NewDelhi : आजीवन कारावास की सजा को सश्रम आजीवन कारावास माना जाये या नहीं, सुप्रीम कोर्ट इस पर विचार नहीं करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस बहस पर विचार करने से इनकार कर दिया. बता दें कि विभिन्न मामलों में से एक मामला महात्मा गांधी की हत्या के आरोपी नाथूराम गोडसे के छोटे भाई की सजा से भी जुड़ा हुआ है. न्यायमूर्ति एलएन राव और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने हत्या के अलग-अलग मामलों में दोषी करार दिये गये दो लोगों की अलग अपील पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया.
याचिकाओं में सवाल उठाये गये थे कि क्या उन्हें मिली आजीवन कारावास की सजा को सश्रम आजीवन कारावास माना जायेगा. पीठ ने कहा, इन विशेष अनुमति याचिकाओं में उठाये गये मुद्दों पर इस अदालत के पहले के फैसलों को देखते हुए इस पर फिर से विचार करने की जरूरत नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने 1985 के केस का किया जिक्र
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1985 के नायब सिंह बनाम पंजाब के मामले में इस अदालत ने पहले के फैसलों पर भरोसा किया जिनमें 1945 का पंडित किशोरी लाल बनाम किंग इम्पेरर का प्रिवी काउंसिल मामला और 1961 का गोपाल विनायक गोडसे बनाम महाराष्ट्र का मामला भी शामिल है. 1985 के नायब सिंह बनाम पंजाब का मामला कानून के इसी सवाल से जुड़ा हुआ है.
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गोपाल गोडसे को महात्मा गांधी की हत्या में भूमिका के लिए 1949 में सजा सुनाई गयी थी
गोपाल विनायक गोडसे, नाथू राम गोडसे का छोटा भाई था और महात्मा गांधी की हत्या में भूमिका के लिए 1949 में उसे सजा सुनाई गयी थी. उसे आजीवन कारावास की सजा दी गयी थी. सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद अलफाज अली की अपील खारिज कर दी, जिसे आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया गया और सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी थी,