- परिवार के पुराने और ईमानदार सदस्य पुराने बर्तनों की तरह कोने में कर दिये गये
Disclaimer : यह टिप्पणी किसी दल विशेष को लेकर नहीं लिखी गई है. चरित्र से हमारा मतलब दलबदलू राजनीतिक चरित्र से है. इसे कोई दल या नेता निजी तौर पर न लें.
LagatarDesk
किसी देश में एक बहुत बड़ा परिवार रहता था. परिवार जब शुरू हुआ था, तब बहुत ज्यादा लोग नहीं थे, लेकिन बहुत कम समय में उस परिवार की जनसंख्या बढ़ गई. जिस परिवार में सैकड़ों लोग थे, वहां अब करोड़ों लोग रहने लगे. परिवार के कुछ लोगों को लगा कि उनकी परवरिश इस बड़े परिवार में नहीं हो पा रही है. इसलिए चूल्हा अलग कर लेना चाहिए. सबसे पहले परिवार के एक बड़े सदस्य ने अपना चूल्हा अलग किया. नया परिवार बनते ही उस पुराने बड़े परिवार के भी कुछ लोग पीछे-पीछे नये परिवार में पहुंच गये, लेकिन वहां उनका मन नहीं लगा और वे वापस अपने पुराने घर में आ गये. कई साल बाद उस नये परिवार का मुखिया अपने बचे-खुचे सदस्यों को लेकर वापस अपने पुराने घर में आ गया.
वापस लौटने के बाद पुराने घर में सबके चहेते हो गये
अपना घर छोड़ दूसरे के साथ लिव इन में रहने गये सदस्यों के वापस लौटने के बाद अपने पुराने घर में सबके चहेते हो गये. तब उस पुराने परिवार के ईमानदार सदस्यों की वो हालत हो गई, जैसे गांव-देहातों में घर की सीधी-साधी औरतों के साथ होती है. लिव इन से लौटे सदस्यों की घर में खूब आवभगत होने लगी और घर के पुराने सदस्य पुराने बर्तनों की तरह कोने में जाते रहे. धीरे-धीरे वह पूरा परिवार चरित्रहीनों से भरने लगा. घर के पुराने सदस्य तो लौटे ही. अब उस घर में दूसरे के घरों को तोड़कर उनसे लोग लाये जाने लगे. दूसरे परिवारों से आये सभी सदस्यों को उस पुराने परिवार के सीनियर सदस्यों ने सिर आंखों पर बैठा लिया. अब धीरे-धीरे घर के असली सदस्यों को दरकिनार कर बाहरी सदस्यों को हर चीज में आगे किया जाने लगा.
तीन दशकों से देश में राजनीति का चाल और चरित्र बदल गया
यह पारिवारिक कहानी थोड़ी बहुत देश की एक राजनीतिक पार्टी की कहानी से थोड़ी-बहुत मिलती है. दरअसल पिछले 3 दशकों से देश में राजनीति का चाल और चरित्र बदल गया है. अब राजनीति में नैतिकता और चरित्र सिर्फ कहने की बात है. राजनीति में निष्ठा, त्याग और पवित्रता अब सिर्फ तकलीफें देती है. असली पूछ तो बाहुबल और धनबल की है. आप कितने भी निष्ठावान और ईमानदार कार्यकर्ता हैं आपको दरकिनार कर ही दिया जाएगा अगर आपके संबंध उस व्यक्ति के साथ अच्छे नहीं हैं, जिसके हाथ में संगठन की बागडोर है.
आपकी काबिलियत और ईमानदारी धरी की धरी रह जाएगी अगर आपने उस खेवनहार की दरबारी नहीं की. आपमें कितना भी जोश हो. भले ही चुनाव लड़ने, जीतने और काम करने की क्षमता आपमें बची हो आप दरकिनार कर दिये जाएंगे. आप आदरणीय हो जायेंगे. आदर्श बना दिये जायेंगे. पार्टी के होर्डिंग्स में लटका दिये जाएंगे. कार्यकर्ताओं में आपकी जय-जयकार होगी. संगठन के समारोहों में आप विशिष्ट अतिथि होंगे. आपके नाम और काम पर चुनावों में वोट मांगे जायेंगे. आप संगठन में आजीवन रहेंगे, लेकिन सिर्फ एक वस्तु बनकर. न दल के नीति-निर्धारण में आपकी राय चाहिए होगी, न चुनाव के वक्त आपके विचार चाहिए होंगे. अब सोच लीजिए आपकी हैसियत क्या है.
इसी परिवार के एक दुखी सदस्य की पीड़ा पर आधारित