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सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड की संवैधानिकता पर दायर पुनर्विचार याचिकाएं 4-1 के बहुमत से खारिज कीं

NewDelhi :  सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी आधार योजना को लेकर दिये अपने फैसले की समीक्षा के अनुरोध वाली याचिकाएं खारिज कर दी . कोरोना संक्रमण काल की वजह से कोर्ट ने खुले में विचार करने के बजाय चैंबर में सुनवाई करते हुए  याचिकाएं खारिज की. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में आधार योजना को संतुलित बताते हुए इसकी संवैधानिक वैधता बरकरार रखी थी, लेकिन न्यायालय ने बैंक खातों, मोबाइल कनेक्शन और स्कूल में बच्चों के प्रवेश आदि के लिए इसकी अनिवार्यता संबंधी प्रावधान निरस्त कर दिये थे.  इसे भी पढ़ें : कोविशील्ड">https://lagatar.in/a-severe-fire-broke-out-in-the-building-of-serum-institute-pune-which-manufactures-the-covishield-vaccine/19693/">कोविशील्ड

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राज्यसभा सांसद जयराम रमेश समेत सात लोगों ने पुनर्विचार याचिका दायर की थी

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जयराम रमेश समेत सात लोगों ने आधार कार्ड  की संवैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट में  जस्टिस ए एमखानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस बीआर गवई की पांच सदस्यीय खंडपीठ ने 11 जनवरी को मामले की सुनवाई की. जिसका आदेश बुधवार को जारी कर दिया गया. जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 26 सितंबर, 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिकाओं को 4:1 के बहुमत के साथ खारिज की, हालांकि पीठ के पांच न्यायाधीशों में से एक जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने बहुमत वाले इस फैसले से असहमति जताई और कहा कि समीक्षा याचिकाओं को तब तक लंबित रखा जाना चाहिए जब तक कि एक वृहद पीठ विधेयक को एक धन विधेयक के रूप प्रमाणित करने पर फैसला नहीं कर लेती. आधार विधेयक को धन विधेयक के रूप में प्रमाणित किया गया था जिससे सरकार राज्यसभा में बहुमत की स्वीकृति प्राप्त किये बिना इस पारित कराने में समक्ष हो गयी थी.  इसे भी पढ़ें : साइड">https://lagatar.in/news-of-600-cases-of-side-effects-harshvardhan-said-it-happens-in-any-vaccination/19679/">साइड

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश की समीक्षा का कोई मतलब नहीं है

पिछले 11 जनवरी के बहुमत वाले आदेश में कहा गया है, वर्तमान समीक्षा याचिकाओं को 26 सितंबर, 2018 के अंतिम फैसले और आदेश के खिलाफ दाखिल किया गया था. हमने समीक्षा याचिकाओं का अवलोकन किया है. हमारी राय में 26 सितंबर, 2018 की तिथि में दिये गये फैसले और आदेश की समीक्षा का कोई मतलब नहीं है. पीठ में जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस ए. अब्दुल नजीर और जस्टिस बीआर गवई शामिल थे. अपने एक अलग आदेश में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘मुझे समीक्षा याचिकाओं को खारिज करने में बहुमत के फैसले से सहमत होने में असमर्थता पर खेद है.  इसे भी पढ़ें :  पीएम">https://lagatar.in/pm-modi-amit-shah-will-take-corona-vaccine-in-second-phase-chief-ministers-mps-will-also-be-vaccinated/19669/">पीएम

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 क्या  लोकसभा अध्यक्ष का फैसला अंतिम और बाध्यकारी है?

उन्होंने कहा कि अन्यों के बीच दो महत्वपूर्ण प्रश्न हैं- क्या संविधान के अनुच्छेद 110 (3) के तहत एक विधेयक को अनुच्छेद 110 (1) के तहत ‘धन विधेयक’ के रूप में प्रमाणित करने संबंधी लोकसभा अध्यक्ष का फैसला अंतिम और बाध्यकारी है, या यह न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकता है और यदि निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन है तो क्या आधार अधिनियम, 2016 को ‘धन विधेयक’ के रूप में सही ढंग से प्रमाणित किया गया था. सितंबर 2019 में संविधान पीठ द्वारा दिये गये  एक अन्य फैसले का जिक्र करते हुए उन्होंने आधार अधिनियम 2018 फैसले में बहुमत की राय पर कहा कि क्या अनुच्छेद 110 के तहत आधार अधिनियम एक ‘धन विधेयक’ था, जिस पर एक ‘समन्वय पीठ द्वारा संदेह किया गया है.’ सितंबर 2018 में पीठ ने 4:1 के बहुमत के फैसले में आधार अधिनियम के कुछ विवादास्पद प्रावधानों को भी खारिज कर दिया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कल्याणकारी योजनाओं और सरकारी सब्सिडी की सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए आधार की आवश्यकता होगी.

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