Nishikant Thakur
मोदी सरनेम के मामले में सूरत की निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए सेशन कोर्ट और फिर गुजरात हाईकोर्ट ने अपनी कई टिप्पणियों के साथ सूरत की निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए कांग्रेस के कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष को राहत देने से इनकार कर दिया. अब दोष सिद्धि पर रोक की मांग को लेकर राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है. सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर गुजरात हाईकोर्ट के सात जुलाई के आदेश को चुनौती दी है. ज्ञात हो कि गुजरात हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि पर रोक लगाने की मांग ठुकरा दी थी. राहुल गांधी ने अपनी याचिका में कहा कि अगर हाईकोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगाई गई, तो यह लोकतांत्रिक संस्थानों को व्यवस्थित तरीके से, बार-बार कमजोर करेगा और इसके परिणामस्वरूप लोकतंत्र का दम घुट जाएगा, जो भारत के राजनीतिक माहौल और भविष्य के लिए गंभीर रूप से हानिकारक होगा. कांग्रेस नेता ने शिकायतकर्ता के दावे को खारिज किया कि उनके भाषण ने मोदी उपनाम वाले लोगों को बदनाम किया है. कोर्ट से सजा मिलने के बाद राहुल गांधी को संसद की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया था.
23 मार्च को निचली अदालत ने राहुल को दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई थी. इसके अगले ही दिन राहुल की लोकसभा सदस्यता चली गई थी. राहुल को अपना सरकारी आवास भी खाली करना पड़ा था. —’मोदी’ एक अपरिभाषित अनाकार समूह : भारतीय दंड संहिता की धारा 499/500 के तहत मानहानि का अपराध केवल एक परिभाषित समूह के मामले में लगता है. ‘मोदी’ एक अपरिभाषित अनाकार समूह है, जिसमें लगभग 13 करोड़ लोग देश के विभिन्न हिस्सों में रहते हैं और विभिन्न समुदायों से संबंधित हैं. ऐसे में आईपीसी की धारा 499 के तहत ‘मोदी’ शब्द व्यक्तियों के संघ या संग्रह की किसी भी श्रेणी में नहीं आता है. —टिप्पणी शिकायतकर्ता के खिलाफ नहीं थी: रैली में ललित मोदी और नीरव मोदी का जिक्र करने के बाद ‘सभी चोरों का उपनाम एक जैसा क्यों होता है?’ कहा गया था. यह टिप्पणी विशेष रूप से कुछ निर्दिष्ट व्यक्तियों को संदर्भित कर रही थी और शिकायतकर्ता, पूर्णेश ईश्वरभाई मोदी को उक्त टिप्पणी से बदनाम नहीं किया जा सकता है. यानी, यह टिप्पणी पूर्णेश मोदी को लेकर नहीं की गई थी. इसलिए उनके आरोप गलत हैं. —शिकायतकर्ता ने यह नहीं बताया कि वह इस बयान से कैसे प्रभावित हुए.
शिकायतकर्ता के पास केवल गुजरात का ‘मोदी’ उपनाम है, जिसने न तो दिखाया है और न ही किसी विशिष्ट या व्यक्तिगत अर्थ में पूर्वाग्रहग्रस्त या क्षतिग्रस्त होने का आरोप लगाया है. तीसरा, शिकायतकर्ता ने स्वीकार किया कि वह मोढ़ वणिका समाज से आता है. यह शब्द मोदी के साथ विनिमेय नहीं है और मोदी उपनाम विभिन्न जातियों में मौजूद है. याचिकाकर्ता और उसके निर्वाचन क्षेत्र को हुई अपूरणीय क्षति: अधिकतम दो साल की सजा मिलने के चलते याचिकाकर्ता को संसद से अयोग्य ठहरा दिया गया है. वायनाड लोकसभा क्षेत्र में 4.3 लाख से अधिक वोटों से याचिकाकर्ता ने जीत हासिल की है. ऐसे में इस फैसले से जनता को भी नुकसान हुआ है. दो साल की सजा मिलने से अगले आठ वर्ष तक याचिकाकर्ता चुनाव भी नहीं लड़ सकेगा. इससे प्रमुख विपक्षी आवाज को रोका जाएगा. —उच्च न्यायालय ने दोषसिद्धि पर रोक लगाने के लिए बुनियादी मानदंडों की अनदेखी की . सजा के निलंबन के दो मजबूत आधार बन सकते हैं. (1) इसमें कोई गंभीर अपराध शामिल नहीं है जो मौत, आजीवन कारावास या एक अवधि के कारावास दस साल से कम दंडनीय है. (2) शामिल अपराध में नैतिक अधमता शामिल नहीं होनी चाहिए. याचिकाकर्ता के मामले में ये दोनों शर्तें पूरी होती हैं. फिर भी उच्च न्यायालय ने अपराध को नैतिक अधमता से जुड़ा हुआ मानकर दोषसिद्धि को निलंबित नहीं करने का निर्णय लिया.
उच्च न्यायालय का आदेश स्वतंत्र भाषण और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करता है. यदि लागू फैसले पर रोक नहीं लगाई गई, तो यह ‘स्वतंत्र भाषण, स्वतंत्र अभिव्यक्ति, स्वतंत्र विचार और स्वतंत्र बयान का गला घोंट देगा.’ यह ‘लोकतांत्रिक संस्थाओं को व्यवस्थित, बार-बार कमजोर करने और इसके परिणामस्वरूप लोकतंत्र का गला घोंटने में योगदान देगा, जो भारत के राजनीतिक माहौल और भविष्य के लिए गंभीर रूप से हानिकारक होगा.’ यदि राजनीतिक व्यंग्य को आधार उद्देश्य माना जाए तो कोई भी राजनीतिक भाषण जो सरकार की आलोचनात्मक हो, नैतिक अधमता का कार्य बन जाएगा. ‘यह लोकतंत्र की नींव को पूरी तरह से नष्ट कर देगा.’
अब जो भी होगा, वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर करता है. ऐसा इसलिए कि सीजेआई चंद्रचूड़ अपने निष्पक्ष फैसले के लिए, चाहे वह हाईकोर्ट के जज रहे हों या सीजेआई एक अलग स्थान रखते हैं. राहुल गांधी के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला नजीर माना जाएगा, क्योंकि विपक्षी दलों की ओर से तो यही कहा जा रहा है कि सूरत की अदालतों ने और गुजरात हाईकोर्ट ने निरपेक्ष फैसला नहीं दिया और विशेष रूप से राहुल गांधी के ऊपर दस और आपराधिक मामले लंबित है तथा वीर सावरकर के पौत्र द्वारा दायर मुकदमे का उल्लेख करके न्यायिक गरिमा की प्रक्रिया से अलग हटकर टिप्पणी की है. जो भी हो, कहा तो यही जाता है कि ‘नाई द्वारा काटे गए बाल तो सामने ही गिरते हैं.’ ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि एक सामान्य व्यक्ति भी यदि किसी से उलझता है तो उसकी प्रतिक्रिया यही होती है कि ‘अदालत में देख लेंगे.’ यदि किसी कारण से निचली अदालतों और हाईकोर्ट द्वारा कोई फैसला संदेहास्पद हुआ है, तो निश्चित रूप से सुप्रीम कोर्ट दूध का दूध और पानी का पानी करके देशवासियों के संदेह को साफ कर देगा. बस फैसले का थोड़ा इंतजार कीजिए.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.
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