कि अमेरिका में भी ऐसा ही किया गया था. दूसरा सुझाव वे ब्याज दरों में कमी का देते हैं. उदाहरण दिया कि अमेरिका में दो परसेंट ब्याज दर है. कहा कि भारत में अगर कोई कारोबारी लोन चाहता है उसे12 प्रतिशत देना पड़ता है, जो बैंक वालों को समझते-समझाते 15 फीसदी तक चला जाता है. ब्याज दर कम होगी तो कारोबारियों को नये उद्यम लगाने में सरलता होगी और जनता भी जोड़ने की बजाय धन खर्चने की ओर प्रवृत्त होगी.
नोट छापना कोई बड़ा इश्यू नहीं
डॉ स्वामी का तीसरा सुझाव था कि सरकार सड़कें आदि खूब बनवाये. निर्माण काम होगा तो लोगों को रोजगार मिलेगा. रही मजदूरों को भुगतान करने की बात तो इसके लिए नोट छापे जा सकते हैं. नोट छापना कोई बड़ा इश्यू नहीं क्योंकि इससे हम किसी दूसरे के कर्जदार नहीं होते. साथ ही डॉ स्वामी ने इनकम टैक्स खत्म करने का सुझाव दिया. कहा कि कुल दो-तीन परसेंट लोग ही तो यह टैक्स देते हैं और इसे बचाने के लिए सब लोग लगे रहते हैं. सरकार का खर्च कहां से निकलेगा तो इसके लिए अप्रत्यक्ष कर की बात डॉ स्वामी करते हैं. एक मजेदार सवाल पूछा गया कि आप खुद को अमेरिका के किस नेता जैसा पाते हैं? साक्षात्कारकर्ता के इस सवाल पर स्वामी ने रोनाल्ड रीगन का नाम लिया.